राहत की बात : हीमोफिलिक मरीजों का दर्द होगा कम, नया इंजेक्शन हुआ विकसित -आईसीएमआर जल्द ही पायलट प्रोजेक्ट के तहत मरीजों को मुहैया करेगा मुफ्त में -वर्तमान में लगने वाला इंजेक्शन देता है असहनीय दर्द

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भारत चौहान नई दिल्ली, हीमोफिलिया मरीजों के लिए राहत की खबर है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ऐसे रोगियों की शुरुआती पहचान और दर्द को कम करने के लिए एक ऐसा इंजेक्शन विकसित कर रहा है जिसे नसों की बजाय उनके शरीर के किसी भी हिस्से में लगाया जा सकेगा। वैज्ञानिकों का तर्क है कि वर्तमान में उन्हें जो इंजेक्शन लगाया जाता है उसे नसों में ही लगाते हैं, जिससे उन्हें बेहद दर्द सहना पड़ता है। यह दर्द उन्हें कई बार कई दिनों तक रहता है। उन पर अन्य प्रकार की दर्द निवारक दवाएं बेअसर साबित होती है। दर्द देने वाला इंजेक्शन हर तीन हफ्ते के अन्तराल में लगाया जाता है।
आईसीएमआर में माइक्रोबायलॉजी डिविजन के मुख्य वैज्ञानिक डा. एस राज ने कहा कि चूहों और जानवरों पर किए गए क्लीनिकल ट्रायल के सकारत्मक परिणाम मिले है। इसे अगले कुछ माह के अंदर मनुष्य पर परीक्षण की तैयार की जा रही है। विभिन्न विशलेषणात्मक अध्ययनों के मिलान के बाद इसे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), डा. राममनोहर लोहिया अस्पताल, यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साईसेज (यूसीएमएस) से संबद्ध गुरु तेग बहादूर अस्पताल, वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज के सफदरजंग अस्पताल और मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के लोकनायक अस्पताल में पंजीकृत होने वाले हीमोफिलिक मरीजों पर लगाया जाएगा। यह सुविधा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की पहल पर पायलट प्रोजेक्ट के तहत मुफ्त में प्रदान की जाएगी। इसमें आर्थिक मदद वि स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और अन्य कई अन्तरराष्ट्रीय संगठन कर रहे हैं।
नए इंजेक्शन की खास बातें:
सफदरजंग अस्पताल के इंटरनल मेडिसिन के प्रो. डा. एचएस मलिक के अनुसार इस समय मौजूद इंजेक्शन प्रत्येक दो से तीन हफ्तों में नसों में इंजेक्शन लगवाना जरूरी होता है। यह प्रक्रिया बेहद पीड़ा दायक होती है। इसका उपचार भी महंगा है।
विकसित इंजेक्शन नसों के बजाए अब मरीज त्वचा में ही ले सकेगा। यह इंजेक्शन मरीजों को हफ्ते में सिर्फ एक बार लगाना होगा। यह प्रक्रिया ठीक वैसी ही होगी जैसे मधुमेह रोगी त्वचा में इंसुलिन लेते हैं। हीमोफीलिया के उपचार में नए विकल्प उपलब्ध होने के कारण अब उपचार से संबंधित प्रोटोकॉल पूरी तरह बदल जाएगा।
यह भी:
लोकनायक अस्पताल के हीमोफीलिया सेंटर के प्रमुख डा. नरेश गुप्ता के मुताबिक हीमोफीलिया के लिए रक्त में मौजूद फैक्टर आठ और नौ नामक प्रोटीन जिम्मेदार हैं। फैक्टर आठ की कमी के कारण हीमोफीलिया ए और फैक्टर नौ की कमी के कारण हीमोफीलिया बी होता है। हीमोफीलिया ए से पीड़ित मरीजों को प्रत्येक हफ्ते फैक्टर आठ के तीन इंजेक्शन लगाया जाता है। जबकि हीमोफीलिया बी वाले मरीजों को हर हफ्ते फैक्टर नौ के दो इंजेक्शन लेने पड़ते हैं। ये इंजेक्शन नसों में दिए जाते है और प्रक्रीया पीड़ादायक होती है। दिल्ली में इस समय हीमोफीलिक सोसायटी के तहत 1500 गंभीर हालत वाले मरीज रजिस्र्टड हैं। देश में यह संख्या करीब 16 हजार रिकार्ड में दर्ज है। लेकिन अनुमान है कि देश की कुल आबादी का 15 फीसद लोग हीमोफीलिक मरीज अनुवांशकीय विकृतियों की वजह से इस बीमारी की गिरफ्त में है। जिनकी पहचान के लिए फिलहाल हमारे पास कोई तंत्र नहीं है।

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