ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली , बेहतर एवं गुणवत्तापूर्ण इलाज के लिए विख्यात अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) प्रशासन की इसे संवेदनहीनता कहें या फिर एक गरीब मरीज को त्वरित इलाज देने के प्रति विवशता। बिहार के कटिहार निवासी अजरुन की 14 वर्षीय बेटी जन्म से रीढ़ की हड्डी टेढ़ी है जिसका इलाज कराने के लिए उसने जनरल वार्ड में मरीज को भर्ती करने के लिए 7 फरवरी 2021 की डेट दी गई है । हालत नाजुक होने का हवाला देने पर उसे निजी वार्ड में भर्ती करने के लिए 13 फरवरी को पुन: बुलाया गया है। लेकिन दिक्कत वाले तथ्य ये हैं कि उसके पास निजी वार्ड का 22 हजार रुपये शुल्क अदा करने के लिए रुपये ही नहीं है।
केंद्र सरकार की मदद भी नाकाफी:
केंद्र सरकार ने बेटी की सर्जरी के लिए साढ़े पांच लाख रु पये एम्स के खाते में ट्रांसफर भी कर दिए हैं लेकिन इसके बावजूद वे पैसे करे अभाव में अपनी बेटी ज्योति की सर्जरी के लिए भटक रहे हैं। उनके पिता अर्जुन का कहना है कि सरकारी मदद के बावजूद बेटी के सर्जरी में जनरल वार्ड में भर्ती करने के लिए अभी दो साल बाद की तारीख मिलेगी। इसे देखते हुए डॉक्टरों ने उन्हें 13 फरवरी को प्राइवेट वार्ड में भर्ती होकर सर्जरी कराने के लिए कहा है लेकिन सफाई का काम करने वाले अर्जुन के पास बेटी के दाखिले के लिए 22 हजार रु पये नहीं हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की पहल पर प्रधानमंत्री पेशेंट निधि कोष की ओर से दी गई पांच लाख 43 हजार रु पये की मदद में प्राइवेट वार्ड का खर्च शामिल नहीं है।
पहले खर्च कर थक चुका हूं:
अर्जुन के अनुसार बेटी का साल 2015 से बिहार के अलग-अलग अस्पतालों में इलाज चल रहा है। वह रीढ़ की हड्डी के एक विकार से पीड़ित हैं। इस वजह से उनकी कमर टेढ़ी हो गई है और वह सीधे खड़े रहने और अन्य कामों में काफी कठिनाई महसूस करती है। बिहार में इलाज से फायदा न होने पर पिता उसे साल 2017 में दिल्ली स्थित एम्स लाए। यहां डॉक्टरों ने उनकी तमाम जांच कराने के बाद सर्जरी कराने के लिए कहा। इस दौरान बताया गया कि एम्स में सर्जरी के लिए उनके इलाज में पांच लाख 43 हजार नौ रु पये का खर्च आएगा। महीने में सात हजार रु पये कमाने वाले अर्जुन के लिए परिवार चलाना ही मुश्किल था। ऐसे में उन्हें किसी ने निर्माण विहार स्थित एक सरकारी दफ्तर में जाकर सरकारी मदद लेने के लिए सुझाव दिया। यहां से केंद्र सरकार की ओर से उन्हें सर्जरी कराने के लिए आर्थिक मदद करने की बात कही गई और एम्स में उनकी सर्जरी के लिए खर्च की पांच लाख 43 हजार रु पये की रकम भेजने का वादा किय। इसके बाद तीन नवंबर 2018 को उनकी बेटी को अस्पताल में भर्ती करने के लिए कहा गया। हालांकि इस तिथि तक उनके नाम पर एम्स को सरकार की ओर से पैसा नहीं आया। इसके कुछ दिन बाद उनके नाम पर एम्स को सर्जरी के लिए पांच लाख 43 हजार 9 रु पये मिल गए। फिर उन्हें 13 फरवरी को सर्जरी के लिए भर्ती कराने के लिए कहा।
पिता अर्जुन का कहना है कि डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि वे प्राइवेट वार्ड में 13 फरवरी को बच्ची को भर्ती कर दें। इसके लिए 10 दिनों का खर्च 22 हजार रु पये उन्हें देने होंगे। जनरल सर्जरी वार्ड में अभी सर्जरी के लिए उन्हें डेढ़ से दो साल तक और इंतजार करना पड़ सकता है लेकिन बच्ची की सर्जरी जल्द होनी चाहिए। अब ज्योति के पिता अर्जुन के पास 13 फरवरी को अपनी बेटी को प्राइवेट वार्ड में भर्ती करने के लिए 22 हजार रु पये नहीं हैं।
बीमारी से छुटी पढ़ाई:
अर्जुन ने समाजसेवी अधिवक्ता अशोक अग्रवाल से इस मामले में मदद मांगी है। अशोक अग्रवाल का कहना है कि वे सभी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि गरीब परिवार की आमदनी सात हजार रु पये है लेकिन उनके दो बेटे और दो बेटिया हैं। ऐसे में घर का खर्च चलाना ही मुश्किल हो रहा है। अर्जुन ने बताया कि बच्ची के इलाज की वजह से उनके छोटे-छोटे तीन बच्चों की पढ़ाई भी बीच में छूट गई है। इस बीच एम्स के चिकित्सा अधीक्षक डा. डीके शर्मा ने कहा कि एम्स की गाइडलाइन के तहत शल्यक्रिया मुहैया कराई जाती है। मामले पर विचार किया जाएगा।