बीमारी का समय रहते पता लगाने से बचेगी जान: बच्चों में गैर-संचारी रोगों के लिए तत्काल कार्रवाई की जरूरत

बैठक में बच्चों, किशोरों और युवाओं के लिए किफायती और सुलभ सुविधाएं उपलब्ध कराने का आह्वान किया गया। साथ ही समय रहते बीमारी का पता लगाने और निगरानी के उपायों की जरूरत पर भी जोर दिया गया

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Princess Padmaja Kumari Parmar, President and Founder of FoM (from left), Steph Pearson (Senior Director, Global Access Lead, Breakthrough T1D) Cynthia McCaffrey (UNICEF India Representative) and Harkesh Dabas (WJCF India MD) addresses the panel on Indian and global approaches to children NCDs and T1D in Udaipur. Early diagnosis and treatment of Non-Communicable Diseases (NCDs), including Type 1 Diabetes, is critical for care and quality of life, discussed experts in a high-level meeting held here today. The meeting was organized by Breakthrough T1D and the Friends of Mewar in collaboration with UNICEF. Hosted by Padmaja Kumari Parmar, Breakthrough T1D Global Ambassador, the meeting was participated by multi-stakeholder partners including representatives from Breakthrough T1D, UNICEF, Friends of Mewar, charitable institutions, clinicians, civil society organizations and ImPatient Network, a coalition of community members and individuals living with T1D. NCDs are a significant global health challenge, contributing to 17 million premature deaths annually, with 86 per cent of deaths in low and middle-income countries. India is experiencing a shift in disease burden from infectious diseases to non-communicable diseases with NCDs accounting for 66 per cent of all deaths, 22 per cent of which were premature. UNICEF’s focus on NCDs in children responds to changing epidemiological disease patterns in childhood survival and development in India and aims to enhance health systems' capacity to prioritize the developmental needs of children while reducing mortality rates. UNICEF plans to support the National Program for Prevention and Control of Non-Communicable Diseases (NP-NCDs) through policy advocacy, partnerships, data and knowledge management, health promotion, and the integration of care models. UNICEF also focuses on driving social behavior changes, engaging communities, and implementing multi-sectoral actions and training initiatives on the same. City: Udaipur S

भारत चौहान , उदयपुर : आज यहां आयोजित एक उच्च स्तरीय बैठक में गैर-संचारी रोगों (NCDs), खासकर टाइप 1 डायबिटीज के जल्दी निदान और इलाज को लेकर गहन चर्चा की गई। बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि NCDs का समय पर पता लगाने और उपचार करने से न सिर्फ मरीज की देखभाल बेहतर होती है, बल्कि उनकी जिंदगी की गुणवत्ता में भी सुधार आता है। यह बैठक ब्रेकथ्रू T1D और फ्रेंड्स ऑफ मेवाड़ ने यूनिसेफ के सहयोग से आयोजित की गई थी।

ब्रेकथ्रू T1D की ग्लोबल एम्बेसडर पद्मजा कुमारी परमार ने इस बैठक की मेजबानी की। इस बैठक में कई तरह के संगठनों और व्यक्तियों ने भाग लिया, जिसमें ब्रेकथ्रू T1D, यूनिसेफ, फ्रेंड्स ऑफ मेवाड़, धर्मार्थ संस्थान, चिकित्सक, नागरिक समाज संगठन और इम्पेशंट नेटवर्क शामिल थे। इम्पेशंट नेटवर्क, टाइप 1 डायबिटीज से जूझ रहे लोगों और समुदाय के सदस्यों का एक समूह है।

गैर-संचारी रोग (NCDs) दुनिया भर के लिए एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बन गए हैं, जो हर साल होने वाली 170 लाख असामयिक पहले मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। इसमें से 86 फीसदी मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। भारत में भी बीमारियों का बोझ संक्रामक रोगों से गैर-संचारी रोगों की ओर शिफ्ट हो रहा है, जहां कुल मौतों में से 66 फीसदी हिस्सा NCDs का हैं और इसमें से भी 22 फीसदी मौतें असामयिक हैं।

ग्लोबल एंबेसडर पद्मजा कुमारी परमार ने कहा, “टाइप 1 डायबिटीज जैसी गैर-संचारी बीमारी से निपटने के लिए स्वास्थ्य सेवा और समय पर उपचार तक पहुंच बेहद जरूरी है। NCDs से जोखिम वाले बच्चों और युवाओं के स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के लिए हमें विभिन्न हितधारकों के एक साथ आगे आने की ज़रूरत है। साझेदारों के साथ यह सहयोग पहलों, प्रतिबद्धता और नवाचार की प्रगति और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आने वाली कई पीढ़ियों तक गैर-संचारी रोगों जैसे टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित बच्चों को आवश्यक देखभाल और सहायता मिल सके।”

टाइप 1 डायबिटीज से जूझ रहे बच्चों और उनके माता-पिता को संबोधित करते हुए पद्मजा कुमारी परमार ने कहा, “आपको हमेशा अपनी ज़िंदगी को बेहतरीन और स्वस्थ तरीके से जीने का प्रयास करना चाहिए। टाइप 1 डायबिटीज के बारे में कई गलतफहमियां और मिथक हैं, इसलिए आपको इस बीमारी और उसके इलाज के बारे में सही जानकारी लेनी चाहिए। सकारात्मक रहें क्योंकि यह टाइप 1 डायबिटीज और उसके परिणामों से निपटने में मदद करता है।”

भारत में ऐसे कई बच्चे और युवा हैं जो टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित हैं। उन्हें, खासकर लड़कियों को स्वास्थ्य सेवा और इंसुलिन थेरेपी तक पहुंचने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

यूनिसेफ इंडिया की प्रतिनिधि सिंथिया मैककैफ्री ने बच्चों और युवाओं में गैर-संचारी रोगों (NCDs) के समय रहते पता लगाने, देखभाल और प्रबंधन की जरूरत पर बोलते कहा, “यूनिसेफ का मकसद बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना, बच्चों को जीवित रहने और आगे बढ़ने में मदद करना है। महामारी का बोझ गैर-संचारी रोगों की ओर शिफ्ट हो रहा है, जिसमें टाइप 1 डायबिटीज भी शामिल है और यह दुनिया के साथ-साथ भारत में भी बच्चों और किशोरों के बीच बढ़ रहा है। इस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। कमजोर समुदायों के बच्चे और युवा सबसे अधिक जोखिम में हैं क्योंकि उन्हें अक्सर वैश्विक NCD लक्ष्यों से बाहर रखा जाता है, इस वजह से उनके इलाज योग्य बीमारियों की सही पहचान नहीं हो पाती और उन्हें समय पर इलाज भी नहीं मिल पाता है।”

वह कहती हैं, “यूनिसेफ समझता है कि गैर-संचारी रोगों (NCDs) की देखभाल को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में शामिल करना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही, जहां एक तरफ, विशेषज्ञों को प्रशिक्षित करना और उनकी क्षमता बढ़ाना जरूरी है, वहीं दूसरी तरफ, समुदाय में जागरूकता फैलाना और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मांग पैदा करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, टाइप 1 डायबिटीज, जन्म दोष, और विकासात्मक विकलांगता वाले बच्चों की इन बीमारियों की समय रहते पहचान करने, देखभाल और उपचार की एक अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए ताकि वे अपनी पूरी क्षमता तक पहुंच सकें और एक अच्छा जीवन जी सकें।”

उन्होंने आगे कहा, “आज यहां इकट्ठा हुए सभी भागीदार गैर-संचारी रोगों (NCDs) को जल्दी पहचानने, किफायती और बेहतर देखभाल देने और एक ऐसा समाज बनाने की कोशिश कर रहे हैं जहां, इन बीमारियों से जूझते हुए कोई भी अकेला महसूस न करे।”

ब्रेकथ्रू T1D में ग्लोबल एक्सेस की सीनियर डायरेक्टर डॉ. स्टेफनी पियर्सन ने बताया, “उनका संगठन टाइप 1 डायबिटीज वाले लोगों के लिए रोजमर्रा की ज़िदगी को बेहतर बनाने और इस बीमारी का स्थायी इलाज खोजने के लिए काम करता है। लेकिन T1D इंडेक्स ने दुनिया भर में T1D के बोझ को समझने में बहुत मदद की है। इस इंडेक्स ने भारत में T1D की स्थिति के बारे में कुछ चौंकाने वाले आंकड़े भी सामने रखे हैं, जिसके कारण हमारे संगठन को तुरंत कार्रवाई करने की जरूरत महसूस हुई। भारत में T1D की मौजूदा स्थिति एक चुनौती है, लेकिन यह एक अवसर भी है, ताकि हम इस बीमारी से जूझ रहे लोगों की जिंदगी को बेहतर बना सकें।”

डायबिटीज फाइटर्स ट्रस्ट एंड इम्पेशेंट नेटवर्क फेलो की संस्थापक मृदुला कपिल भार्गव पिछले तीन दशकों से अधिक समय से टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित हैं और मरीजों के अधिकारों के लिए काम कर रही हैं। उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित हर व्यक्ति को जीने का अधिकार है। इंसुलिन और ब्लड शुगर की जांच बहुत ज़रूरी है, लेकिन महंगे इलाज के कारण कई बार, खासकर युवा लड़कियों और महिलाओं के लिए स्थिति खराब हो जाती है। जब इलाज और समाधान मौजूद हैं, तो ये सभी के लिए सुलभ, उपलब्ध और किफायती होने चाहिए। भारत में इम्पेशेंट नेटवर्क सरकार, यूनिसेफ और दूसरे लोगों से अपील कर रहा है कि टाइप 1 डायबिटीज से जुड़ी नीतियां और समाधान व्यक्तिगत जरूरतों और अनुभवों को ध्यान में रखकर बनाए जाएं।”

भारत में बच्चों के स्वास्थ्य और विकास के बदलते रुझानों को देखते हुए, यूनिसेफ ने बच्चों में गैर-संचारी रोगों (NCDs) पर ध्यान केंद्रित किया है। यूनिसेफ का लक्ष्य बच्चों की विकासात्मक आवश्यकताओं को प्राथमिकता देते हुए स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत बनाया जाना और मृत्यु दर को कम करना है। यूनिसेफ ने गैर-संचारी रोगों (NCDs) की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (NP-NCDs) का समर्थन करने की योजना बनाई है। वे ऐसा नीतियां बनाकर, दूसरे संगठनों के साथ मिलकर, डाटा और जानकारी का प्रबंधन करके, लोगों को स्वस्थ रहने के बारे में जानकारी देकर और विभिन्न स्वास्थ्य सेवाओं को एक साथ लाकर करेंगे। साथ ही, यूनिसेफ सामाजिक व्यवहार में बदलाव लाने, समुदायों को शामिल करने और इसी विषय पर विभिन्न क्षेत्रों के लोगों और संगठनों की कार्रवाई और प्रशिक्षण पहलों को लागू करने पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है।

 

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