कुपोषण से निपटने के लिए और अधिक काम करने की दरकार: यूनिसेफ -सीएनएनएस ने किया खुलासा बच्चों, किशोरो में कुपोषण की अधिकता चिंतनीय

5 साल की आयु वाले देश में 35 प्रतिशत बच्चें है नाटे

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ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली , देश में राष्ट्रीय पोषण अभियान को आंशिक सफलता मिली है लेकिन स्कूल जाने की आयु वाले बच्चों और किशोरों पर अभी भी कुपोषण का खतरा है और बहुत से क्षेत्रों में अभी भी काम करने की जरूरत है।
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने पहले समग्र राष्ट्रीय पोषण सर्वे (सीएनएनएस) के नतीजों के अनुसार जारी किए सव्रेक्षण के अनुसार 10-19 आयु वालों में चार में से एक किशोर अपनी आयु की तुलना में दुबला-पतला है। दूसरी ओर 10-19 आयु के पांच प्रतिशत किशोर अधिक वजन वाले या मोटे है। देश में रक्ताल्पता से पीड़ित बच्चों, किशोरों और महिलाओं की अधिक संख्या चिंता का विषय है। भोजन की खराब आदतें आयरन एवं विटामिन सी से भरपूर भोजन और फल एवं सब्जियां नहीं खाना और स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच इस तरह अनीमिया के प्रमुख कारण हैं। यह सव्रेक्षण यूनिसेफ की मदद से वर्ष 2016-18 के दौरान देशभर के 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कराया गया था। सीएनएनएस के अनुसार अनीमिया सबसे छोटे बच्चों और किशोर लड़कियों को सबसे अधिक प्रभावित करता है। अनीमिया आयु वर्ग की अपेक्षा 1-4 आयु के 41 प्रतिशत बच्चों में काफी अधिक है। कुल मिलाकर 1-4 आयु के 41 प्रतिशत बच्चे , 5-9 आयु के 24 प्रतिशत और 10-19 आयु के 29 प्रतिशत किशोर अनीमिक थे।
एनीमिया पोषण कारण:
यूनीसेफ की प्रतिनिधि भारत में डा. यसीन हली हक ने बताया कि एनीमिया के पोषण संबंधी अन्य कारणों में विटामिन बी 12 मापे गए। एक से 19 साल के बच्चों और किशारों में विटामिन बी 12 की कमी 14 से 31 प्रतिशत तक पाई गई और किशारों में सबसे अधिक थी। स्कूल जाने की आयु वाले बच्चों में गैर संचारी रोगों का खतरा बढ़ता हुआ पाया गया। यह 10 प्रतिशत प्री-डायबिटीज और उच्च ट्राईग्लीसराइड से पीड़ित है। चार प्रतिशत किशोरों को उच्च कोलेस्ट्राल और उच्च कम घनत्व लिपोप्रोटरीन (एलडीएल) था। पांच प्रतिशत किशोरों में उच्च रक्तचाप पाया गया।
खास तथ्य:
सव्रेक्षण में 0-19 आयु के एक लाख 12 हजार बच्चों का आकलन किया गया है, इसमें बच्चों के सूक्ष्मपोषक स्तर और गैर-संचारी रोगों के लिए जोखिम वाले कारकों के लिए 51 हजार से अधिक जैविक नूमने भी लिये गये। सीएनएनएस के मुताबिक, भारत में पांच साल की आयु से कम आयु वाले 35 प्रतिशत बच्चे नाटे हैं, 17 प्रतिशत बच्चे अपने कद के अनुसार बहुत पतले हैं और 33 प्रतिशत का वजन बहुत कम है। सव्रेक्षण के अनुसार कुपोषण की कमी में कुछ प्रगति हुई है, इसके साथ ही साथ 1-4 आयु के बच्चों में विटामिन ए और आयोडीन की कमी की रोकथाम वाले सरकारी कर्यक्रमों तक प्रभावशाली पहुंच भी बनी है। यूनिसेफ की प्रोटोकॉल अधिकारी सोनिया सरकारके अनुसार बाल्यावस्था में अधिक वजन और मोटापा में वृद्धि भी शुरू हो जाती है। यह स्कूल जाने वाली आयु के बच्चों एवं किशारों के लिए गैर-संचारी रोगों के रूप में बढ़ता हुआ खतरा है। बच्चों में मधुमेह का खतरा 10 प्रतिशत है।

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