35 बरस के इंतजार के बाद.मिला सुकून -84 नरसंहार के प्रमुख गुनहगारों को सजा की शुरुआत, राहत ली दंगा पीड़ित के परिजनो ने

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भारत चौहान के साथ ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली, ..आखिरकार 35 साल निरंतर न्यायिक लड़ाई के बाद 1984 सिख दंगा पीड़ितों को न्याय के प्रति भरोसा जग गई। अदालती फैसले के बाद उनकी आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। तिलकनगर, सुभाष नगर, जंगपुरा, टैगोर गार्डन, राजा गार्डन, कीर्ति नगर, तिलक विहार, रमेश नगर जैसे इलाके में रह रहे सैकड़ों सिख समुदाय के लोगों को पीड़ा झेलनी पड़ी थी, जो लंबे समय से न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पीड़ित परिवारों से बातचीत की राष्ट्रीय सहारा के संवाद्दाता ज्ञानप्रकाश ने।
आत्मा सिंह लुगाना उस पल को याद करते हुए सिसक पड़े जब 1984 दंगे में उनके करीबी कई रिश्तेदार की निर्मम हत्या कर दी गई थी। उन्होंने कहा कि यह न्याय यदि हमें कुछ साल पहले मिल जाता तो शायद ज्यादा राहत मिलती। न्याय देर से मिला है, मांग की कि जल्द से जल्द आरोपियों को फांसी की सजा दी जाए।

-चरणजीत सिंह के परिवार के एक ही जगह पर 14 सदस्यों को कत्ले आम कर दिया गया था, ने कहा कि मैं तो खुद उस वक्त देहरादून में था, मेरी उम्र 17 साल थी, मैं 8 कक्षा में पड़ता था, उस समय टीवी पर लाइव भी नहीं होता था, दिल्ली से फोन पर पता चला कि परिवार के 14 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई है। दो दिन तक खाना नहीं खाया, दिल पत्थर रखकर 35 साल गुजारे अब मैं 52 साल का हा गया हूं, न्यायपालिका पर मुझे भरोसा था, जिसकी सत्यता आज प्रमाणित हो गई है।

-डा. एमयू दुआ ने कहा कि देर आए दुरुस्त आए, हमें उम्मीद की अन्य आरोपियों को भी सजा मिले उन्हें फांसी की सजा दी जाए। चूंकि 1984 के दंगा मानवता के नाम पर क लंक था, उस दौरान की सरकार, प्रशासनिक अधिकारी व अन्य सरकारी एजेंसियों, जो भी जिंदा अधिकारी के खिलाफ भी कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।

सरदारनी सतविंदर कौर ने कहा कि मैं उस वक्त 13 साल की थी, उस वक्त को याद करते हुए कहा कि मैं पुलिस लाइन, किंगवे कैंप स्थित हडसन लाइन में रहती थी, वक्त दोपहर 12 बजे का था, जब पुलिस वाले बाईक पर मेरी गली में आए और उत्पात कर रहे युवकों को निर्देश दिया कि इस गली में तो सिर्फ दो ही परिवार सरदारों के हैं। उनको अब तक फूंक नहीं पाए क्या अभी तक.तो मेरी गली से बुजुर्गवार कल्लू उर्फ लाला जी निकले तब उन्हें कड़कती आवाज में दंगाईयो, पुलिसवालों को धमकी दी कि वह (सरदार) तो मेरे बहू बेटे हैं आओं मैं सबसे पहले तुम्हे ही फूंक देता हूं, यह सुनते दोनों ही चलता बने तब मैं मेरी, मां, पिता जी, मेरे छह भाई बहन ने राहत की सांस ली। मामा रघुवरी सिंह सागरपुर गुरुद्वारे के प्रधान थे, की पुरी कोठी जला दी, इसके पहले अलमारी पीछे से काटी थी, लूटपाट की फिर आग लगा दी। ऐसे हत्यारों को कभी माफ नहीं किया जा सकता। सतविंदर ने कहा कि अब मैं 49 साल की हो गई हूं लेकिन मेरे जहन में अक्सर वह दर्दनाक दृश्य सोचकर सिहर जाती हूं।
-अमरीक सिंह (60) चंद्र विहार में हुई दंगा में अपने चार से अधिक लोगों को खो चुके हैं। आज आए फैसले का स्वागत किया और उम्मीद जताई की केंद्र सरकार अन्य आरोपियों को अविलंब सजा दिलाएगी।
वीना सहोता, डबल स्टोरी तिलक विहार ने कहा कि सजा देर से मिली, कम मिली इसका हमें दु:ख है।
अखिल भारतीय दंगापीड़ित राहत कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, व वरिष्ठ अकाली नेता स. कुलदीप सिंह भोगल कहा कि 35 सालों की अनवरत लड़ाई, जो नवम्बर 1984 से शुरू हुई थी, का एक अहम पड़ाव आज माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश से, एक मुकाम पर पहुंचा है, जिसमें 84 नरसंहार के प्रमुख गुनहगारों में से एक सज्जन कुमार एवं अन्य लोगों को माननीय न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। यह सिख दंगा पीड़ितों के लिए एक बड़ी राहत की खबर है और उनके जख्मों पर मलहम लगाने का काम हुआ है। इस फैसले ने यह साबित कर दिया है कि ऊपरवाले के घर देर है अंधेर नहीं। सच की हमेशा जीत हुई है।

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