वजूद और आत्म सम्मान खोने से कमजोर हो जाती है रिश्तों की डोर -एम्स के मानसिक स्वास्थ्य उत्सव में जुटे दिग्गज

हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा ने दिए टिप्स कहा हंसना क्यों जरूरी है

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भारत चौहान नई दिल्ली , प्यार और रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए एक दूसरे के प्रति सम्मान और समर्पण तो जरूरी है ही लेकिन आत्मसम्मान और वजूद खोना रिश्तों की डोर को कमजोर कर सकता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में शुक्रवार को आयोजित मानसिक स्वास्थ्य उत्सव में विशेषज्ञों ने यह बात कही। मानिसक स्वास्थ्य पर आयोजित इस उत्सव में मनोचिकित्सकों से लेकर हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा, डीयू के छात्रों की नाटक मंडली,उर्दू में मानिसक स्वास्थ्य पर दास्तांगोई के जरिए मानिसक स्वास्थ पर के बारे में जागरु कता पर फोकस किया गया। एम्स में मानिसक स्वास्थ्य को लेकर जगह-जगह बने स्टॉल के जरिए लोगों को तनावमुक्त होने का संदेश दिया गया।
हंस कर शुरूआत:
मेंटल हेल्थ उस्तव की शुरु आत सुबह नौ बजे हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा के कार्यक्रम से हुई जहां उन्होंने लोगों को हंसाते हुए हंसने की जरूरत के बारे में बताया कि किस तरह हंसना अवसाद से लड़ने और मन को शरीर को स्वस्थ रखने में मददगार है। इसके बाद टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस की प्रोफेसर और मनोचिकित्सा काउंसलिंग हेल्पलाइन की निदेशक डॉक्टर अपर्णा जोशी ने बताया कि रिश्तों में समर्पण जरूरी है लेकिन जब हम अपना वजूद खोने लगते हैं तो रिश्ता कमजोर होने लगता है। उन्होंने बताया कि रिश्तों की डोर को मजबूत रखने के लिए आत्मसम्मान नहीं खोना चाहिए।
बुलिंग के शिकार बच्चों की काउंसिलिंग जरूरी:
वहीं एक अन्य सत्र में गंगाराम अस्पताल के बाल मनोचिकित्सक डा. अजय गुप्ता ने बुलिंग के शिकार बच्चों का उदाहरण देते हुए बताया कि अगर बच्चा स्कूल जाने से घबरा रहा है या फिर अपने दोस्तों के पास जाने से डरता है तो संभव है कि वह बुलिंग का शिकार है। ऐसे में बच्चे को तुरंत काउंसलिंग और उपचार देना चाहिए। उन्होंने बताया कि 5 से 12 फीसद बच्चों में एडीएचडी की समस्या भी पाई जाती है। ध्यान की कमी और अत्यधिक सक्रियता की बीमारी को एडीएचडी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि अगर बच्चा स्कूल में ध्यान न लगाएं या फिर अधिक शरारत करता हो तो हमें मनोचिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। एडीएचडी से पीड़ित बच्चों के अलावा उनके परिजनों और शिक्षकों की काउंसलिंग भी जरूरी है। उन्होंने बताया कि इस बीमारी से बच्चों को ठीक करने के लिए काउंसलिंग के अलावा उसकी डाइट में भी बदलाव करना चाहिए। बच्चे को कम कैलोरी वाला भोजन देना चाहिए और साथ ही ऐसे बच्चों की ऊर्जा को खेलकूद की गतिविधियों में इस्तेमाल करने चाहिए।

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