एम्स प्रशासन अब विदेशी कंपनी को ओब्लाइज्ड करने की तैयारी में! -दो करोड़ की आटोप्सी टेबल तीन करोड़ में खरीदेगा

पीएमओ दरबार में पहुंची शिकायत

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली ,स्वदेशी उत्पादों और उपकरणों को तरजीह देने संबंधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वप्न को साकार करने के मामले में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) प्रशासन अनदेखी कर रहा है। आलम यह है कि एम्स प्रशासन यूनाइटेड किंगडम (यूके) लीस एक विदेशी कंपनी को सभी नियमों कानून ताक पर रखते हुए करीब तीन करोड़ लागत वाली निविदा पक्ष में जारी करने की तैयारी लगभग पूरी कर ली है। चौंकाने वाले तथ्य ये हैं कि एम्स प्रशासन इस कंपनी से दो मॉडूलर आटोप्सी टेबल खरीद रहा है। जिसकी कीमत तीन करोड़ अनुमानित है। इसी टेबल को इंडियन मेक कंपनी सिर्फ दो करोड़ रुपये में ही आपूर्ति करने के लिए सहजता से उपलब्ध हैं। इसके लिए बकायदा निविदा जारी कर दी गई थी जिसमें सात से अधिक स्वदेशी कं पनियों ने तय नियमों के तहत आपूर्ति करने में दिलचस्पी दिखा चुकी हैं। फोरेंसिक विशेषज्ञ के अनुसार आटोप्सी टेबल का इस्तेमाल शव विच्छेदन के लिए किया जाता है। मोरचरी में संक्रमण के खतरे को भी कम करने में आटोप्सी टेबल की महती भूमिका रहती है।
नियमों की अनदेखी:
स्वास्थ्य विभाग सूत्रों के अनुसार मेक इंडिया मेड इंडिया के मिशन को बढ़ावा देने के लिए दो आटोप्सी टेबल खरीद के लिए एम्स ने 29 अगस्त 2019 को निविदा जारी की थी इसके लिए कुल प्राप्त करीब डेढ दर्जन से अधिक निविदाओं में तीन कंपनियों का चयन किया गया। उस दौरान इन दोनों आटोप्सी टेबल की खरीद की कीमत 2 करोड़ रुपये अनुमानित था। करीब 8 माह तक एम्स प्रशासन ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। अब पुन: 21 दिसम्बर 2019 को नये सिरे से निविदा जारी कर दी। जिसमें आवेदन करने की अन्तिम तिथि 23 जनवरी 2020 है। खास यह है कि इसमें जो शत्रे रखी गई है वह सिर्फ दुनिया में यूके लीज नामक एक ही कंपनी बनाती है। दो आटोप्सी टेबल की आपूर्ति करने के लिए तीन करोड़ रुपये अनुमानित लक्ष्य रखा है। एम्स के इस रवैये से भारतीय उपकरण आपूर्ति करने वाले खासे नाराज है। इसकी शिकायत केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अलावा प्रधानमंत्री कार्यालय में की गई है।
अचरज भरा फैसला:
हालांकि इस बारे में एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि सब कुछ नियमों के तहत ही होगा। यदि इसमें किसी प्रकार की तकनीकी कमी है उसका रिव्यू करेंगे। यदि अनियमितता पाई गई तो निविदा भी रद्द कर सकते हैं।
तर्क से संतुष्ट नहीं है एक्सपर्ट्स:
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यदि एम्स प्रशासन निविदा रद्द नहीं करेगा तो इस मामले में कई अधिकारी शक के घेरे में आ सकते हैं। इसके तहत क्या वजह है कि किसी विदेशी कंपनी को महंगी कीमत पर निविदा दी जाए जबकि वैसी ही गुणवत्ता वाले उपकरण भारतीय कंपनी कम कीमत पर शशर्त देने के लिए तैयार है

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