रुपये में प्रभावी गिरावट महज 6-7 प्रतिशत: आईएमएफ

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ज्ञान प्रकाश अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने कहा है कि मुद्रास्फीति को संमायोजित कर के देखा जाए तो इस साल रुपये में प्रभावी गिरावट महज 6-7 प्रतिशत ही हुई है। यह घोषित गिरावट का लगभग आधा है। हालांकि आईएमएफ ने चेतावनी दी कि इसके चलते तेल एवं पेट्रोलियम उत्पादों जैसे आयातित वस्तुओं की कीमतें बढने से मुद्रास्फीति पर दबाव बढ सकता है। आईएमएफ के प्रवक्ता गेरी राइस ने कहा कि उभरते बाजारों समेत भारत के अधिकांश व्यापारिक भागीदार देशों की मुद्राएं भी डॉलर के मुकाबले कमजोर हुई हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे आकलन के हिसाब से दिसंबर 2017 की तुलना में इस साल रुपये में छह से सात प्रतिशत के बीच प्रभावी गिरावट रही है।’’ रुपया अमेरिकी डालर के मुकाबले घोषित तौर पर इस साल 13 प्रतिशत गिर चुका है। भारत के अपेक्षाकृत अपने दायरे में एक अर्थव्यवस्था बताते हुए राइस ने कहा कि अप्रैल-जून तिमाही में आर्थिक वृद्धि में शुद्ध निर्यात का योगदान एक बार फिर अनुमान से बेहतर रहा। रुपये की वास्तविक विनिमय दर में गिरावट से निर्यात में वृद्धि का रुझान मजबूत होगा। उन्होंने कहा, ‘‘दूसरी ओर रुपये की गिरावट से निश्चित तौर पर तेल एवं पेट्रोलियम उत्पादों जैसे आयातित उत्पादों का मूल्य बढेगा जिसका मुद्रास्फीति पर बुरा असर पड़ सकता है।’’ आईएमएफ की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए राइस ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था नोटबंदी और माल एवं सेवा कर (जीएसटी) क्रियान्वयन के अवरोधों के बाद मजबूती से सुधार कर रही है। उन्होंने कहा, ‘‘हालिया तिमाहियों में वृद्धि दर क्रमिक तौर पर उपभोग एवं निवेश दोनों में सुधर रही है जिसने अर्थव्यवस्था की मदद की है।’’ उन्होंने भारत में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही की वृद्धि दर आईएमएफ के पूर्वानुमान से बेहतर होने का जिक्र करते हुए कहा कि हालिया वैिक गतिविधियों आदि के मद्देनजर पूर्वानुमान की समीक्षा की जाएगी। उन्होंने कहा कि नोटबंदी से फायदा भी हुआ है और नुकसान भी। उन्होंने कहा, ‘‘नोटबंदी ने धन की आपूर्ति बाधित की, नकदी संकट का कारक बनी और उपभोक्ता एवं कारोबारी धारणा पर भी इसका गलत असर पड़ा। इससे इतर नोटबंदी ने विस्तृत डिजिटलीकरण में मदद की और अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाया, जिससे राजस्व एवं कर अनुपालन बढाने में मदद मिलेगी।’’

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