ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली , रीढ़ की असामान्य वक्रता की विशेषता वाले रीढ़ की विकृति आमतौर पर 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में पाई जाती है। हालांकि जागरूकता की कमी और चिकित्सा जांच की अनुपस्थिति के कारण,देश में बीमारी की देर से प्रस्तुति एक बड़ी समस्या बनी हुई है। देश में अपनी तरह की पहली पहल है एसोसिएशन ऑफ स्पाइनल सर्जन ऑफ इंडिया (एएसएसआई) ने शुरु आती पहचान बढ़ाने और जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से कई शहरों के स्कूली बच्चों के लिए एक प्रमुख स्कोलियोसिस स्क्रीनिंग कार्यक्रम शुरू किया है। स्क्रीनिंग कार्यक्रम दो साल में लगभग 1 से 1.5 लाख स्कूली बच्चों तक पहुंचने का लक्ष्य है। पहला चरण 9 शहरों के स्कूलों को लक्षित करेगा, जबकि स्क्रीनिंग कार्यक्रम को 14 शहरों तक विस्तारित करने की उम्मीद है।
एएसएसआई और स्पाइनल इंजूरी सेंटर के निदेशक डा. एचएस छाबड़ा ने सोमवार को यह जानकारी दी। डा. छाबड़ा ने बताया कि पहल के हिस्से के रूप में आम लोगों को रीढ़ की विकृति की पहचान करने में सक्षम बनाने के लिए ई-लर्निग कार्यक्रम शुरू करने के लिए कदम उठाने की योजना है। विशेष रूप से, कई ऑनलाइन आवेदन जैसे स्कोलीमीटर और एंगल मीटर लोगों को स्वयं रीढ़ की विकृति की जांच के लिए उपलब्ध हैं। एएसएसआई जागरूकता कार्यक्रम माता-पिता को उनकी उपलब्धता और उपयोग के बारे में भी शिक्षित करेगा।
जटिलताएं अनेक:
सरगंगाराम अस्पताल के डा. शंकर आचार्य के अनुसार स्कोलियोसिस में अधिकांशतया रीढ़ की हड्डी में टेढ़ापन पाया जाता है। छोटे बच्चों में रीढ़ की हड्डी में अधिक पायी जाती है। रीढ़ की कम सामान्य वक्रताओं में लॉडरेसिस शामिल हैं जिसमे निचली रीढ़ की हड्डी में टेढ़ापन देखा जाता है। किफोसिस -में ऊपरी रीढ़ की एक गोलाई में असामान्यता पायी जाती है। मेडिकल स्क्रीनिंग की अभाव में, किफोसिस अक्सर बच्चों में खराब मुद्रा के साथ दिखता होता है जब कि यह वास्तव में एक संरचनात्मक रोग है। जागरूकता की कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। रोग की देर से पहचान के पीछे एक प्रमुख कारक जानकारी का अभाव है। 10-18 वर्ष की आयु के बीच सबसे अधिक बार होने वाले रोग पर रोक लगाने के लिये यह महत्वपूर्ण है कि प्रारंभिक किशोरावस्था में स्थिति का पता लगाया जाए। विशेष रूप से लड़कों की तुलना में लड़िकयों में 7-8 गुना अधिक तेज से यह रोग बढ़ता है। अपने सामुदायिक जागरूकता अभियान के तहत दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोयम्बटूर, बंगलूरू, भुवनेर, इंदौर, लखनऊ और पटना के स्कूलों तक पहुंच गया है। अभियान के तहत, माता-पिता और बच्चों को इस विषय पर शिक्षित किया जाएगा और रीढ़ की हड्डी का परीक्षण उन बच्चों के लिए आयोजित किया जाएगा जोअध्ययन में भाग लेने के लिए तैयार होंगे।