देश में अत्याधुनिक द रोबो विंसी की मदद से कैंसर ट्यूमर्स को खत्म करने वाले सर्जन्स की है कमी -जहां रोबोटिक मशीनें है वहां है सीमित दक्ष डाक्टर

युवा डाक्टरों प्रशिक्षित करने के लिए बने केंद्रीय नीति, खोले जाएं वाजिब रिसर्च सेंटर

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ज्ञानप्रकाश
नई दिल्ली , शल्यक्रिया विज्ञान क्षेत्र में विशेषकर विभिन्न प्रकार के कैंसर ट्यूमर्स को जड़ से नष्ट करने के लिहाज से की जाने वाली लेप्रोस्कोपिक व सामान्य सर्जरी अतीत की बात हो चुकी है। उनकी जगह कम खर्चीली, पीढ़ा रहित रोबोटिक और इंडोस्कोपिक सर्जरी का प्रचलन दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहा है। इसकी खासियत यह भी है कि यह अति खतरनाक कैंसर ट्यूमर्स, सेल्स को कम खर्च में मरीजों के लिए जीवनदायनी है। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि देश में रोबोटिक सर्जन्स की कमी है।
दक्ष सर्जन्स की कमी दूर करने के लिए बने नीति:
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के आंकडों के अनुसार देश में अब तक सिर्फ 70 रोबोटिक मशीने स्थापित हो सकी है। प्रति मशीन की कीमत 19 से 20 करोड़ तक है। इनका संचालन करने के लिए देश में दक्ष सर्जन्स की कमी है। आईसीएमआर के हवाले से राजधानी में चल रहे चौथे कांग्रेस इंटरनेशनल गिल्ड रोबोटिक एंड एंडोस्कोपित हेड एंड नेक सर्जरी के अध्यक्ष एवं प्रख्यात रोबो सर्जन डा. सुरेंद्र कुमार डबास ने कहा कि रोबो का मरीज पर प्रयोग करने के अन्तरराष्ट्रीय मेडिकल कॉलेज में अध्ययन के साथ ही कम से कम अनुभवी रोबो सर्जन की निगरानी में 20 से 25 सर्जरी सफलता पूर्वक संपन्न करना जरूरी है। इसके बाद ही कोई भी सर्जन इसक विधि का प्रयोग कर सकता है। उत्कृष्ट प्रशिक्षण और केंद्रीय नीति बनाकर डाक्टरों की कमी को दूर किया जा सकता है।
जहां सुविधा है वहां डाक्टर नहीं:
दु:खद यह है कि एम्स समेत जिन चुनिंदा अस्पतालों में द रोबो विंसी का प्रयोग किया जा रहा है वह कुछ ही सीमित डाक्टरों तक होकर रह गया है। प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना के तहत पीएम-जय जैसी महत्वपूर्ण योजनाओं में इस विधि को शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय व अन्य सरकारी एजेंसियों को चाहिए कि ऐसी नीति बनाए कि इस चिकित्सा बीमा श्रेणी में शामिल किया जाए। केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस), ईएसआईसी, डीएचएस जैसी सरकारी योजनाओं के तहत केंद्रीयकर्मियों को सर्जरी के लिए यह सुविधा नहीं मिल पा रही है। बीएलएके में सर्जिक ल आंकोलॉजी एवं रोबोटिक सर्जरी के निदेशक डा. डबास ने सरकार का ध्यानाकषिर्त करते हुए कहा कि मेडिकल टुअरिज्म में नवीनतम अत्याधुनिक शल्यक्रिया को शामिल करने के लिए ठोस नीति बनाए। ऐसा करने से मरीज को सर्जरी के दौरान होने वाले जोखिम में कमी आएगी।
सस्ती दर पर मिलेगा रोबो:
सम्मेलन में शिरकत कर रहे आंको रोबोटिक सर्जरी के एसोसिएशन निदेशक डा. अनी शर्मा ने बताया कि चाइना में भारतीय मूल के वैज्ञानिक द रोबोटिक मशीन को अन्तिम रूप देने में जुटे हैं। उम्मीद है कि वर्ष 2020 तक देश में सस्ती दर पर, जिनकी अनुमानित कीमत 6 से 7 करोड़ रुपये तक होगी, अधिकांश अस्पतालों में स्थापित की जाएंगी। वर्तमान में सिर्फ अमरीका स्थित एक ही कंपनी द रोबो विंसी उपकरण का निर्माण करती है। इस वजह से कीमत कई गुना ज्यादा है। जिसे खरीद पाना सबके बस की बात नहीं है। तीन दिवसीय सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य प्रशिक्षण और कौशल विकास के क्षेत्र में नए क्षितिज खोजना है। प्रोफेसर ऑफ़ ओटोलैरिन्गोलोजी हेड एंड नेक सर्जरी के यूनिर्वसटिी ऑफ़ साउथ फ्लोरिडा कॉलेज (यूएस) के डा. जे स्कॉट ने कहा कि रोबो विधि के प्रचलन से सर्जरी की जटिलताएं कम होंगी। इसे राष्ट्रीय स्तर पर सुविधाओं और दक्ष डाक्टरों के साथ प्रारंभ करने की जरूरत है। दरअसल, भारत गंभीर बीमारियों के उच्च प्रसार वाले देशों में से एक है, जिसकी बड़ी आबादी के कारण दुनिया में सबसे ज्यादा सर्जरी की आवश्यकता होती है।

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