जन औषधि स्टोर्स में उपलब्ध कैंसर दवाओं की कीमतें बाज़ार से 50-80 फीसद: डा. बघेला – जेनेरिक दवाएं भी ब्रांडेड दवाओं की तरह अच्छी

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली , देश में 2500 रुपये प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य व्यय है, जिसका 50 फीसद हिस्सा दवाओं पर खर्च किया जाता है। स्वास्थ्य पर खर्च बीपीएल एवं मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए बड़ी समस्या है। ऐसे में हमें जेनेरिक दवाओं के उपयोग को बढ़ावा देना होगा। जन औषधि स्टोर 6 हजार प्रकार की जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराते हैं, इनमें 38 प्रकार की एंटी-कैंसर दवाएं शामिल हैं, जिनकी कीमत बाज़ार से 50 से 80 फीसद तक कम है।
केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के तहत आने वाले फार्मास्युटिकल विभाग के सचिव डा. पीडी वघेला ने राष्ट्रीय सहारा से विशेष बातचीत में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि सरकार ने जन औषधिक स्टोर की स्थापना तथा दवाओं की कीमतों के विनियम के संदर्भ में मरीजों को राहत देने के लिए कई राहत भरे कदम उठाए हैं। हालांकि कैंसर का इलाज सिर्फ मल्टी स्पेशलटी अस्पतालों में ही किया जाता है। हम सभी अस्पतालों से अनुरोध करते हैं कि अपने परिसर में जन औषधि स्टोर खोलें और चिकित्सक भी जेनेरिक दवाएं ही लिखें, ताकि मध्यमवर्गीय लोगों पर कैंसर के इलाज के कारण अनावश्यक बोझ न बढ़े। जेनेरिक दवाएं भी ब्रांडेड दवाओं की तरह अच्छी हैं, वास्तव में इनकी सफलता ब्रांडेड दवाओं से अधिक पाई गई है।
कीमत नियंतण्रपण्राली:
डा. बघेला के अनुसार राष्ट्रीय मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) एक कीमत निर्धारण पण्राली है, हम कीमतों पर नियंतण्रनहीं करना चाहते बल्कि इनका विनियमन करना चाहते हैं। इसी दृष्टिकोण के साथ हमने कैंसर की 42 दवाओं को मरीज़ों के लिए किफ़ायती बनाया है। जिन्हें पहले 10 हजार रुपये और 25 हजार 400 में बेचा जाता था, वे अब 892 और 2510 रुपये में उपलब्ध हैं। इससे देश में कैं सर के एक हजार करोड़ मरीज़ों को फायदा हुआ है। सरकार ने कैंसर मरीज़ों के लिए कई योजनाएं और नीतियां पेश की हैं क्योंकि पाया गया है कि कैंसर के कारण होने वाली 50 फीसद मौतें इलाज के अभाव में हो रही हैं।
यह भी:
डब्ल्यूएचओ अनुसार कैंसर के कारण होने वाली मौतें आहार एवं व्यवहार से जुड़े 5 मुख्य कारणों से होती हैं। ये कारण हैं बीएमआई अधिक होना, फलों और सब्जियों का सेवन कम मात्रा में करना, शारीरिक व्यायाम की कमी, तंबाकू का सेवन और शराब का सेवन।
यह भी:
कैंसर एक बड़ी चिंता का विषय है और हर साल इसके कारण 1300 से अधिक लोग मरते हैं। जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ता है, खासतौर पर जब व्यक्ति अपने जीवन के उत्पादक वर्षो में रोग का शिकार हो जाता है।

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