ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली , इंसुलीन की सुई पहली बार एक बच्चे को दी गई जिसके बचने की उम्मीद नहीं थी। 11 जनवरी 2022 को इस घटना के 100 वर्ष पूरे हो जाएंगे और इस तिथि में केवल 1000 दिन बचे हैं। यह गिनती शुरू करते हुए रिसर्च ट्रस्ट ऑफ डायबीटीज इंडिया (डायबीटीज इंडिया) ने ‘1000 दिनों का अभियान’ शुरू किया है। इसका मकसद देश में डायबीटीज़ पर काबू पाना और उपचार व्यवस्था बेहतर बनाना है।
सनद् रहे:
इंसुलीन की सुई पहली बार 1922 में एक बच्चे लियोनार्ड थॉम्प्सन को लगाई गई। यह कार्य बैंटिंग और बेस्ट और उनकी टीम ने किया था। हालांकि इसका असर तुरंत नहीं दिखा पर उन्होंने अथक प्रयास से एक अन्य सॉल्यूशन दिया जिसका 15 दिनों के अंदर बच्चे के ब्लड सुगर लेवेल कम करने में अभूतपूर्व परिणाम मिला। परंतु डायबीटीज के तमाम अत्याधुनिक उपचारों, पर्याप्त जानकारियों और आधुनिक दवाओं के बावजूद आज भी भारत में इस समस्या की उच्च स्तरीय उपचार व्यवस्था नहीं है।
विशेषज्ञों की नजर में:
एायबीटीज इंडिया के अध्यक्ष एवं इंटरनेशनल डायबीटिज फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष डा. एसएम सदीकोट के अनुसार देश में मधुमेह के 74 मिलियन मरीज हैं और इनमें 57 प्रतिशत से ज्यादा जानते भी नहीं कि उन्हें यह बीमारी है। अन्य 50 प्रतिशत का मधुमेह नियंतण्रमें नहीं है। एक हजार दिनों के अभियान से मैं चाहता हूं कि पूरा चिकित्सक समुदाय मिलकर इन समस्याओं का सामना करे और अथक प्रयास करते हुए 2022 तक भारत में डायबीटीज को काबू में करे। डायबीटीज इंडिया 18-21 अप्रैल, 2019 के दौरान पूरे देश में स्थानीय चिकित्सकों के साथ वॉकेथॉन्स का आयोजन करेगा ताकि डायबीटीज़ के उपचार के बारे में जागरूकता बढ़े और लोग इस क्रॉनिक समस्या को काबू में रखने के लिए हेल्दी लाइफस्टाइल की ज़रूरत महसूस करें। देश के 5 लाख से अधिक परिवारों से भी संपर्क करेगा। इसके लिए डायबीटीज पर केंद्रित शैक्षिक अभियान और ज्ञान साझा करने की गतिविधियां होंगी।