ई कॉमर्स पालिसी में डिस्काउंट न देने का प्रावधान नहीं हटाया जाए -कैट ने भेजा सुरेश प्रभु को पत्र

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भारत चौहान,कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने आज केन्द्री वाणिज्य मंत्री श्री सुरेश प्रभु को एक पत्र भेजकर सख्त शब्दों में कहा है की ई कॉमर्स पालिसी के ड्राफ्ट के मूल सिद्धांतों से किसी भी सूरत में समझौता नहीं किया जाए ! हालांकि कुछ निहित स्वार्थ के लोग ई कॉमर्स पालिसी को अपनी सुविधा अनुसार बनवाने के लिए पुअर जोर लगा रहे हैं लेकिन सरकार को किसी भी दबाव में नहीं आना चाहिए ! देश के व्यापारी किसी भी हालत में ऐसे किसी दबाव को स्वीकार नहीं करेंगे !

कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी.सी.भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री श्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा की ई कॉमर्स व्यापार में डिस्काउंट देना और किन्ही लोगों द्वारा उसकी भरपाई करना ही ई कॉमर्स कंपनियों के हाथ में बाज़ार पर कब्ज़ा जमाने और प्रतिस्पर्धा को ख़त्म करने का सबसे बड़ा हथियार है! यह डिस्काउंट और कुछ नहीं बल्कि लागत से भी कम मूल्य पर माल बेचने का एक जरिया है इस दृष्टि से किसी भी तरह का डिस्काउंट अथवा मुफ्त में सामान देने पर पालिसी में प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए !

उन्होंने यह भी कहा की लगभग सभी ई कॉमर्स कम्पनिया वर्ष 2016 में जारी प्रेस नोट 3 का खुलकर उल्लंघन कर रही है और इनवेस्टिगेटिव एजेंसियों ने सीधे शिकायतें भेजने अथवा वाणिज्य मंत्रालय द्वारा शिकायतें प्रेषित करने के बावजूद भी आज तक कोई कदम नहीं उठाया है जिसके कारण से इन ई कॉमर्स कम्पनियॉं के होसलें बुलंद हुए हैं और वो अभी भी प्रेस नोट का उल्लंघन करने से बाज़ नहीं आ रहे हैं !

हालाकिं कम्पटीशन कानून में लागत से भी कम मूल्य पर माल बेचने के खिलाफ कार्यवाही करने का प्रावधान है किन्तु कॉम्पिटिशन आयोग भी सत्यता से आँख बंद करे बैठा है जिसके चलते हाल ही में वालमार्ट फ्लिपकार्ट डील को मंजूरी दी गई और कैट की आपातियों को देखा तक नहीं ! संवैधानिक संस्थाएं भी कानून के दायरे में काम करे यह सुनिश्चित करना जरूरी है !

कैट ने श्री प्रभु को सुझाव देते हुए कहा है की पालिसी के प्रारूप में कुछ स्तिथियों में ई कॉमर्स कंपनियां को माल रखने का प्रावधान ई कॉमर्स के मूल सिद्धांत के खिलाफ है इसलिए इसको पालिसी में से निकाला जाए ! यह और कुछ नहीं बल्कि रिटेल व्यापार में पिछले दरवाजे से एफडीआई का प्रवेश है ! कैट ने यह भी सुझाव दिया है की ई कॉमर्स कंपनियों को स्टॉक एक्सचेंज से सूचीबद्ध होना आवश्यक किया जाए इससे जो कंपनियां नुकसान दिखा रही हैं उन पर लगाम लगेगी ! वर्ष 1980 में फार्मा और एफएमसीजी कंपनियों के लिए यह आवशयक किया गया था जिसके बाद अपने देश की ही विभिन्न कंपनियों ने बड़ा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार किया और अपना स्थान बनाया है !

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