..पीएम का सपना बेमानी: मरीजों के पहुंच से दूर होती जा रही है सस्ती जेनेरिक दवाएं! -केमिस्ट नहीं लेते हैं जेनेरिक दवाएं बेचने में, डाक्टरों की भी रुचि हो रही कम -औषध विभाग ने जारी की एडवाइजरी, दी नसीहत डाक्टर करें प्रेस्क्राइब्ड दवाएं, केमिस्ट खोले काउंटर -जन को मिले सहजता से सस्ती दर पर जेनेरिक दवाएं

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मिशन स्वास्थ्य भारत अभियान में से एक मरीजों को सस्ती दर पर सहजता से दवाएं देने के प्रयास के लिए खोले गए जेनेरिक औषधि केंद्रों की हालत अभी से ही पतली होने लगी है। अनुमान है कि दिल्ली में करीब 8879 केमिस्ट की दुकानें है जिन्हें स्वास्थ्य विभाग ने लाईसेंस प्रदान दिया है। मार्च 2017 में केंद्रीय औषध नियंत्रक ने दिल्ली समेत अन्य राज्यों को यह निर्देश दिया था कि वे अपनी दुकानों में एलोपैथ दवाओं के साथ ही जेनेरिक औषधियों का स्टॉक रखना सुनिश्चित करें।
स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग को अस्पतालों के जरिए ऐसी ढेरों शिकायतें मिली है जिनमें रोगियों ने केमिस्ट दुकानों पर जेनेरिक दवाएं नहीं मिलने की बात की है। प्राप्त डाटा के अनुसार 67 फीसद केमिस्टों ने तो अब तक एक भी जेनेरिक दवाई नहीं रखी। 23 फीसद दुकानदारों ने सिर्फ बोर्ड ही लगा कर अपने काम की इतिश्री कर ली है बाकी 10 फीसद दुकानों पर जेनेरिक दवाएं नियमित रूप से मरीजों को मिल रही है। केमिस्टों के इस बेरुखी से स्वास्थ्य विभाग ने सख्त रुख अपनाते हुए एक एडवाइजरी जारी कर दी है। जिसमें यह निर्देश दिया गया है कि वह अपने यहां जेनेरिक दवाओं का स्टाक सुनश्ििचत करें, कौन सी दवाएं किस रोग के लिए हैं उनकी कीमत क्या है आदि का उल्लेख भी करें। इसकी सूचना दिल्ली औषध नियंत्रक विभाग को जारी करे। यह कार्य मासिक या हर तीन माह के अन्तराल में जारी करना होगा। इसके लिए उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय की साइट पर अपलोड करना होगा।
डाक्टरों को मरीजों को जेनेरिक दवाएं प्रेस्क्राइब्ड करने का निर्देश:
दिल्ली सरकार के औषध नियंत्रक डा. एके नासा के अनुसार केंद्रीय ड्रग कंट्रोल विभाग के निर्देश पर दिल्ली में सभी दवा दुकानदारों के लिए एक एडवाइजरी जारी की गई है। इसके तहत उन्हें कहा गया है कि वे अपने दुकानों में जेनरिक दवाओं की एक अलग से रैक बनाएं। इस रैक को दुकान में ऐसी जगह बनाया जाए जिससे मरीजों को वह आसानी से दिख सके। डाक्टरों को एलोपैथ दवाओं के साथ ही जेनेरिक प्रेस्क्राइब करने की सलाह दी गई है। ड्रग कंट्रोल विभाग का मानना है कि डॉक्टर अगर पर्ची पर जेनरीक दवा लिख भी दें, तो कई बार दवा दुकानदार जेनरीक खत्म होने का बहाना बनाकर उन्हें ब्रांडेड दवा दे देते हैं। ऐसे में अलग रैक होने से यह दवाएं मरीजों के नजर में रहेंगी और दुकानदार भी खत्म होने का बहाना नहीं बना पाएंगे।

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