रैन बसेरों का हाल है बेहाल, खुले आसमान के नीचे ठिठुरन भरी सर्द में रात गुजारने के लिए विवश हैं बेघर

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली ,राजधानी में ठिठुरन भरी ठंड का सितम जारी है, लेकिन सैकड़ों लोग आज भी खुले आसमान के नीचे कंपकंपाते हुए रात गुजारने को मजबूर हैं। सिर ढंका तो पांव खुला और पांव ढंका तो सिर खुला.। किसी को रैन बसेरे में जगह नहीं मिल रही है तो कोई जानबूझकर परिवार की सुरक्षा को देखते हुए वहां जाना नहीं चाहता है, क्योंकि वहां नशेड़ियों से लेकर असामाजिक तत्वों का जमावड़ा रहता है। हालांकि दिल्ली सरकार की स्वायत्त संस्था दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डुसिब) के अधिकारी रैन बसेरे को लेकर दावा करते हैं कि फिलहाल कुल 256 रैन बसेरों में करीब 17 हजार से अधिक लोगों को ठहरने का प्रबंध किया है। डुसिब के मुख्य अभियंता (रखरखाव) अरुण शर्मा ने दावा किया कि जरूरत पड़ने पर रेलवे स्टेशन, आईएसबीटी व अन्य क्षेत्रों में भी टेंटों में रैन बसेरा खोलने का विकल्प रखा है। कुल 256 रैन बसेरों में 193 स्थायी जबकि 63 अस्थायी हैं जो टेंटों में चल रहे हैं। यहां पर कोई भी आकर रात गुजार सकता है। बावदूत इसके खुले आसमान के नीचे सोना चाहता है तो हम कुछ नहीं कर सकते हैं। ऐसे लोगों को हमारे विभाग के अधिकारी रैन बसेरों में ठहरने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
हकीकत इतर:
दिल्ली पत्रिका संवाद्दाता ने मंगलवार और बुधवार रात रैन बसेरों की पड़ताल की। इस दौरान अक्षरधाम फ्लाईओवर, मजनू का टीला, आईएसबीटी मैट्रो स्टेशन के सामने, सफदरजंग फ्लाईओवर, रामलीला मैदान और कमला मार्केट के मध्य बने रैन बसेरे में व्यवस्थाएं तो दुरु स्त मिलीं, लेकिन अराजक तत्वों का जमावड़ा भी देखने को मिला। साथ ही शास्त्री पार्क स्थित रैन बसेरे में भी हालत कुछ ऐसे ही देखने को मिली। जगह-जगह लोग फुटपाथ पर कंपकंपाते नजर आए, क्योंकि उन्हें रैन बसेरों में जगह ही नहीं मिली। शास्त्री पार्क, मुखर्जी नगर, किंग्जवे कैंप, एम्स के मुख्य द्वार के बाहर रैन बसेरा होने के बावजूद लोग खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं।
पियक्कड और नशाखोरी की जद में है ज्यादा:
लोगों ने बताया कि रैन बसेरों में ज्यादातर लोग नशा करके आते हैं और रात में शोर करते हैं, झगड़ा करते हैं। काली बाड़ी के सामने बने एनडीएमसी के आश्रय गृह में मोहन नामक एक नसेड़ी ने शेख मोहम्मद ब्लेड मार कर घायल कर दिया। यह घटना बीते सोमवार की रात को हुई। खुले आसमान में रात गुजारने वाले राजू ने बताया कि जान जोखिम रखते हुए भला हम क्यों ऐसी जगह सोएं। कभी कंबल के लिए तो कभी अपनी जगह बदलने को लेकर टकराव हो जाता है। इसलिए वहां जाने में डर लगता है। वहीं, कैलाश पुस्ता रोड पर बने बस स्टॉप पर कई लोग सोते मिले। उन्होंने बताया कि इस इलाके में एक भी रैन बसेरा नहीं है, इसलिए वे कंपकंपाती ठंड में भी खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हैं।
असुरक्षा है मुख्य मुद्दा:
राजनगर डिवाइडर पर एक परिवार खुले में सोने को मजबूर दिखा। डिवाइडर पर सोने की तैयारी कर रहे इस परिवार ने बताया कि यहां पास में रैन बसेरा तो है, लेकिन उसमें कई ऐसे पुरु ष आते हैं, जो महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करते हैं। इसे लेकर कई बार झगड़े भी हो चुके हैं। महिलाओं और बच्चों की असुरक्षा की वजह से खुले में सो रहे हैं। सेंटर फॉर हॉलिस्टिक वेलफेयर सीएचडी के कार्यकारी निदेशक सुनील कुमार आलेडिया ने कहा डुसिब के आंकडे के हवाले से कहा कि राजधानी की कुल आबादी का एक फीसद खुले आसमान के नीचे सोते हैं। इन बेघरों के लिए प्रशासन द्वारा बनाए गए रैन बसेरे नाकाफी है। पुरानी दिल्ली के शंकर गली के महिला आश्रय गृह में बीते एक सप्ताह के दौरान मारपीट की 12 से अधिक घटनाए हो चुकी है। आसपास गदंगी का बुरा हाल है। अधिकांश रैन बसेरों में रहने वाले कंबल से बदबू आती है, पेयजल, खुले शौचालय में जाना पड़ता है ।
फायर एलर्ट:
डुसिब के सीईओ आनंद प्रकाश के अनुसार वर्ष 2018 में जब एक टेंट आश्रय गृह में आग लगने से बेघर व्यक्ति जल कर मर गया था तो कोर्ट के संज्ञान के बाद सर्दी में फायर प्रूफ टेंटो का इंतजाम किया गया है। इस वर्ष 17960 बेघर लोगो के लिए सुविधाओं का इंतजाम किया है। रेलवे स्टेशन, आईएसबीटी व अन्य अन्तराज्यीय बस टर्मिनलों पर भी वहां के प्रबंधक के अनुरोध पर सेवाएं देंगे।

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