जन्म के सात दिन बाद ही नीला पड़ने लगा था बच्ची का शरीर, डॉक्टरों ने आठ घंटे ऑप्रेशन कर बचाई जान -लखनऊ की फातिमा का अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों की टीम ने की सर्जरी -फेफड़ों से दिल को खून पहुंचाने वाली नसें दिल के बाएं हिस्से की बजाय दाएं हिस्से में थीं जुड़ी

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भारत चौहान नई दिल्ली , मरीज के लिए डॉक्टर ऐसे ही भगवान नहीं कहे जाते। वह मरते हुए मरीज की जान बचा लेते है। हाल ही में ऐसा ही मामला सामने आया है, जिसमें एक तीन महीने की बच्ची का ऑप्रेशन कर डॉक्टरों ने उसे बचा लिया। बच्ची का रंग उसके जन्म के सात दिन बाद ही नीला लड़ने लगा था। डॉक्टरों ने 8 घंटे तक ऑप्रेशन कर बच्ची को नई जिंदगी दी है।
जानकारी के मुताबिक यूपी के लखनऊ निवासी तीन महीने की जुबिया फातिमा मई के शुरु आत में अपोलो अस्पताल में भर्ती हुई थीं। उसे दिल की दुर्लभ जन्मजात बीमारी टोटल एनोमलस पल्मोनरी वीनस कनेक्शन (टीएपीवीसी) थी। इसकी वजह से वह नीली पड़ गई थी और एक महीने की उम्र में उसकी सांसें सामान्य गति से तेज चल रही थीं। यदि इस बीमारी का इलाज नहीं होता तो बच्ची की जान भी जा सकती थी।
अपोलो अस्पताल में पीडिएट्रिक कार्डियो थोरेसिक सर्जन डा. मुथु जोथी ने बताया कि बच्ची में एक प्रकार की जन्मजात दिल की बीमारी सुप्राकार्डियक टीएपीवीडी पाई गई, जिसमें फेफड़ों (पल्मोनरी वेन) से आने वाला खून दिल के पीछे एक कॉमन चैम्बर में आता है। इस वजह से फेफड़ों से आने वाला खून दिल तक नहीं पहुंच पाता। कॉमन चैम्बर से निकलने वाली नस दिल के दाएं हिस्से से जुड़ी होती हैं, जिसकी वजह से जो खून दिल के बाएं हिस्से में जाना चाहिए, वह दाएं हिस्से में पहुंचता है। इसके कारण ऑक्सीजन से युक्त और ऑक्सीजन से रहित खून आपस में मिल जाता है। ऐसे में बच्चे के जीवित रहने का एक ही तरीका है कि उसके दिल के दोनों ऊपरी चैम्बर्स (दाएं और बाएं एट्रियम) के बीच छोटा छेद हो लेकिन इससे दिल के बाएं हिस्से में मिश्रित खून जाएगा और यही खून पूरे शरीर में पहुंचेगा। ऐसे में बच्चे का शरीर नीला पड़ने लगता है और फेफड़ों पर प्रेशर बढ़ जाता है। इस स्थिति में सर्जरी बहुत जोखिम भरी थी। मगर परिवार की सहमति से यह सर्जरी की गई।
चुनौती पूर्ण थी सर्जरी:
सर्जरी के बारे में बताते हुए डॉ जोथी ने कहा कि दाई ऊपरी एवं निचली पल्मोनरी नसों को सर्जरी के द्वारा दिल के बाएं हिस्से से जोड़ा गया। बाई उपरी वेन को र्वटकिल वेन से अलग किया गया जो दिल के दाएं हिस्से से जुड़ी थी, इसे भी बाएं हिस्से से जोड़ा गया। सर्जरी बहुत मुश्किल थी, इसमें 6.5 से 7 घंटे लगे। इसके बाद बच्ची को तीन-चार दिन वेंटीलेटर पर रखा गया और सर्जरी के एक सप्ताह बाद छुट्टी दे दी गई। हाल ही में उसकी जांच की गई। बच्ची अब ठीक है। हमने माता-पिता को दवाएं जारी रखने की सलाह दी है।

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