.नो टू एनएमसी बिल: डाक्टर स्वास्थ्य मंत्रालय बैकफूट पर, डाक्टरों ने दी देशव्यापी जन आंदोलन का अल्टीमेटम स्वास्थ्य सचिव ने बुलाई आपात बैठक, दावा मसला जल्द सुधर जाएगा

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) बिल का मामला एक बार भी जटिल रूप धारण कर चुका है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय एवं भारतीय चिकित्सक संघ (आईएमए) के मध्य बीते चार माह के दौरान पार्लियामेंटरियन कमेटी में लंबित एनएमसी बिल की सिफारिशों में सुधारने संबंधी अब तक दर्जन से अधिक दफा हुई बैठके बेकार साबित हो चुकी है। डाक्टर बिरादरी केंद्र सरकार के इस रवैये खासी नाराजगी है। उनका कहना है कि नो कम्प्रोमाइज एनएमसी बिल, समय बीत चुका है, सरकार हमें परेशान कर रही है। अब हम देश को परेशान कर देंगे। अनुमान है कि देश में एलोपैथ डाक्टरों की संख्या करीब 13 लाख से अधिक है।
राजधानी के इंदिरागांधी इंडोर स्टेडियम में आहूत शनिवार और रविवार की महापंचायत एवं छात्र संसद में कुछ ऐसे ही तेवर दिखे। संभवत: ऐसा पहला मौका है जब देशभर के अधिकांश सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों के मेडिकल स्टूडेंट्स ने सामूहिक रूप से मन से हिस्सा ले रहे हैं। राउंड द क्लाक मरीजों का जीवन बचाने में रत रहने वाले डाक्टर अब आन बान की लड़ाई के लिए एक मंच पर दिखे। महापंचायत के चेयरमैन डा. विनय अग्रवाल ने कहा कि एनएमसी बिल को लेकर डॉक्टरों और छात्र संगठनों ने सरकार के खिलाफ पूरी तहर मोर्चा खोलने का फैसला कर लिया है। देशभर के मेडिकल छात्र और डॉक्टरों के संगठनों ने सुनियोजित तौर पर सरकार को घेरेंगे। इसके लिए सभी राज्यों में एक हजार डाक्टरों की टीम गठित की गई है। जो अपने जिला और शाखाओं को नेतृत्व करेगा। ताकि किसी स्तर पर आंदोलन विफल होने की गुंजाइश न हो।
मसला सुलझा लेंगे:
हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सुदन ने दावा किया कि एनएमसी बिल डाक्टरी पेशे में हो रही गड़बड़ को दूर करने, मरीज डाक्टर के मध्य बढ़ती खटास को दूर करने वाला है। उन्होने कहा कि बिल प्रस्तावित है, अभी हम डाक्टरों की सिफारिशों पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। इस सप्ताह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा की अगुवाई में पार्लियामेंटरियंन कमेटी के सदस्यो की पुर्नसमीक्षा बैठक होनी है। डाक्टरों के हितों, स्वाभिमान के प्रति सरकार सदैव संवेदनशील रही है। मसला सुलझा लिया जाएगा।
डाक्टरों ने तैयार किया नया बिल:
एक नया बिल तैयार किया। उनका दावा है कि यह बिल सरकार के बिल से कहीं अधिक प्रभावी और जनउपयोगी साबित होगा। डॉक्टरों का एक दल कल स्वास्थ्य मंत्रालय में जाकर इसकी प्रति सौंपेगा। आईएमए के महासचिव डा. आरएन टंडन ने कहा, ‘एनएमसी निजी प्रबंधन समर्थक बिल है जो व्यापक भ्रष्टाचार के रास्ते खोलता है। इससे देश की मेडिकल शिक्षा महंगी हो जाएगी जो निम्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदेह साबित होगा। क्षमता निर्माण के नाम पर मेडिकल प्रैक्टिस के लिए यदि राज्य सरकारें नसरें या दंत चिकित्सकों या फार्मासिस्टों की संख्या बढ़ा भी देती हैं तो यह एमबीबीएस ग्रैजुएट के साथ फर्जीवाड़ा ही होगा।
एनएमसी बिल एक नजर में:
सरकार के अधीनस्थ अपीलीय प्राधिकरण अब नेशनल मेडिकल ट्रिब्यूनल के अधीन हो जाएगा। राज्यों के प्रतिनिधियों की संख्या 3 से बढ़ाकर 10 होगी। किसी एक राज्य को अब पांच साल में सिर्फ एक बार यह मौका मिल पाएगा। किसी भी समय 20 राज्य इस एनएमसी से दूर रहेंगे।

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