उत्तर भारत में सबसे तेज गति से बोन मैरो ट्रांसप्लांट कर 1020 लोगों को मिला जीवनदान -बीएलके सेंटर ने किया दावा,नेशनल स्टेमेल ट्रांसप्लांट रिसर्च की पेशेंट रजिस्ट्री में रिकार्ड दर्ज

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भारत चौहान नई दिल्ली , बीएलके सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल प्रशासन ने वर्ष 2010-2019 के दौरान करीब 1020 जिंदगी से जूझ रहे विभिन्न रोगियों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) के जरिए दर्द मुक्त नई जिंदगी दी है। करीब 9 साल के दौरान किए गए उत्तर भारत में सबसे तेज गति से बीएमटी तकनीक से इस प्रक्रिया को अंजाम दिया गया है। इंडियन स्टेमसेल ट्रांसप्लांट रिसर्च की नेशनल पेशेंट रजिस्ट्री में सभी मामलों को दर्ज भी कराया गया है।
बृहस्पतिवार को अस्पताल में सेंटर फॉर हेमेटो आंकोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट के वरिष्ठ सलाहकार और निदेशक डा. धर्मा चौधरी ने कहा कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट के साथ, हम ल्यूकीमिया, मायलोमा, थैलेसीमिया जैसी असाध्य बीमारियों का सफलतापूर्वक इलाज कर रहे हैं। रोगियों की गुणवत्ता में सुधार भी ला रहे हैं। यह गंभीर और जानलेवा बीमारियों से लड़ने के लिए एक अभिनव विकल्प के रूप में उभरा है।
इस दशक की लंबी यात्रा का हिस्सा रहे कुछ रोगी भी रहे मौजूद:
एक हजारवें वें रोगी यमन के नज्म एल्डीन (1 साल), जो सफ़ल इलाज की अपनी कहानी साझा करने के लिए अपने परिवार के साथ इस सम्मेलन में उपस्थित था। नज्म के दादाजी नासिर सालेह ने कहा हम हमारे बच्चे को नया जीवन देने के लिए बीएलके सुपर स्पेशलिटी अस्पताल और डा. धर्मा के आभारी हैं। नज्म जन्म से थैलेसीमिया से पीड़ित थी और जर्मनी में एक स्वैच्छिक अंतरराष्ट्रीय रजिस्ट्री के माध्यम से उसे अपना 100 फीसद मैच असंबंधित दाता मिला। 2010 में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के पहले मरीज पीयूष जोशी भी ट्रांसप्लांट के बाद के 10 साल के जीवन की गवाही देने के मौके पर मौजूद थे। पीयूष की मां पुष्पा जोशी ने कहा हम पहले इस बीमारी के बारे में जानकर डर गए थे लेकिन अब प्रत्यारोपण के बाद लगभग 10 साल हो गए हैं और पीयूष पूरी तरह से ठीक है और एक सामान्य जीवन जी रहा है और अन्य बच्चों की तरह स्कूल जा रहा है। दीना नाथ आहूजा (74) जिनमें 2017 में एक्यूट मायलॉइड ल्यूकीमिया की वजह से बीएमटी किया गया था। वह वर्तमान में उन्हें ट्रांसप्लांट किए गए हुए 2 साल से ज्यादा हो गए हैं और वह ल्यूकीमिया मुक्त हैं। शारदा कोहली (70) ने भी सात साल पहले ल्यूकीमिया के लिए बीएमटी करवाया था, उन्होंने अपनी बीएमटी पूर्व और उसके बाद ही जिंदगी के बारे में बताया और उन्हें नया जीवन देने के लिए विशेषज्ञों का आभार व्यक्त किया।
यह भी:
केंद्र द्वारा जारी डेआ के अनुसार, 2010-2019 के दौरान, केंद्र ने 1020 बीएमटी प्रक्रियाएं की गई, जिसमें 228 गंभीर ल्यूकीमिया, 223 थैलेसीमिया मेजर, 189 मल्टीपल मायलोमा, 114 गंभीर अप्लास्टिक एनीमिया, 103 ल्यूकोमा के उपचार शामिल थे।

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