ज्ञानप्रकाश
नई दिल्ली , बच्चों के पैरों के मुड़े होने की जन्मजात विकृति मुरपाद (क्लबफुट) की जांच और इलाज में बच्चियों के मामले में अधिक लापरवाही बरती जाती है। इस शोध के मुताबिक इस बीमारी के दोबारा फॉलोअप और जांच के लिए बच्चों के मुकाबले बच्चियां 2.6 गुना कम आती हैं। एम्स के एक शोध में यह दावा हुआ है। इस शोध को हाल में ऑर्थोपेडिक जर्नल ने प्रकाशित किया है।
एम्स के प्रोफेसर और शोधकर्ता प्रोफेसर डा. शाह आलम के अनुसार उनके शोध का मकसद यह जानना था कि क्लबफुट से पीड़ित कितने मरीज दोबारा जांच और इलाज के लिए आते हैं। बच्चियों के मामले में परिजन अधिक लापरवाही बरतते हैं। तीन से चार बच्चों वाले परिवार में बच्चियों के दोबारा फॉलोअप को नजरंदाज कर दिया जाता है। एम्स में क्लबफुट को लेकर चलने वाले क्लीनिक में हर सप्ताह 70 से 80 मरीज आते हैं।
क्या है क्लबफुट:
यह एक जन्मजात बीमारी है। इसमें बच्चे का एक या दोनों पैर टखने की अंदर की तरफ मुड़े होते हैं। इलाज न होने होने की सूरत में मरीज को पैर टेढ़ा करके चलना पड़ता है। हर एक हजार में से एक बच्चे को यह समस्या आती है। इससे पीड़ित पचास फीसदी लोगों के दोनों पैर प्रभावित होते हैं। तकनीकी विकास से इसका इलाज संभव हो पाया है। अगर जल्दी इसका उपचार कराया जाए तो यह पूरी तरह ठीक हो सकती है। जेनेटिक कारणों के अलावा अधिक स्टेरॉयड दवाओं का इस्तेमाल, खून की कमी या जुड़वा बच्चे होने की सूरत में गर्भ में नवजात के पैरों का सामान्य विकास नहीं हो पाता, जिसकी वजह से पैर विकृत या विकलांग हो जाते हैं। भले ही क्लबफुट को सुधारा नहीं जा सकता है, लेकिन ज्यादातर मामलों में यह देखा जाता है कि जिन बच्चों का इलाज जल्दी हो जाता है, वे बड़े होने पर सामान्य जूते पहन सकते हैं और सामान्य और सक्रिय जीवन जीते हैं। समय पर उपचार कराने के बाद बच्चों को इस विकार से छुटकारा दिलाया जा सकता है और उन्हें चलने-फिरने में सक्षम बनाया जा सकता है।
कारण:
यह गर्भ में एम्नियोटिक द्रव की कमी से संबंधित है जो इस विकार की आशंका को बढ़ा सकता है। एम्नियोटिक द्रव फेफड़ों, समग्र मांसपेशियों और पाचन तंत्र के विकास में मदद करता है। गर्भावस्था के दौरान एक और कारण धूम्रपान हो सकता है जो बच्चे में इस विकार को जन्म देने की आशंका को बढ़ाता है। अंत में, जिन बच्चों का पारिवारिक इतिहास है, उनके इस विकार से पीड़ित होने का सबसे ज्यादा जोखिम है।