ट्रांस फैट का इस्तेमाल करने वाले पंचतारा होटल्स, रेस्तरां प्रमुखों की अब खैर नहीं -इस्तेमाल करना बंद करें नहीं तो होगी कार्रवाई -इसके सेवन से दिल, इंसूलिन बनाने वाली छोटी आंतों, हृदय, मोटापा बढ़ता है यह -अमरीकी रेस्तरां में लग चुका है प्रतिबंध

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ज्ञानप्रकाश
नई दिल्ली। रेस्टोरेंट में ट्रांस फैट का इस्तेमाल लोगों के लिए कई जानलेवा बीमारियों का कारण साबित हो रहा है। ट्रांस फैट की मात्रा बढ़ने से मोटापा, मधुमेह और हृदय रोग हो सकता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने फूड सेफ्टी एंड स्टैंर्डड अथोरिटी ऑफ इंडिया (फसाई) को जारी निर्देश में कहा है कि वह तीन माह के अंदर दिल्ली समेत देशभर के रेस्टोरेंट, पबबार, पंचतारा होटल्स, ढाबों आदि में का सव्रे करे और यह पता लगाए कि उनके यहां मेहमानों को परोसे जा रहे भोज्य पदाथरे में ट्रांस फैट कितनी है, क्या वह नियंतण्रमें रहती है, इसके बाद जल्द ही सख्त गाइड लाइन तैयार करे। ताकि ट्रांस फैट का इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया जा सके।
स्वास्थ्य मंत्रालय हरकत में क्यों:
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सुदॉन ने कहा कि अमेरिकी रेस्तरां और किराने की दुकान पर मिलने वाली खाद्य वस्तुओं से त्रिम ट्रांस वसा पर फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) के प्रतिबंध के मद्देनजर उठाई गई है। एफडीए ने 2015 में ट्रांस वसा को असुरक्षित मानते हुए कंपनियों को इसे खत्म करने के लिए 18 जून, 2018 तक का समय दिया था। जो अब कानून का रूप ले चुका है। इसके बाद ही भारत सरकार ने यह फैसला लिया है कि वह पहले देशभर के रेस्तरां, किराना की दुकानों में मिलने वाले त्रिम ट्रांस फैट की स्थिति का जायजा ले, जिसके लिए केंद्र सरकार की स्वायत्त संस्था फसाई को निर्देश दिया गया है कि वह ब्यौरा मुहैया कराए। इसके उपरान्त इस प्रस्ताव को केबिनेट में रखा जाएगा। फिर पाबंदी लगाने पर विचार किया जाएगा।
विशषज्ञों की नजर में:
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में कार्डियलॉजी यूनिट के प्रो. डा. राकेश यादव के अनुसार ट्रांस वसा 100 से अधिक वषोर्ं से सबसे स्वादिष्ट जंक फूड पदाथरे का प्रमुख भाग रहा है। एफडीए का प्रतिबंध त्रिम ट्रांस वसा पर लागू होता है, जो कि वनस्पति तेल में हाइड्रोजन मिलाकर रासायनिक रूप से बनाए जाते हैं (आंशिक रूप से हाइड्रोजनीत तेल भी ट्रांस-वसा ही होता है)। ट्रांस वसा युक्त खाद्य पदाथरे को लंबे समय तक रखा जा सकता है, क्योंकि वे जल्दी खराब नहीं होते हैं और रेस्तरां इसे डीप फ्राइंग के लिए तेल के रूप में उपयोग करना पसंद करते हैं, क्योंकि इसे अक्सर अन्य तेलों की तरह बार-बार बदलने की आवश्यकता नहीं होती है। जो सेहत के लिहाज से बीमारियों को न्यौता देते हैं।
रेस्तरां में ट्रांस-फैट पर अविलंम लगे प्रतिबंध:
हार्ट केअर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पद्मश्री डा. के के अग्रवाल ने कहा, ट्रांस वसा रासायनिक प्रतिक्रिया की उपज है जो तरल वनस्पति तेल को ठोस मार्जरीन या शर्टनिंग में बदल देता है और यह तरल वनस्पति तेलों को रैनसिड होने से रोकता है। ट्रांस वसा एलडीएल को बढ़ाते हैं। वे सुरक्षात्मक एचडीएल भी कम करते हैं, सूजन को बढ़ाते हैं और रक्त वाहिकाओं के अंदर खून के थक्के जमने की स्थिति पैदा करते हैं।’
 ऐसे बनता है:
ट्रांस वसा वनस्पति तेलों में हाइड्रोजन अणु पम्प करके बनाया जाता है। यह तेल की रासायनिक संरचना को बदलता है और इसे तरल से ठोस में बदल देता है। प्रक्रिया में उच्च दबाव, हाइड्रोजन गैस और धातु उत्प्रेरक शामिल होते हैं – और अंत में बना उत्पाद मानव उपभोग के लिए बेहद अनुपयुक्त है। ‘ट्रांसफैट से समृद्ध खाद्य पदाथोर्ं में चीनी और कैलोरी अधिक होती है। समय के साथ, ये वजन बढ़ाने और यहां तक टाइप 2 मधुमेह के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। यह  दिल की समस्याओं को भी बढ़ाते हैं।

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