अफसोस हम उसे बचा न सके -44 घंटे तक उन्नाव की बिटिया लड़ी मौत से जंग, बचा न पाए जान तो रो पड़े डॉक्टर

भारी मन शव विच्छेदन गृह के बाहर दी अपनी अन्तिम श्रद्धांजलि

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली ,वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज से संबद्ध अधिक विस्तरों और सुविधाओं के मामले देश के सबसे बड़े जनरल सरकारी सफदरजंग अस्पताल में शनिवार को सामान्यत: जिंदगी से जुझते मरीजों का जीवन बचाने में रत रहने वाले डाक्टरों को उन्नाव पीड़िता की जीने के प्रति ललक व मौत से संघर्ष का जीवट रुला गया। सामान्यत: इस तरीके के केसों से रोज दो चार होने वाले डाक्टरों ने उन्नाव की इस बिटिया की जीवन से जंग में अपनी पूरी ताकत झोंक दी लेकिन बिधाता को कुछ और ही मंजूर था। जीवन के अन्तिम क्षणों में भी पीड़िता ने जिस तरह से इलाज में लगे चिकित्सकों से दुष्कर्मियों को भयानक सजा दिलाने की गुहार की उससे चिकित्सक भी अपने आंसू नहीं रोक पाए।
दरअसल, शनिवार को तडके ही अस्पताल शवविच्छेदन गृह के बाहर एकत्रित हुए सीनियर व जूनियर डाक्टरों के साथ ही नर्सिग स्टाफ व फैकल्टी सदस्य की जुबां पर यह चर्चा का विषय रहा कि उनके मेडिकल प्रोफेसन में ऐसा मामला संभवत: नहीं आया।
44 घंटे चुनौती पूर्ण रहे:
उन्नाव की दुष्कर्म पीड़िता सफदरजंग अस्पताल में जिंदगी के लिए करीब 44 घंटे तक जूझी। ड्यूटी पर तैनात डाक्टर ने कहा कि उसकी हालत देखकर हम अचंभित थे। सहजता से ही मेडिकल स्टेट्स रिपोर्ट्स पर हमारी जैसी ही नजर पड़ती फिर उसके चेहरे पर आंखों में आंसू आ जाते थे। प्लास्टिक एंड बर्न यूनिट के अध्यक्ष डा. शलभ कुमार उसके शरीर से काफी तरल पदार्थ बह चुका था और बचना मुश्किल था। फिर भी उसके कुछ वाइटल्स पोजेटिव रेस्पांस कर रहे थे यही वजह थी कि जब उसे यहां लाया गया था तब हमने पहले उसे सघन चिकित्सा कक्ष में रखा लेकिन यह सब 36 घंटे तक चल सका। हमें उसे वेंटीलेटर पर रखा गया। इसके 8 घंटे के बाद ही उसके दिल की धड़कन बंद हो गई। यानी 44 घंटे तक उसने जीवटता का परिचय दिया। हमने पूरी कोशिश की। थोड़ी-बहुत बात करते-करते वह बेहोश हो रही थी। उसके महत्वपूर्ण अंग शाम तक काम कर रहे थे, लेकिन हालत लगातार गिर रही थी। पीड़िता को गुरु वार देर रात लखनऊ के सिविल अस्पताल से एयरलिफ्ट करके सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
अस्पताल के एमएस डा. सुशील गुप्ता कहते हैं कि इस तरह की घटनाओं में शुरूआत के तीन दिन यानि 72 घंटे काफी मायने रखते हैं। अगर यह समय निकल जाए तो काफी हद तक उसे बचाया जा सकता है। लेकिन उन्नाव की इस बेटी ने 44 घंटे में ही दम तोड़ दिया। 24 घंटे में उसकी हालत ऐसी थी कि वह पूरी तरह से होश में नहीं थी। सांस नहीं ले पा रही थी।
शुन्य होने लगी धड़कन:
एक नर्स ने कहा कि शुक्रवार की रात करीब 8 बजे वेंटीलेटर से जुड़ा कम्प्यूटर स्क्रीन में रेड सायरन बजने लगा। बीपी मशीन भी खतरे का सायरन बजने लगा। दवाओं की डोज शुरू की, साथ ही उसके हाथ पैरों को मलना शुरू किया। इससे रात 9.25 बजे ब्लड प्रेशर थोड़ा ठीक हुआ, लेकिन 11.10 पर फिर से हालत बिगड़ी, आनन फानन में डॉक्टरों की टीम ने उसे दो इंजेक्शन दिए लेकिन 11.30 पर कार्डियक अटैक आने से उसकी धड़कनों की गति कम होने लगी और ब्लड प्रेशर भी कम होता गया। इसके बाद 11.40 मिनट पर पीड़िता को मृत घोषित कर दिया गया।

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