पीएम की अपील ला रही रंग सिंगल-यूज प्लास्टिक ही नहीं, सभी प्रकार की प्लास्टिक का उपयोग कम करने में जुटे वैज्ञानिक एम्स-आईसीएमआर के वैज्ञानिक कर रहे हैं अध्ययन दिल्ली समेत 24 राज्यों के पांच लाख से अधिक लोगों को शामिल किया जाएगा अध्ययन में

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली , जानलेवा सेहत क लिए अति खतरनाक माने जाने वाले प्लास्टिक मुक्त भारत अभियान संबंधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा विशेषज्ञों की नजर में देश की तस्वीर बदल देगा। लोग ज्यादा से ज्यादा स्वस्थ होंगे इस अभियान का लाभ मनुष्य के अलावा जीव जंतुओं, पशु, पक्षियों तक को मिलेगा। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) एवं भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के वैज्ञानिक का मानना है कि प्लास्टिक प्रदूषण का मुकाबला करने में वैिक एक्शन प्लान के तहत यह अभी तक के सभी संकल्पों में सबसे महत्वाकांक्षी है। मोदी ने कहा है कि वर्ष 2022 तक देश में सिंगल-यूज प्लास्टिक का चलन खत्म हो जाएगा। इस संकल्प की सफलता का अर्थ होगा कि दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में रहने वाले लगभग 1.3 अरब लोगों के जीवन से प्लास्टिक को समाप्त करना। सामुदायिक चिकित्सा विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक इस तथ्य पर अध्ययन कर रहे हैं। इसमें दिल्ली समेत देश के 24 राज्यों को शामिल किया गया है। जिसके तहत वहां के लोगों से रायशुमारी की जाएगी और गुपचुप तरीके से प्लास्टिक का उत्पादन कर रहे हैं। उन्हें ऐसा न करने के लिए प्रेरित करेंगे। अध्ययन में करीब 4 लाख से अधिक लोगों की राय ली जाएगी। इसके बाद इसमें प्राप्त निष्कर्ष को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को भेजा जाएगा।
आईसीएमआर में वैज्ञानिक सेल के साइंटिस्ट डा. एसएन राव ने कहा कि हमने अप्रैल 2019 तक का लक्ष्य रखा है। इसमें भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), देश के पांचों एम्स, केंद्र व राज्य सरकार के अस्पतालों के डाक्टरों के साथ ही मरीजों को भी शामिल किया गया है। संभवत: यह पहला मौका है जो जनहित में ऐसे महाअभियान को प्रारंभ करने से पहले अध्ययन का सहारा लिया गया है।
एक ही बार:
एक ही बार उपयोग होने वाली प्लास्टिक, या डिस्पोजेबल प्लास्टिक का निपटान या रिसाइकिल करने से पहले इसका एक बार ही उपयोग किया जाता है। इनमें से कुछ उदाहरण हैं प्लास्टिक बैग, स्ट्र, कफी घोलने की सींक, सोडा और पानी की बोतलें तथा अधिकांश खाद्य पैकेजिंग आदि। दुनिया भर में केवल 10 प्रतिशत प्लास्टिक वस्तुओं को ही रिसाइकिल किया जाता है।
विशेषज्ञों की नजर में:
एचसीएफआई के अध्यक्ष पद्मश्री डा. केके अग्रवाल ने कहा, ‘प्रदूषण को रोकना और नियंत्रित करना एकमात्र सरकार की ही जिम्मेदारी नहीं है। मौजूदा प्रदूषण के अधिकांश स्तर मानव निर्मित हैं, इसलिए हम सभी को प्रदूषण नियंत्रित करने के प्रयासों में योगदान देना चाहिए। प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद के लिए जो भी उपाय जरूरी हैं उनको अपनाना समाज के सभी सदस्यों का नैतिक कर्तव्य है। जिम्मेदार नागरिकों के रूप में हमें राज्य के कानूनों का सम्मान करना चाहिए और उनका पालन करना चाहिए। हमें प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए व्यक्तिगत प्रयास करने चाहिए। हमें एकल उपयोग प्लास्टिक के उपयोग को कम करने में सरकार के प्रयासों को समर्थन देना चाहिए। इस सहयोग की शुरुआत घर से ही होनी चाहिए।’ हालांकि, प्लास्टिक मिट्टी की तरह प्रातिक पदार्थ में विघटित नहीं होता है, लेकिन यह कई सालों के बाद छोटे कणों में टूट जाता है। इस प्रक्रिया में, यह जहरीले रसायन छोड़ता है जो हमारे भोजन और पानी की आपूर्ति में शामिल हो जाते हैं।
एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि ‘हम हर साल लाखों टन प्लास्टिक का उत्पादन करते हैं, जिसमें से अधिकांश को रिसाइकिल नहीं किया जा सकता। ऐसे में बुद्धिमानी इसी में है कि प्लास्टिक का उपयोग कम से कम किया जाये। हमें टिकाऊ उत्पादों और सेवाओं की ओर बढ़ना चाहिए और ऐसी तकनीकें ईजाद करनी चाहिए जो प्लास्टिक को अधिक कुशलतापूर्वक रीसाइकिल करती हो।’

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