प्रदूषण से परेशान स्वांस रोगियों को मिलेगी राहत -देश का पहला पोलन डिस्पले बोर्ड पटेल चेस्ट में लगा -सन तंत्र एलर्जी की स्थिति की होगी पहचान

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भारत चौहान नई दिल्ली राजधानीवासियों के लिए खास यह है कि सन तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंचाने वाले पराग कणों के बारे में अब उन्हें सहजता से जानकारी मिलेगी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्ढा ने देश के पहले पोलन :परागकण मापन डिस्पले बोर्ड की यहां नार्थ कैंपस स्थित दिल्ली वि विद्यालय से संबंद्ध डा. वल्लभ भाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट में विधिवत् लेजर के जरिए बटन दबाकर शुरुआत किया। यह बोर्ड इंस्टीट्यूट के बाहर लगाया गया है। जो फिलहाल दस किलोमीटर के दायरे में फैले प्राग कणों की पहचान करेगा। हवा में फेफड़े और हवा में प्रदूषण की मात्रा जानने के लिए संस्थान के हेल्पलाइन या फिर आनलाइन साइट पर देखना होगा। बता दें कि प्राग कण से एलर्जी हो जाती है।
श्री नड्डा ने इस मौके पर वैज्ञानिकों का आवहान किया कि वे देश को ट्यूब्रोक्लोसिज (टीबी) मुक्त भारत की कल्पना को साकार करने के लिए हर संभव मरीजों की पहचान करे और उनके शरीर में वैक्ट्रिया खत्म करने का प्रयास करे। उन्होंने कहा कि इस मामले में यह संस्थान महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। उन्होंने कहा कि इस संस्थान को देश के अन्य शीर्ष संस्थानों के साथ संयुक्त रु प से कार्य करना चाहिए। ताकि लोगों को और भी ज्यादा इसका लाभ मिल सके। पुल्मोनेरी मेडिसन विभाग और नेशनल सेंटर ऑफ एलर्जी अस्थमा और इम्युनोलोजी के प्रमुख एवं संस्थान के कार्यकारी निदेशक डा. राज कुमार ने बताया कि अक्सर फूल और घास के परागकण हवा में मौजूद रहते हैं जोकि सांस की बीमारी से परेशान मरीजों के लिए काफी पीड़ा पहुंचाते हैं। अस्थमा रोगियों में बार-बार अटैक का सबसे मुख्य कारण यही होता है। साल में सिंतबर से लेकर नवंबर तक परागकणों की हवा में मौजूदगी ज्यादा होती है। दिसंबर के बाद से इसमें कमी आती है। पोलेन काउंट स्टेशन लगाया गया है जो वातावरण की हवा को खींज लेता है इस स्टेशन में कई तरह रसायनिक पदाथों का आलेपन किया जाता है जो आसानी हवा में तैरते पोलेन यानी प्राग के कण एकत्रित करते हैं। बाद में प्राप्त प्रागकण को माइक्रोस्कोप से पहचान करते हैं। दिल्ली विविद्यालय के वाईस चांसलर प्रो. योगेश त्यागी एवं एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने इस पहल तारीफ की।

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