ज्ञानप्रकाश/भारत चौहान नई दिल्ली , अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) से एक के बाद एक फैकल्टी सदस्यों के होते मोह भंग के बाद पलायन से स्वास्थ्य मंत्रालय की चिंता बढ़ती जा रही है। साल भर में पांच से अधिक फैकल्टी सदस्य एम्स छोड़ चुके हैं, इस वक्त एम्स के रिकार्ड में स्थापित बिस्तरों की संख्या और चिकित्सीय सुविधाओं के लिहाज से 205 फैकल्टी सदस्यों के विभिन्न विभागें में स्थायी पद रिक्त हैं। इनमें कई पद अति संवेदनशील है जो फिलहाल जूनियर्स के भरोसे रन कि या जा रहा है। एम्स के वरिष्ठ अधिकारी रिक्तत पदों को भरने की प्रक्रिया में एम्स प्रशासन की संवेदनहीनता मानते हैं, उनका कहना है कि एम्स चूंकि संसद के विशेष अधिनियम 1956 के अंर्तगत एम्स की स्थापना की गई है। जहां पर विभिन्न प्रकार के अति गंभीर रोगियों को बेहतर और गुणवत्ता पूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं देने के साथ ही आयुर्विज्ञान क्षेत्र में ईजाद नवीनतम बीमारियों के उन्मूलन के लिए असरदार तकनीक और दवाओं के अवयवों की खोज करना है। रिक्त पदों को न भरे जाने की वजह से एम्स अपने उद्देश्यों को पूरा करने में खरा नहीं उतर रहा है।
नियुक्ति प्रक्रिया जारी:
हालांकि एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने दावा किया कि चूंकि फैकल्टी सदस्यों के रिक्त स्थायी पदों को भरने के लिए हम पूरी तरह से संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) पर निर्भर करते हैं। यह मामला संसद में उठ चुका है। यूपीएससी ने बीते पांच सालों के दौरान कम से कम 9 से अधिक बार चयन के लिए लिखित और क्लीनिकल परीक्षा ले चुका है। इसके तहत सिर्फ 19 डाक्टर ही निपुण पाए जाने पर सेलेक्ट किए गए। यह प्रक्रिया निरंतर चल रही है। हालांकि इस बारे में केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सुदान ने कहा कि संसद के विशेष सत्र में एक प्रस्ताव अभी लंबित है, जिसके अंतर्गत ऐसी वैकल्पिक एम्स प्रशासन का अधिकार दिया जाएगा की वे तदर्थ आधार पर स्थायी वेतनमान दर पर फैकल्टी सदस्यों का चयन कर सके। इसके लिए सिर्फ चयनियत अभ्यर्थियों का साक्षात्कार और संबंधित सरकारी व गैर सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में अनुभव संबंधी दस्तावेज देने होंगे। ये सेवाएं अस्थायी होगी लेकिन अभ्यर्थी को केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना के तहत ही वेतनमान व भत्ते प्रदान करेगी।
बढ़ रहा है मरीजों का दबाव:
एम्स के एमआरडी यूनिट से प्राप्त डाटा के अनुसार वर्ष 2018 में जहां इनडोर और आउट डोर के तहत 23 लाख से अधिक मरीजों को परामर्श व स्वास्थ्य सवाएं प्रदान की गई। वहीं यह आंकड़ा वर्ष 2017 और 2016 में क्रमश: 8 और 10 फीसद कम दर्ज किया गया था। यानी की साल दर साल एम्स में मरीजों का दबाव बढ़ता ही जा रहा है। ऐसी जटिल हालत में एम्स से डाक्टरों का पलायन करना चिंता वाले विषय है। बता दे की गत दिवस एम्स में अस्थि शल्यक्रिया विभाग के प्रो. डा. चंद्रशेखर यादव ने स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति ली है, जबकि वर्ष 2018 के मार्च माह में सन तंत्रिका पण्राली विभाग के दो प्रोफेसर, इसी वर्ष जुलाई माह में स्त्री एवं प्रसूति यूनिट की दो प्रोफेसर ने स्वेच्छिक सेवानिवृति ले चुके हैं। इसके पीछे उनका तर्क रहा है कि यहां काम करने का एकेडेमिक माहौल नहीं है। जिससे वे दु:खी हैं।