प्रोबायोटीक के क्लीनिकल ट्रायल! FSSAI से मानक तय करने की भी होगी मांग

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ज्ञान प्रकाश के साथ भारत चौहान नई दिल्ली
अगर आप मोटे या दुबले हैं तो यह खबर आपके लिए है। जी हां, अब आपको अपने पेट और चेहरे पर चढ़े फालतू के चर्बी को कम करने के लिए न तो मीलों भागकर हांफना पड़ेगा और न ही जिम में जाकर लोहे के भारी भरकम पहियों को उठाना होगा। अब यह काम आपके दोस्त ‘गुड बैक्टीरीया‘ (प्रोबॉयोटीक) करेंगे। आपको तो सिर्फ इतना करना होगा कि जीवित ही इन्हें अपनी आंतों में जगह देना होगा। एम्स के सहयोग से अब कुछ निजी कंपनियां ऐसे प्रोबायोटीक का निर्माण कर रही हैं। प्रोबायोटीक्स का इस्तेमाल और कहां कहां किया जा सकता है इसे लेकर आज से एम्स में दो दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया है।
प्रोबायोटीक एसोसिएशन ऑफ इंडिया, अमेरिकन सोसाइटी ऑफ माइक्रोबायोलॉजी और एम्स द्वारा संयुक्त तौर आयोजित इस कार्यक्रम के आयोजकों में से एक डॉ. रमा चौधरी बताती हैं कि माटापे में प्रोबायोटीक के असर को लेकर एम्स ने हाल ही में एक अध्ययन किया था। जिसमें राजधानी के मोटापे से ग्रस्त लोगों के सैंपल लेकर उसकी जांच की गई थी। जिसमें पाया गया था कि शरीर मे आम तौर पर पर्याप्त मात्रा मे मौजूद गुड बैक्टीरीया, मोटापा बढ़ने के साथ ही कम होने लगता है। अगर इनमे गुड बैक्टीरीया की मात्रा बढ़ा दी जाए तो यह पाचन को सुदृढ कर चर्बी को हटाने में अहम भूमिका निभा सकता है। इसलिए मोटापे के साथ ही अन्य बीमारियों के इलाज में भी इसके क्लीनिकल ट्रायल की मंजूरी के लिए यह आयोजन किया जा रहा है।
एनडीआरआई की डेरी माइक्रोबायोलॉजी की विभागाध्यक्ष डॉ. सुनीता ग्रोवर के अनुसार बाजार में अभी प्रोबायोटीक को नाम पर कई कंपनियों कई तरह के उत्पाद बना रही हैं। लेकिन इसका अभी तक कोई मानक नहीं है। इसलिए इस आयोजन मे आने वाले फसाई के निदेशक से मांग की जाएगी ?कि इसके लिए भी मानक तय किए जाएं। साथ ही प्रोबायोटीक के उत्पादों के लिए रैपर पर कोड छापने जैसे प्रावधान करने की मांग भी की जाएगी।

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