वीएन सहगल कभी हार न मारने वाला 83 वर्षीय सख्स सीबीआई फॉरेंसिक सीएफएसएल नई दिल्ली के 14 साल तक निरंतर निदेशक पद पर काबिज होने वाले पहली हस्ती

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भारत चौहान,नई दिल्ली। वर्ष 1996 में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) (सीएफएसएल नई दिल्ली रीजन) में निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए डा. वीएन सहगल अपना 83वां जन्मदिन मना रहे है। उन्हें हाल ही में ग्लोबल एक्रीडिएशन काउंसिल जर्मनी से संबंद्ध इंटरनेशनल पीस यूनिवर्सिटी ने डाक्टर ऑफ क्रीमिनिलॉजी एंड क्रिमिनल जस्ट्सि विषय पर बेहतरीन थीसिस लिखने के लिए पीएचडी की मानद डिग्री प्रमाणपत्र प्रदान किया है। यह समारोह सिंगापुर में सितम्बर माह के दूसरे सप्ताह 2018 को संपन्न हुआ। वर्ष 1983-1996 कार्यकाल के दौरान निदेशक रहने के बावजूद डा. सहगल स्नेहदिल, रात दिन मेहनत कर किताबें लिखने में आजकल व्यस्त है। करीब 40 साल तक भारत सरकार के विभिन्न उपक्रमों में सेवाएं दी। जिसके तहत सेंट्रल फॉरेंसिक साईस लैबोरेट्री, संघ लोक सेवा आयोग ने उन्हें पांच बार अलग अगल विशेषज्ञता के लिए नौकरी के लिए चुना। जिसके तहत सीबीआई के अलावा अपनी सरकारी नौकरी के दौरान उन्होंने इंडियन ब्यूरो ऑफ माइन्स, जियोलॉजिकल सव्रे ऑफ इंडिया के साथ ही वे इंटरपोल, आईबी समेत दुनिया की शीषर्स्थ एजेंसी ने उन्हें मैन ऑफ द ईयर घोषित किया। यह सम्मान उन्हें अमेरिकन बायोग्राफिकल इंस्टीट्यूट (आईएनसी) ने 8 अगस्त 1997 में प्रदान किया। यही नहीं डा. सहगल ने को इसी साल भारत सरकार ने फेलोशिप ऑफ फॉरेंसिक साईस सोसायटी आफ इंडिया प्रदान किया। उन्होंने सरकार ने केमिकल एक्जामिनर के रूप में 1983-1996।
हमेशा ही ईमानदारी के लिए सुर्खियों में रहे:
डा. सहगल अपनी ईमानदारी, निष्ठापुर्ण कायरे के लिए सुर्खियों में रहे। उनका लोहा तत्काली प्रधानमंत्री भी मानते रहे। इसके तहत चाहे वह दुष्कर्म, महिलाओं में बढ़ते यौन सोशण के मामला हो या फिर बैंक स्कैप, नकली हस्ताक्षर करने, अन्य प्रकार के 420 के मामलों को वैज्ञानिक तकनीकों से निबटाने के लिए वे दक्षता के प्रतीक माने जाते हैं। साईबर क्राइम, बैंक, बीमा, दस्तावेजों में गड़बड़, नकली नोट, व्हाइट कॉलर अपराध के मामलों को पल रहते ही निबटाते रहे हैं। यहीं नहीं चाहे वह बिल्ल रंगा अपराधी द्वारा चोपड़ा के बच्चों की निर्मम हत्या की गुत्थी सुलझाने का मामला हो या फिर नैना साहनी तंदूर कांड का। सभी मामलों में डा. सहगल ने अपनी पैनी दृष्टि आई से अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया। अब तक 100 से अधिक पब्लिकेशन प्रकाशित कर चुके डा. सहगल कहते हैं कि अभी मैं बूढ़ा नहीं हुआ हूं, मैं पुरी दक्षता से प्रकृति के नियमों का पालन करता हूं। लैक्चर देने से वे कभी पीछे नहीं हटते हैं, उनका कहना है कि जो विद्या उन्होंने कड़ी मेहनत से हासिल की है उसका ज्ञान सभी को मिले। इसके लिए वे आईपीएस, आईएएस, न्यायविद सभी को अपना व्याख्यान के जरिए फॉरेसिंक साईस की बारीकियों से रूबरू करा रहे हैं।
वह दिन नहीं भूलते:
डा. सहगल अपने पिता को याद कर सिसक पड़ते हैं। उन्होंने कहा कि जब वे परीक्षा की तैयारी करते थे उस वक्त मैं जमीन पर सोता था, दिन भर काम करना और पढ़ाई करना ही मेरे जीवन का लक्ष्य था। मैंने कभी भी गुणवत्ता से समझौता नहीं किया। भारत सरकार से उन्हें पोजिटिव उम्मीद है कि उनके द्वारा किए गए देशहित, समाजहित, न्यायहित में किए गए कायरे के लिए उन्हें पदम्श्री जैसे अति प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा जाएगा। आवेदन उन्होंने दो साल पहले ही किया। इसका श्रेय वे अपनी बेटी नीलमा यादव को देते हैं। दामा सतीश ग्रांड डाटर प्रेरणा प्रगति की ओर चल पड़ी है।

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