डाक्टरों के खिलाफ हिंसा के लिए एक केंद्रीय अधिनियम बनाने की दरकार! -बढ़ती हिंसा पर तत्काल कार्रवाई आवश्यक है -जल्द ही प्रस्ताव सरकार को सौंपेगा डाक्टर बिरादरी

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File Photo

ज्ञानप्रकाश
नई दिल्ली , पश्चिम बंगाल के जूनियर डाक्टर कोलकाता में एनआरएस मेडिकल कलेज एवं अस्पताल में हिंसक घटना के बाद हुए देशव्यापी आंदोलन की पुनरावृत्ति न होने देने के लिए चिकित्सा बिरादरी का तर्क है कि डाक्टरों के खिलाफ हिंसा के लिए केंद्रीय अधिनियम बनाने की महती जरूरत है। सनद् रहे कि अपने दो सहयोगियों पर हुए हमले और गंभीर रूप से घायल होने के बाद, बीते सप्ताह पश्चिम बंगाल के डाक्टरों के साथ ही देशभर के डाक्टर आंदोलन पर उतर गए थे। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने अपनी सभी राज्य शाखाओं के सदस्यों को को विरोध प्रदर्शन करने और काले बैज पहनने का निर्देश दिए थे। विशेषज्ञों का कहना है कि मरीजों की की सेहत के लिए ये गंभीर कदम है अत: डाक्टरों के खिलाफ हिंसा की बढ़ती घटनाओं के प्रकाश में, सकारात्मक संचार को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। इस प्रस्ताव को जल्द ही आईएमए और डीएमए, सरकारी सर्विस डाक्टर्स एसोसिएशन प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपेगा।
अध्ययन:
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा कराए गए एक सव्रेक्षण से पता चला है कि देश में लगभग 75 प्रतिशत डक्टरों ने अपने करियर में किसी न किसी रूप में हिंसा या हिंसा के खतरे का सामना किया है। कई राज्यों में, डाक्टर अक्सर हमला करने वालों के लिए कड़ी सजा की मांग करते हुए हड़ताल पर गये हैं। अन्य लोगों ने अस्पतालों में बेहतर सुरक्षा और निगरानी की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए लेख लिखे हैं।
विशेषज्ञों की राय:
आईएमए के पूर्व अध्यक्ष पद्मश्री डा. केके अग्रवाल वर्ष 2015 में, जब डाक्टरों के खिलाफ हिंसा के मामले अपने चरम पर थे, भारत सरकार ने एक अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन किया था, जिसने डाक्टरों के खिलाफ हिंसा के लिए जल्द ही केंद्रीय अधिनियम बनाने का वादा किया था। लेकिन, दु:ख की बात है कि अभी तक ऐसा होना बाकी है। अब समय की माग है कि चिकित्सा पेशा एकजुट हो और सरकार से संसद सत्र में डक्टरों के खिलाफ हिंसा के लिए एक विधेयक लाने की मांग तेज करे। यह चिकित्सा पेशे की एक तत्काल आवश्यकता है।
केंद्रीयकृत सरकारी डाक्टर्स सर्विस एसोसिएशन के अध्यक्ष डा. राजीव सूद ने कहा कि डाक्टर्स के खिलाफ हिंसा को गैर-जमानती अपराध बनाया जाना चाहिए और 7-14 साल कैद की सजा होनी चाहिए। जैसा कि हत्या के आरोप में होता है, क्योंकि डॉक्टर के खिलाफ हिंसा के फलस्वरूप अन्य कई रोगियों की मृत्यु भी हो सकती है। चिकित्सा पेशा जवाबदेही के खिलाफ नहीं है, लेकिन किसी को भी कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। प्रत्येक अस्पताल और स्वास्थ्य सेवा फेसिलिटी को पर्याप्त संख्या में डाक्टरों, सीसीटीवी कैमरों और पर्याप्त सुरक्षा द्वारा संचालित होने के लिए अपने प्रतिष्ठान में उच्च जोखिम वाले हिंसा वाले क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिए। हेल्थकेयर प्रदाताओं, जो हिंसा के शिकार हैं, को पर्याप्त रूप से मुआवजा दिया जाना चाहिए। मरीजों और उनके रिश्तेदारों के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिए हर अस्पताल में एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए।

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