ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली, जरा सोचिए इस भीषण गर्मी में जहां एयरकंडीशनर पर्याप्त कुलिंग करने में बेदम साबित हो रहे हैं वहीं इसके इतर वैिक महामारी कोरोना संक्रमितों की राउंड द क्लाक जीवन बचाने के लिए जी जान से जुटे कोरोना वॉरियर्स किन विषम परिस्थितियों से दो चार हो रहे हैं। राजधानी के एम्स जेपीएन सेंटर, आरएमएल, जीटीबी, राजीव गांधी सुपरस्पेशिएलिटी हास्पिटल, सफदरजंग, दीपचंद बंधु, एलएनजेपी समेत अन्य घोषित कोविड अस्पतालों में डाक्टर्स के साथ ही फ्रंटलाइन वर्कर्स पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्यूपमेंट (पीपीई) पहनकर घंटों भूखे, प्यासे, रूटीन क्रियाओं को नियंत्रित कर अंजाम दे रहे हैं। पीपीई किट के साथ ही एन95 मास्क, हाथों में ग्लब्स, पैरों में शू कवर, सिर से लेकर पैर तक पुरी तरह से ढंके रहकर। तापमान 40 से उपर ही रहता है। इस पर 98 फीसद तक हूम्यूनिडिटी यानी हवा में जल की मात्रा का अनुपात (आद्र्रता) आजकल बना हुआ है। कोविड वार्ड्स में वि स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देशानुसार वातानुकूलित संयंत्र को चलाना भी निषिद्ध है।
जज्बे को सलाम:
ऐसे ही वॉरियर्स में से एक एम्स जेपीएन सेंटर के डा. विजय कुमार गुर्जर कहते हैं कि जब-जब पीपीई किट्स पहनता हूं, तब-तब मैं गर्व महसूस करता हूं। पीपीई किट पहनना हिम्मत का काम है, एक चुनौती है, लेकिन साथ में यह जिम्मेदारी का एहसास भी कराता है। अगर मैं डॉक्टर नहीं होता तो मुझे यह मौका नहीं मिलता, मुझे बहुत आत्मग्लानि होती। वहीं, लेडी हार्डिग हॉस्पिटल के कोविड वार्ड में बीते तीन माह से सेवाएं देने वाली डा. शिवानी शर्मा कहती है कि जब कोविड शुरू हुआ तो रिश्तेदारों ने कहा कि नौकरी छोड़ दो, घर आ जाओ। लेकिन, मेरे मां ने कहा कि किसी न किसी को करना है तो फिर तुम क्यों नहीं। इससे मेरा आत्मविास इतना बढ़ा कि अब मुझे डर नहीं, मजा आता है कोविड मरीजों की सेवा कर रहा हूं। इस दौरान मां से सिर्फ वाड्स एप पर ही दीदार होती हूं। वह कालका जी में रहती है और मैं यहां हॉस्टल में। जब पहले दिन अस्पताल में कोविड का इलाज शुरू हुआ तो उसी दिन मुझे पीपीई किट पहनने का मौका मिला। निश्चित रूप से इसे पहनना आसान नहीं है, मुश्किल है। परेशानी वाला है, लेकिन पहनने के बाद आप बाकी लोगों से अलग दिखते हो तो अपनी काबिलियत और काम के प्रति जिम्मेदारी का एहसास होता है। कई बार घंटों पीपीई किट पहने रहना पड़ता है, एक दिन 20 से 30 बार वॉर्ड में जाना पड़ता है। इसलिए आसान तो हरगिज नहीं है। बीच में मुझे 14 दिन का क्वारंटीन मिला था, लेकिन 7 दिन के बाद जब मेरी रिपोर्ट निगेटिव आ गई तो मैंने फिर जॉइन कर लिया है।
कोविड इमरजेंसी:
एलएनजेपी अस्पताल के कैजुअल्टी को कोविड इमरजेंसी घोषित कर दिया गया है। कोविड की प्रोटोकॉल अधिकारी डा. नीतू कहती हैं कि मैं ड्यूटी कर रही हूं। हमें भी शुरू में यह अंदाज नहीं था कि यह इतना लंबा चलेगा, लेकिन अब यह महामारी की तरह फैल रहा है। अस्पताल के कैजुअल्टी में जब कोविड की वजह से मरीज आते हैं, उन्हें सांस में दिक्कत होती है, उनके अंदर कोविड को लेकर जो डर है, उसे हमें महसूस करना होता है। उनकी परेशानी देखकर हमें तकलीफ समझनी होती है। ऐसे मरीजों को तुरंत ऑक्सीजन उपलब्ध कराना, उनके लिए आईसीयू की सुविधा देना और जब वो अच्छा होते हैं तो उनके चेहरे पर जो संतुष्ठि होती है, उससे अच्छा इस दुनिया में सुखद मेरे लिए और कुछ नहीं है।
पहले सिर्फ डाक्टर था अब वॉरियर:
डा. हिंमांशु कहते हैं कि पहले मैं सिर्फ एक डॉक्टर था, अभी मैं कोविड वॉरियर हूं। पूरी तरह से संक्रमण नियंतण्रनियमों का पालन करता हूं और दूसरों को भी ऐसा करने की सलाह देना अब मेरी ड्यूटी रोस्टर में शामिल हो गया है।
उफ्फ यह उमस भरी गर्मी: पीपीई किट पहनकर घंटों कोरोना संक्रमितों की सेवा करना अत्यंत चुनौती भरा! -डाक्टर्स, नर्सिग स्टाफ विषम परिस्थितियों में संक्रमितों का जीवन बिताने में दम लगा रहे हैं
जज्बे को सलाम: अब डाक्टर के साथ हमें लोग कोरोना वॉरियर्स के नाम से भी जानने लगे हैं