डाक्टर बिरादरी लामबंद : एमसीआई के विचारों पर फिर से गौर करना जरूरी हेल्थ सेक्टर से शीषर्स्थ संगठन डब्ल्यूएमए एनएमसी बिल के विरोध में

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ज्ञानप्रकाश
नई दिल्ली केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में प्रस्तावित एनएमसी विधेयक में फेरबदल करने के लिए दुनियाभर में डाक्टरों का प्रतिनिधित्व करने वाले शीषर्स्थ संगठन र्वल्ड मेडिकल एसोसिएशन (डब्ल्यूएमए) भी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए), दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन, फोर्डा जैसे संगठनों के समर्थन में आ गया है। एसोसिएशन का तक है कि भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) की जगह एनएमसी विधेयक लागू करना अनुचित है। ऐसा होने पर भारतीय डाक्टर देश छोड़ने के लिए विवश होंगे, जिससे रोगियों की देखभाल प्रभावित होगी।
लिखा पत्र, आलोचना की:
भारतीय चिकित्सकों की पेशेवर स्वायत्ता को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार की योजना की कड़ी आलोचना की। एसोसिएशन ने, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पर भारत की संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष को लिखे एक पत्र में चेतावनी दी है कि भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) की जगह एनएमसी विधेयक लागू करने पर और अधिक भारतीय डॉक्टर देश छोड़ने लगेंगे, जिससे रोगियों की देखभाल प्रभावित होगी। पत्र में यह भी लिखा है कि किसी पेशे का नियमन सरकार बेहतर तरीके से कर सकती है, इसका कोई प्रमाण नहीं है। एमसीआई को एनसीएम विधेयक से बदलने के फैसले पर विभिन्न दृष्टिकोण हैं। हालांकि, तथ्य यह है कि एमसीआई के खिलाफ अभी तक किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार की कोई विशेष शिकायत नहीं हुई है। परिषद को सुनवाई के अवसर से भी वंचित रखा गया है, जबकि प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत इसकी गारंटी देता है।
इनकी नजर में:
कन्फेडरेशन ऑफ मेडिकल एसोसिएशंस इन एशिया एंड ओशिनिया के उपाध्यक्ष पद्मश्री डा. केके अग्रवाल ने कहा कि ‘डब्ल्यूएमए स्वतंत्र प्रोफेशनल मेडिकल एसोसिएशंस का एक अंतरराष्ट्रीय और स्वतंत्र कन्फेडरेशन है, और दुनिया भर के चिकित्सकों का प्रतिनिधित्व करता है। इस तरह की एक बड़ी एसोसिएशन का सरकार के हाथों में नियामक शक्तियां सौंपे जाने के विचार का विरोध करना और एमसीआई का समर्थन करना। चूंकि, एमसीआई में भ्रष्टाचार का कोई प्रमाणिक सबूत नहीं है, जिससे यह संकेत मिलता है कि चिकित्सक की पेशेवर स्वायत्ता छीनकर उसे एक अन्य संगठन से बदलने के ख्याल पर एक फिर से विचार करने की आवश्यकता है।’
कानून विदों की नजर में:
पेशेवर स्वशासन से प्रोफेशनल ऑटोनोमी और क्लिनिकल स्वतंत्रता मिलती है। एक लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित, स्वायत्तशासी संगठन की जगह, राजनीतिक रूप से स्थापित और सरकार द्वारा निर्देशित संगठन को ले आना मरीजों के लिए प्रतिकूल होगा और भारत में चिकित्सा व्यवसाय के विकास में भी बाधक साबित होगा।
ताज्जुब है:
‘एमसीआई के कामकाज की निगरानी के लिए, दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एक पूर्णकालिक प्रशासक की उपस्थिति में भी, परिषद के कामकाज में एक वर्ष तक कोई ऐसी घटना सामने नहीं आयी, जिसे नियमों के विपरीत कहा जा सके। फिर भ्रष्टाचार का सवाल कहां से उठता है? एमसीआई ने मेडिकल बिरादरी और छात्रों के लाभ के लिए नियमों को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसका उदाहरण एनईईटी परीक्षा है। इसलिए, भारतीय चिकित्सकों के कामकाज को इस तरह मुश्किल बनाने से वे कैसे इस देश में निर्वाह कर पायेंगे।’
स्वास्थ्य मंत्रालय की नजर में:
स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक डा. जगदीश प्रसाद ने कहा कि अधिनियम को लाने के लिए तर्क यह था कि एक भ्रष्टाचार मुक्त तंत्र स्थापित किया जाये, जबकि एनएमसी में भ्रष्टाचार की गुंजायश है। प्रस्तावित एनएमसी भारत में चिकित्सा व्यवसाय का प्रतिनिधि नहीं है। एमसीआई में प्रत्येक राज्य से एक प्रतिनिधि और प्रैक्टिसिंग डॉक्टर है। इसे समाप्त किया जा रहा है। देखना यह होगा कि कैसे आबादी के 80 प्रतिशत लोगों की देखभाल करने वाले डॉक्टरों की की नैतिकता को मैनेज किया जायेगा, जबकि उसमें राज्यों के प्रतिनिधि ही नहीं होंगे।
ज्ञान प्रकाश दिल्ली

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