भारत चौहान नई दिल्ली , दिल का वॉल्व खराब होने पर यूं तो मरीज को ऑपरेशन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। लेकिन अब ऐसी भी तकनीक आ चुकी है। जिसके जरिए बगैर ऑपरेशन खराब वॉल्व को ठीक किया जा सकता है। इस तकनीक को ट्रांसकैथेटर आर्योटिक वॉल्स इम्प्लांटेशन (टीएवीआर) के नाम से जानते हैं। बिना चीरा लगाए इस तकनीक के जरिए खराब हो चुके वॉल्व की क्षतिग्रस्त हिस्से को ठीक किया जा सकता है।
बृहस्पतिवार को अपोलो अस्पताल के संस्थापक एवं चेयरमैन डा. प्रताप सी रेड्डी ने दिल के इलाज से जुड़ी तीन अत्याधुनिक तकनीकों की जानकारी देते वक्त यह खुलासा किया। दुनिया भर में हर साल 170 लाख लोगों की मृत्यु दिल की बीमारियों के कारण हो रही है। भारत के लिए उन्होंने गैर संक्रमित रोगों को एक सुनामी की तरह बताया। मधुमेह, दिल, कैंसर, स्ट्रोक जैसी बीमारियों ने देश के लाखों लोगों को अपना शिकार बना लिया है। उन्होंने ये भी कहा कि देश में उचित डॉक्टर और अस्पताल हैं जिनका प्रभाव विदेशों में सबसे ज्यादा है। हालांकि जरूरत है लोगों के सतर्क रहने की और समय पर उपचार कराने की।
अक्सर बुजुर्ग मरीजों में दिल का वॉल्व खराब होने के कारण ऑपरेशन को लेकर जटिलता देखने को मिलती है। कई बार परिवार भी बुजुर्ग मरीज के ऑपरेशन से सहमत नहीं हो पाते लेकिन इस तकनीक के जरिए बगैर ऑपरेशन बुजुर्ग मरीज को महज एक ही दिन भर्ती रहना पड़ता है। अस्पताल के डा. सेनगोटुवेलु ने बताया कि कैथेटर की मदद से वॉल्व तक पहुंचा जाता है। इसके बाद खराब वॉल्व को बाहर की ओर धकेलते हुए नया इम्प्लांट किया जाता है। इसके बाद दिल में खून का प्रवाह सामान्य रूप से होने लगता है। अपोलो अस्पताल ने सबसे पहले मित्राक्लिप टीएवीआर और मिनीमली इनवेसिव कोरोनरी आर्टरी बाइपास सर्जरी (एमआईसीएएस) के जरिए काफी मरीजों को अब तक ठीक किया है। डा. साई सतीश ने अन्य दोनों तकनीकों के बारे में बताते हुए कहा कि मित्राक्लिक विधि हार्ट फेलियर मरीजों के लिए वरदान हैं। इस विधि के तहत दरअसल, मिट्रल वॉल्व को रिपेयर करने के लिए इसकी लीफलेट्स की क्लिपिंग कर दी जाती है। यह प्रक्रिया कार्डियक कैथ लैब में मरीज के पैर की शिरा से की जाती है। उन्होंने ये भी बताया कि एमआईसीएस (मिनीमली इनवेसिव कार्डियक सर्जरी) तकनीक से बाइपास सर्जरी के तरीके बदल दिए है। वे दिन बीत गए जब दिल का ऑपरेशन कराने के बाद मरीज को लंबे समय तक अस्पताल में रु कना पड़ता था। ट्रिपल वैसल बाइपास के बाद भी मरीज को सिर्फ दो दिनों के लिए ही अस्पताल में रु कना पड़ता है। अस्पताल में कार्डियालॉजिस्ट डा. श्रीनिवास कुमार ने कहा कि इतना ही नहीं 80 फीसदी मरीजों को खून चढ.ने की जरूरत भी महसूस नहीं होती।