लैंडफिल में जमे जहरीले कचरे के निस्पादन में प्रशासन की अनदेखी, दिल्लीवासियों की सेहत के खतरा! -गंध हवा के जरिए कैंसर, फेफड़ा और सन तंत्रिका विकृतियों को दे रहे हैं न्यौता

लैंडफिल जानलेवा, मिथेन, एसओटू, एनओटू, वोलोटाइज जैसी अति खतरनाक गैसों का होता रहता है रिसाव -8 से 10 किलोमीटर तक हवा में तैरती गंध वाली जहरीली गैसें

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली ,सभी लैंडफिल साइट से मिथेन, एसओटू एनओटू, वोलोटाइज जैसी अति खतरनाक गैसों का लगातार रिसाव जारी रहता है। विशेषज्ञ डाक्टरों के अनुसार कि ये गैसे तब और ज्यादा आबादी के लिए खतरनाक साबित हो जाती है जब उसका कुछ भाग अवजल में गिर जाता है या फिर फटने से बिखर जाता है। इन गैसों से अंधता, आर्गन फेल्योर, अपंगता, प्रजनन पण्राली पर तेजी कुप्रभाव पड़ने की आशंका रहती है। ये गैसे हवा में तेजी से फैलती है, जिसका असर कम से कम 8 से 10 किलोमीटर के दायरे को कवर करता है। नियमानुसार ऐसे क्षेत्र को ढंकना चाहिए वहां आबादी नहीं होनी चाहिए। केंद्रीय प्रदूषण नियंतण्रबोर्ड (सीपीसीबी) के निर्देशन में दिल्ली राज्य प्रदूषण नियंतण्रसमिति द्वारा कराए गए हालिया अध्ययन में यह तथ्य सामने आए हैं। अध्ययन में दिल्ली सरकार को सिफारिश की है कि राजधानी में गाजीपुर, तुगलकाबाद, भलस्वा सेनेट्री लैंडफिल की स्थिति बेहद खतरनाक हालत में है। इसके आसपास से गुजरने वाले हर दिन लाखों वाहनों का दबाव भी है। गाजीपुर सेनेट्री लैंडफिल के आसपास सघन आबादी बस चुकी है। जिससे लोग तेजी से अस्थमा समेत अन्य सांस व त्वचा संबंधी बीमारियों से गिरफ्त में आ रहे हैं।
प्रमुख सिफारिशें:
या तो लैंडफिल कचरे का निस्पादन तेजी गति से किया जाए। आबादी को शिफ्ट किया जाए। हर पल निकल रही जहरीली गैस, तेज दुर्गन्ध से लोगों की हालत तेजी से बिगड़ रही है। उनमें सन तंत्रिका पण्राली विकृति के साथ ही फेफड़े और ब्लड कैंसर जैसे मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे मरीजों की मौजुदगी दिल्ली विविद्यालय के वीपी पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट, जीटीबी हास्पिटल से संबंद्ध दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट, एम्स, सफदरजंग और जनकपुरी स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में पहुंच रहे मरीजों से भी की जा सकती है।
ऐसे चला पता:
यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल कॉलेज से संबद्ध गुरु तेग बहादुर अस्पताल, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के सामुदायिक चिकित्सा विभाग और इंटरनल मेडिसिन के वैज्ञानिकों ने 567 मरीजों पर यह अध्ययन तैयार किया है।
सलाह:
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि स्वसन पण्राली को प्रभावित करने वाले जहरीली हवा फेफड़े की झिल्लियों को क्षतिग्रस्त कर सकती है। जिससे दमा, अस्थमा, क्षयरोग, त्वचा, मुंह गला संबंधी कैंसर की संभावनाओं को बढ़ाता है। चूंकि गाजीपुर में कूड़े के विशालकाय ढेर है ऐसे ही हालत अन्य लैंडफिल का है। आसपास नाला है। आए दिन दूषित कूड़े का ढेर नालों में गिरता रहता है। नाले का अवजल पहले से ही अत्यंत प्रदूषित है, इसमें अति जहरीली गंध उस क्षेत्र के लोगों को तेजी से कई अन्य असाध्य रोगों से ग्रस्त हो सकते हैं।

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