जतंर मंतर: मिनी भारत में तब्दील हुआ! -वि मानवाधिकार दिवस पर यहां सोमवार को जुटे देश के हर प्रांत से समर्थक -पोस्टर, बैनर से अटा एतिहासिक स्थल, चाक चौबद थी सुरक्षा -संसद मार्ग तक जाने की पाबंदी पर लगी थी रोक, मायुस हुए मानवता का पाठ पढ़ाने वाले

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली, इंसानी अधिकारों को पहचान देने और वजूद को अस्तित्व में लाने के लिए, अधिकारों के लिए जारी हर लड़ाई को ताकत देने के लिए हर साल 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस यानी यूनिवर्सल ह्यूमन राइट्स डे मनाया जाता है। पूरी दुनिया में मानवता के खिलाफ हो रहे जुल्मों-सितम को रोकने, उसके खिलाफ संघर्ष को नई परवाज देने में इस दिवस की महत्वूपूर्ण भूमिका है। इसी उद्देश्य की पूर्ति करने की आकांक्षा लिए सोमवार को एतिहासिक जंतर मंतर पर मानव अधिकारों की आवाज दिन भर गुंजती रही। पोस्टर, बैनर से यहां पैर रखने की जगह नहीं थी। लोग इस ठंड में भी जमीन पर अपनी आवाज बुलंद करने में व्यस्त दिखे। मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के यह रंज था कि उन्हें सुरक्षा के नाम पर आज संसद मार्ग तक शांति पूर्ण रैली निकालने पर पाबंदी लगना अनुचित है। उनके अधिकारों का सरकार के इशारे पर हनन किया गया।
मिनी भारत की दिखी झलक:
सुरक्षा की दृष्टि से इस बार अधिकार बुलंद करने देश के सुदूर राज्यों से आए मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को एक सीमित दायरे में ही कैद कर दिया गया था। जंतर मंतर पुलिस पिकेट से लेकर 7 जंतर मंतर (जनता दल यूनाइटेड) के मुख्य द्वार के दोनो तरफ सुरक्षा बलों ने बेरीकेड्स लगा दिया था। जहां पर सीआईएसएफ, दिल्ली पुलिस, सीआईडी समते अन्य जांच एजेंसियों के नुमाइंदे किसी अनहोने की आशंका के मद्देनजर चप्पे चप्पे पर नजर रखे हुए थे। बावजूद इसके इस छोटे ही दायरे में दृश्य मिनी भारत में तब्दील हो गया था। जंतर मंतर के उत्तरी छोर की तरफ जहां लोकतंत्र की आवाज का शामियाना लगा हुआ था इस मंच पर कर्नाटका, उड़िसा, बंगाल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, बिहार, उत्तर प्रदेश के करीब 200 से ज्यादा मानव कार्यकर्ता अपने राज्यों की ही भेषभूषा में रचे थे। वहीं दक्षिण क्षोर पर जनता की आवाज और अहिरा चार्टर ऑफ डिमांड्स थीम पर आल इंडिया ह्यूमन राइट्स एसोसिएशन के 400 से अधिक कार्यकर्ता देश के 27 राज्यों से अपनी आवाज बुलंद करने में मस्त दिखे। इसमें महिलाएं जहां अपने हाथों में लिए पोस्टर बैनर लेकर अपनी मांगों की ओर सरकार का ध्यानाकषिर्त कर रहे थे। दमन दीयू, असम, मिजोरम, तेलंगाना, त्रिपुरा, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, कोल्हापुर समेत अन्य प्रदेशों से 50-50 महिलाओं की ऐसी टीम इस आंदोलन में सरीख हुई जो किसी भी कीमत पर मानव अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने के पक्ष में थी। अहिरा के संस्थापक अध्यक्ष डा. एमयू दुआ ने नया विकल्प, जनतंत्र बचाओं की मांग की। डा. दुआ ने कहा कि मानवाधिकार की सुरक्षा के बिना सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक आजादी खोखली है। मानवाधिकारी की लड़ाई हम सभी की लड़ाई है। वि भर में नस्ल, धर्म, जाति के नाम पर मानव द्वारा मानव का शोषण हो रहा है। अत्याचार एवं जुल्म के पहाड़ तोड़े जा रहे हैं। इस पर अंकुश लगना चाहिए। मानव अधिकार संगठन के सरदार सीजे सिंह ने कहा आज सर्वत्र मानव अधिकारों का अतिक्रमण, उल्लंघन और विलोपन हो रहा है। भाषायी, क्षेत्रीय तथा धार्मिक उन्माद जैसी निर्थक प्रवृत्तियां सिर उठा रही है। इंसानियत का गला घोंटा जा रहा है और भारत की साझी संस्कृतियों पर कुठाराघात किया जा रहा है।
100 से अधिक संगठनों ने अपनी तरह से मांग की:
जंतर मंतर पर सड़क के दोनों किनारों पर पुलिस ने 10 गज से लेकर 20 गज तक जगह सुनिश्चित की थी। इसमें सिर्फ दो पंडाल ही ऐसे थे जिन्हें 200 गज के दायरे में शांति पूर्ण तरीके रैली सभा, प्रदर्शन करने की अनुमति दी थी।
दिवस एक मांगें अनेक:
मानव अधिकार क्या है के प्रश्न के जबाव में नीति ने कहा कि किसी भी इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है मानवाधिकार है। भारतीय संविधान इस अधिकार की न सिर्फ गारंटी देता है, बल्कि इसे तोड़ने वाले को अदालत सजा देती है।
एतिहासि:
भारत में 28 सितंबर 1993 से मानव अधिकार कानून अमल में आया। 12 अक्टूबर, 1993 में सरकार ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन किया। आयोग के कार्यक्षेत्र में नागरिक और राजनीतिक के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार भी आते हैं. जैसे बाल मजदूरी, एचआईवी/एड्स, स्वास्थ्य, भोजन, बाल विवाह, महिला अधिकार, हिरासत और मुठभेड़ में होने वाली मौत, अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकार।

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