अब गर्भवती महिलाओं को मिलेगा ममता मातृत्व सुरक्षा कार्ड, इस एक कार्ड से होंगी सभी जांच -कुपोषित मुक्त हो रहे हैं बच्चे, -पैरेंटिंग से अनपढ़ माता-पिता के साथ ही बच्चों की बौद्धिक क्षमता में हो रहा है सुधार

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली , प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के सरकारी अस्पतालों में गर्भवती और नवजात शिशुओं की सुविधा के लिए पहल की गई है। अब गर्भवती महिलाओं और शिशुओं का मदर एंड चाइल्ड प्रोटेक्शन कार्ड (मातृत्व शिशु सुरक्षा कार्ड) से इलाज होगा। अस्पतालों में गर्भवती, प्रसूता और नवजात के लिए अब यही एक कार्ड बनाया जाएगा। इस कड़ी में जन्म के बाद मां और शिशु को कुपोषण से बचाने के लिए ममता माताृत्व शिशु सुरक्षा कार्ड असरदार साबित हो रहा है। इस एक कार्ड में ही मां और बच्चे की पूरी जानकारी देने के साथ ही उसका वजह, शिशु को स्तनपान कराने की प्रवृत्ति, घर पर ही मां कैसे बच्चे को घर के ही बने भोज्य पदाथरे के जरिए पोषित आहार दे। उसकी बौद्धिक क्षमताओं का विकास खेल खेल के जरिए दे। इस पहल से गर्भवती महिलाओं और प्रसूताओं को कागजों के बोझ से निजात मिल मिलने के साथ ही जच्चा बच्चा की सेहत में भी सुधार दर्ज किया जा रहा है।


सकारात्मक असर:
पोषण विशेषज्ञ बीएस यादव के अनुसार स्वास्थ्य विभाग की निगरानी में मदर चाइल्ड प्रोटेक्शन कार्ड (एमसीपीसी) के तहत कम्यूनिटी बेस्ड मैनेजमेंट ऑफ एक्यूट मेलन्यूट्रिशियन (सीमेम) कार्यक्रम से 0 से 6 साल के बच्चों की सेहत तो बन ही रही है इसके साथ ही कुपोषण की संभावनाओं से मुक्ति मिल रही है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) की निगरानी में सीमेम के तहत राजस्थान के 13 जिले के 41 ब्लॉक के 9640 कुपोषित बच्चे का कार्यक्रम किया गया। जिसमें आंगनबाडी केंद्रों के जरिए पंजीकृत करीब 80 फीसद बच्चों को कुपोषण मुक्त श्रेणी में लाने में सफलता मिली। इसी तरह से इंटीग्रेटिड मैनेजमेंट ऑफ एक्यूट मेलन्यूट्रिशियन (ईमेम) के तहत बच्चों को पोषणयुक्त बनाने के लिए वर्ष 2018-2019 में 20 जिले के 45 ब्लाक में करीब 10 हजार बच्चों का पंजीकरण किया गया। इसके तहत आशावर्कर्स, एएनएम की मदद से करीब 69 फीसद बच्चों को स्वस्थ एवं हष्ट पुष्ट बनाया गया।
सात जिलों में यूनिसेफ ने हासिल की 81 फीसद सफलता:
पहले चरण में कुपोषण मुक्त बनाने के लिए तीन जिलों का चयन किया गया। इसमें आंगनबाडी केंद्रों के जरिए बांसवारा जिला के 1114 बच्चों को शामिल किया गया जबकि ढुंगरपुर के 963 और उदयपुर जिला के 2106 बच्चों को शामिल किया गया। इनमें 0 से 6 वर्ष की आयु के ग्रामीण बाहुल्य क्षेत्र के बच्चों को शामिल किया गया। जिसकी क्रमश: सफलता दर 81 फीसद, 87 फीसद और 81 फीसद रही। इसका तात्पर्य यह है कि कुल चयनित बच्चों को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए 81 से 87 फीसद तक सफलता हासिल की गई। इसी तरह से दूसरे चरण में चार अन्य जिलों को चुना गया। जिसमें बारमेर के 253, जालोर के 346, प्रतापगढ़ के 285, सिरोही के 963 बच्चों को शामिल किया गया। जिन्हें कुपोषण मुक्त करने के साथ ही बौद्धिक क्षमता का विकास करने में 81 फीसद तक सफलता मिली। इन सात जिलों में कुल 6030 बच्चों (0-6 वषर्) को शामिल किया गया।
वि में तीन करोड़ बच्चे मौत के कगार पर:
यूनिसेफ रिपोर्ट लाखों छोटे एवं बीमार बच्चे और महिलाएं प्रत्येक वर्ष मर रही हैं क्योंकि उन्हें गुणवत्तापूर्ण देखभाल की सुविधा नहीं मिलती है जो उनका अधिकार है और यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
वि स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और संयुक्त राष्ट्र बाल निधि (यूनिसेफ) सहित वैिक गठबंधन की एक नई रिपोर्ट के अनुसार समयपूर्व पैदा हुए लगभग तीन करोड़ बच्चे मौत की कगार पर हैं। इन बच्चों को जीवित रखने के लिए विशेष देखभाल की आवश्यकता है।
रिपोर्ट सुझाव:
यूनिसेफ द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि नवजात शिशुओं को सही गुणवत्ता की देखभाल मिले तो प्रत्येक वर्ष लगभग 1.7 मिलियन शिशुओं को बचाया जा सकता है।
– यदि नवजात बच्चों को उचित देखभाल मिले तो 2030 तक 68 फीसद बच्चों को मृत्यु से बचाया जा सकता है।
-यदि मां और बच्चे को जन्म लेने वाले स्थल पर ही सही देखभाल दी जा सके तो 81 देशों में 2.9 मिलियन महिलाओं की जान बचाई जा सकती है।
-समय से पूर्व जन्म लेने वाले बच्चों में मस्तिष्क की समस्या रहती है, गंभीर जीवाणु संक्रमण या पीलिया जैसे गंभीर बीमारी के कारण मौत तथा क्षअमता का खतरा रहता है.
-इसके अलावा उनके परिवारों पर वित्तीय और मनोवैज्ञानिक दबाव उनके ज्ञान, भाषा और भावनात्मक विकास को प्रभावित कर सकता है.
– वर्ष 2017 में लगभग 2.5 मिलियन नवजात शिशु जन्म लेने के 28 दिनों में ही मृत्यु को प्राप्त हो गये.
– इन 2.5 मिलियन बच्चों में से 80 फीसद बच्चे कम वजन के थे जबकि दो तिहाई बच्चे जन्म से पहले पैदा हुए।

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