जी-20 में प्रारम्भिक बाल देखरेख एवं विकास को प्राथमिकता हेतु नेशनल फोेर्सेस द्वारा (फोरम फॉर क्रैष एंड चाइल्ड केयर सर्विसेस) एक राष्ट्रीय परिचर्चा का आयोजन

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भारत जी 20 की अध्यक्षता कर रहा है और जी 20 में ‘महिला नेतृत्व विकास‘ मुख्य प्रतिबद्वताओं में एक है जिसमें महिलाओं के लिए समानता और गरिमा के साथ आगे बढ़ने के अवसरों की परिकल्पना है। इसी संदर्भ के साथ परिचर्चा के उद्वघाटन सत्र में मुख्य वक्ता, उमा महादेवन, आई.ए.एस, अतिरिक्त मुख्य सचिव, कर्नाटका सरकार एवं वासंथी रमन, अध्यक्षा, सी.डब्ल्यु.डी.एस ने अपने वक्तव्य में रखा कि ‘प्रारम्भिक बाल देखरेख प्रावधानों पर उचित ध्यान देने और निवेष से महिलाओं की भागीदारी कार्यबल में बढ़ेगी एवं अर्थव्यवस्था में वृद्वि होगी साथ ही बच्चों का सम्पूर्ण विकास भी सुनिष्चित हो पायेगा‘ देष में एक महत्वांकाक्षी राष्ट्रीय देखभाल नीति विकसित होनी चाहिए जो महिलाओं की कार्यबल भागीदारी को सक्षम करने एवं बाल देखभाल को केद्रीत हो।
महिलाओं की कार्यबल भागीदारी में कमी और बाल देखरेख प्रावधानों की अपर्याप्ता के बीच संबंध पर चर्चा में मुख्य कारण निकले है, राज्यों में पितृसत्ता, देखभाल कार्यों में लगी महिलाओं के कार्य को मान्यता ना मिलना और उनका अवेतनीक कार्य, बच्चों की देखभाल के पर्याप्त प्रावधान ना होना, बच्चों के लिए निरंतर निवेष में कमी, सरकार का बुनियादी ढांचों के निर्माण पर अधिक बल देना जब कि मानव संसाधन पर भी उचित निवेष की जरूरत है। सत्र के दौरान चुनौतियों के समाधान भी सामने आये जैसे असंगठित क्षेत्र में कार्यस्थल पर बाल देखभाल की व्यवस्था, सरकार की ओर से बच्चों के लिए अलग से योजना और प्रावधान, बाल देखभाल की जिम्मेदारी केवल महिला की ना होकर परिवार और सरकार की होनी चाहिए। इस सत्र मंे प्रतिष्ठित वक्ता, रीतु देवान, उप अध्यक्षा, इंडियन सोसाइटी फॉर लेबर इकोनोमिक और पूर्व अध्यक्षा, दी इंडियन एसोसियषन ऑफ वूमनस स्टेडी, साक्षी खुराना, वरिष्ठ विशेषज्ञा कौषल विकास, श्रम एवं रोजगार, नीति आयोग, सुनैना कुमार, कार्यकारणी निर्देषिका, थींक 20 भारत सचिवालय एवं सत्र संचालक सुमित्रा मिश्रा, कार्यकारणी निदेषिका, मोबाइल क्रैषिज की भागीदारी थी।

बाल देखभाल श्रमिकों के रूप में मान्यता और अच्छे कार्य स्थितियों को सुनिष्चित करने पर चर्चा का निष्कर्ष था, देखभाल श्रमिकों और उनके काम को औपचारित तौर पर मान्यता मिलनी चाहिए इसके परिणाम स्वरूप इस क्षेत्र में महिलाओं को काम के मौके मिलेगें और उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिष्चित हो ताकि देखभाल अर्थव्यवस्था में वृद्वि हो सके। हमारे देष में देखभाल कर्ता और घरों में कार्य करने वाली महिलाओं के काम को किसी भी नीति या कानून के तहत मान्यता नहीं दी गई है। आई.एल.ओ. ने देष भर में बाल देखभाल एवं अवेतनीक कार्य पर जानकारी जागरूकता का काम शुरू किया है ताकि महिलाओं के काम को मान्यता मिले इसके लिए पैरवी भी कर रहा है। इस सत्र में वक्ता सोफी, नेषनल लॉ युनिवसटी दिल्ली, विष्ष्टि सैम, राष्ट्रीय परियोजना समन्वयक, केयर इकोनॉमिक एट आई.एल.ओ, दीपा सिन्हा, एसिस्टेंट प्रोफेसर, एट दी स्कूल ऑफ लीब्रेाल स्टेडिस, अम्बेडकर विष्वविद्यालय दिल्ली, संत्र का संचालन सोना मित्रा, प्रधान अर्थषास्त्री, इनिसेटिव फॉर वाट वर्करस टू एडवास वूमन एण्ड गर्लस इन दी इकोनोमि द्वारा किया जाऐगा।
महिलाओं और बच्चों से संबंधित नीतिगत प्राथमिकताओं के संदर्भ में मौजूद अंतसंबंधों को उभारना चर्चा से निकला कि बाल देखभाल से संबंधित नीतियों को सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से होना चाहिए। प्राईवेट सेक्टर अब समझने लगा है कि महिला सशक्तिकरण जरूरी है और
इसके लिए नीति और प्रावधानों का होना जरूरी है, हमारे देष में नीति और कानून तो है पर उनका पूरी तरह से पालन नहीं हो पा रहा है। महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी बढ़ाने के लिए उनका कौषल बढ़ाने की जरूरत है ताकि वह पूरी क्षमता और गुणवत्ता के साथ अपनी भागीदारी निभा सके। परिचर्चा से सुझाव निकला कि बाल देखभाल और महिलाओं से संबंधित नीति और कानून के कार्यन्वयन में स्थानीय निकाय की भागीदारी बढ़ाने की आवष्यकता है इस सत्र में वक्ता रंजना अग्रवाल, उपाध्यक्षा, एफ.एल.ओ एट एफ.आई.सी.सी.आई, एलीना समानतरोइ, फोलो एट दी वी.वी. गिरी नेषनल लेबर इंस्टीटृयुट, अर्चना व्यास, उप निर्देषक, मेलिन्डा गेटस फांउडेषन, भारत, सुजीत रंजना, सहायक निर्देषक, न्युट्रेषन, टाटा ट्रस्ट इस सत्र का संचालन हयु नही बन, मुख्य सोसल पोलिसी, यू.एन.आई.सी.ई.एफ ने किया।
बाल देखभाल के लिए आर्थिक तर्क-सरकार, बाजार, समुदायों, परिवारों और समग्र राष्ट्रों के लिए निवेष पर प्रतिफल इस सत्र में केयर डायमंड- राज्य, बाजार, समुदाय और परिवार को सक्रिय करने में प्रत्येक हितधारकों की भूमिका निर्धारित करने, देश में पर्याप्त एवं गुणवत्तापूर्ण बाल देखरेख की व्यवस्था, महिलाओं की आर्थिक कार्यों में भागीदारी बढ़ाने के साथ-साथ बच्चों के सम्पूर्ण विकास के लिए मौके देता है जो कि परिवार, देष और विष्व स्तर पर सकारात्मक असर डालता है। प्रारम्भिक बाल देखरेख एवं विकास केवल महिलाओं की ही जिम्मेदारी नहीं है इसमें परिवार, समाज और सरकार सभी को पहल करने की आवष्यकता है सामूहिक पहल के बिना महिलाओं की कार्यबल में समान भागीदारी और बच्चों के सम्पूर्ण विकास की परिकल्पना अधूरी है। सत्र वक्ता सुमित्रा मिश्रा, कार्यकारणी निर्देषिका, मोबाइल क्रैषिज, द्वारा कार्यक्रम को संबोधित किया।
भारत के अलग-अलग नेषनल फोर्सेस के 10 राज्यों से 70 प्रतिनिधि एवं विशेषज्ञ की भागीदारी रही। परिचर्चा के अन्त में तय हुआ कि चर्चा से निकले सुझाव और सिफारिषें को आगे फोर्सेस के राज्य अध्ययों के साथ विभिन्न स्तरों पर जी 20 जनादेष के साथ लगातार जुड़ाव के लिए एक स्पष्ट रोड मैप तैयार किया जाऐगा ताकि देखभाल अर्थव्यवस्था महिलाओं के आर्थिक सषक्तिकरण के लिए बाधाओं से निपटने के लिए प्राथमिकता वाला क्षेत्र बन सके।

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