अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के 500 रुपये से कम कीमत वाली खून की जांच और एक्स-रे जैसी जांचों का शुल्क ना लेने के प्रस्ताव को अमलीजामा पहनाने में अभी कुछ और वक्त लगेगा।
एम्स ने अपने प्रस्ताव को उचित साबित करने के लिए पायलट अध्ययन कराया है और इसे स्वास्थ्य मंत्रालय के समक्ष पेश किया है। प्रशासन ने अब प्रत्येक विभाग से हरेक जांच के शुल्क की जानकारी मांगी है।
एम्स के सूत्रों के अनुसार, इस प्रस्ताव को स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा को सौंप दिया है लेकिन अभी इस पर कोई प्रगति नहीं हुई है।
वित्त मंत्रालय के निर्देशों पर स्वास्थ्य मंत्रालय अस्पतालों से लगातार उन शुल्कों की समीक्षा करने के लिए कहता रहा है जिनमें पिछले 20 वर्षों में कोई बदलाव नहीं हुआ। एम्स में नियमित होने वाली कई जांचों का शुल्क 10 रुपये से 25 रुपये के बीच होता है।
एम्स में गेस्ट्रोऐंटेरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. अनूप सराया की अध्यक्षता वाली समिति का अस्पतालों में शुल्कों की समीक्षा करने के लिए गठन किया गया और उसने अपनी रिपोर्ट सौंपी।
सराया ने अपनी रिपोर्ट में कहा था, ‘‘यह सिफारिश की जाती है कि 500 रुपये से कम कीमत वाली जांचों पर शुल्क समाप्त किया जाना चाहिए।
पायलट अध्ययन में पाया गया कि मरीजों को अपने घर से अस्पताल तक यात्रा का खर्च, खाने तथा अपने रहने का खर्च और अटेंडेंट के साथ-साथ मरीजों की आय के नुकसान के रूप में अच्छी खासी धन राशि देनी पडती है।
अध्ययन के अनुसार, दिल्ली के एक मरीज को हर बार एम्स आने में 1,900 रुपये खर्च करने पडते हैं जबकि राष्ट्रीय राजधानी के बाहर से आने वाले लोगों को हर दिन औसतन 4,300 रुपये खर्च करने पडते हैं।
ज्ञान प्रकाश दिल्ली