आईसीएमआर: देश में बांझपन में 4 फीसद की वृद्धि! -देर से गर्भावस्था आने की शिकायत भी बढ़ी है

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ज्ञानप्रकाश
नई दिल्ली ,देश में बांझपन की दर में हुई खतरनाक वृद्धि को देखते हुए विशेषज्ञों ने सिफारिश की है कि गर्भावस्था की योजना बना रहे जोड़ों के लिए प्रजनन स्वास्थ्य पर उचित शिक्षा और परामर्श पाना बहुत आवश्यक है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक डा. बलराम भार्गव के अनुसार सही समय पर सही इलाज बांझपन की समस्या को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण है। देश में करीब लगभग 4 फीसद जोड़े बांझपन से पीड़ित हैं। आईसीएमआर द्वारा कराए गए हालिया अध्ययन में यह पाया गया है।
निष्कषर्:
विभिन्न आयु समूहों में, प्राथमिक बांझपन का समग्र प्रसार 3.9 से 16.8 फीसद के बीच होने का अनुमान है। गर्भावस्था में देरी, उम्र, और सुस्त जीवन शैली (तंबाकू, धूम्रपान, आहार, तनाव) की बढ़ती दर बांझपन के मुख्य कारण हैं। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में दुनिया भर में 5-70 फीसद तक युवा वयस्कों में तनाव की समस्या है। यह तनाव आगे चलकर विभिन्न अन्य समस्याओं को जन्म देता है, जिनमें पुरु षों और महिलाओं दोनों के बांझपन का बढ़ना शामिल है। दोनों में अलग-अलग जोखिम वाले कारक होते हैं। पुरुषों में बांझपन शराब और नशीली दवाओं के उपयोग, विषाक्त पदाथरे, धूम्रपान, उम्र, मोटापे जैसी स्वास्थ्य समस्याओं, टेस्टोस्टेरोन, रेडिएशन, टेस्टिकुलर में बेहद गर्मी और कीमोथेरेपी जैसे इलाजों के कारण हो सकता है। जबकि महिलाओं में, बांझपन के लिए ओव्यूलेशन समस्याएं जैसे पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम,
ब्लॉक्ड फैलोपियन ट्यूब, गर्भाशय की समस्याएं, गर्भाशय फाइब्रॉएड, उम्र, तनाव, खराब आहार, अत्यधिक व्यायाम और शारीरिक गतिविधियां जिम्मेदार मानी जाती हैं।
यह भी:
डब्ल्यूएचओ के अनुमान के अनुसार दुनिया भर में लगभग 60 से 80 मिलियन जोड़े वर्तमान में बांझपन से पीड़ित हैं। एससीआई आईवीएफ अस्पताल की संस्थापक और निदेशक डा. शिवानी सचदेवा ने कहा बांझपन बढ़ाने वाले कारकों और उपलब्ध उपचार विकल्पों के बारे में लोगों को शिक्षित करने की आवश्यकता है। आज देश में बांझपन खतरनाक दर से बढ़ रहा है और इसलिए गर्भधारण की योजना बना रहे जोड़ों को प्रजनन सेहत पर उचित शिक्षा और परामर्श देना बहुत आवश्यक है। दिल्ली आईवीएफ र्फटििलटी रिसर्च सेंटर के डा. अनूप गुप्ता ने सही समय पर सही इलाज कराने पर जोर देते हुए कहा, आमतौर पर जो जोड़े गर्भधारण करने में असमर्थ होते हैं उन्हें 1-2 साल तक विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए। लेकिन समस्या यह है कि मरीज़ शुरु आत में स्त्री रोग विशेषज्ञ, स्थानीय विशेषज्ञ से मिलते हैं और फिर वे अपनी शादी के 5-7 साल बाद आईवीएफ विशेषज्ञ तक पहुंचते हैं।

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