बढ़ती यौन हिंसा और देर से न्याय मिलने के कारण महिलाओं में बढ़ रही है मानिसक समस्याएं

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ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली, बलात्कार और यौन हिंसा की बढ़ती घटनाओं के कारण महिलाओं में डिप्रेशन, एंग्जाइटी और पोस्ट ट्रामेटिक स्ट्रेस डिसआर्डर और यहां तक कि आत्महत्या की प्रवृति जैसी मानिसक समस्याएं बढ़ रही है। सोमवार को यहां हेवीटेट सेंटर में इंडियन साइकिएट्रिक सोसायटी की ओर से महिलाओं के मानिसक स्वास्थ्य पर आयोजित तीसरी राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश भर से आए मनोचिकित्सकों ने अपनी चर्चा के दौरान इस बात का खुलासा किया। उनका कहना था कि पिछले कुछ समय के दौरान मनोचिकित्सकों के पास इलाज के लिए आने वाली उन महिलाओं की संख्या में 30 से 40 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है अतीत में बलात्कार, यौन हिंसा या यौन र्दुव्‍यवहार का सामना करना पड़ा है। जिन महिलाओं के साथ यौन र्दुव्‍यवहार हुआ है उनमें रक्त चाप, हृदय रोग, अनिद्रा, डिप्रेशन और एंग्जाइटी होने का खतरा दो से तीन गुणा बढ़ जाता है।
यौन हिंसा के मनोवैज्ञानिक प्रभाव:
संगोष्ठी में महिलाओं के मानिसक स्वास्थ्य, आसपास के वातावरण, यौन हिंसा के मनोवैज्ञानिक प्रभाव, घरों और कार्यस्थलों पर हिंसा एवं मानिसक स्वास्थ्य से संबंधित विभिन्न विषयों पर तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया। वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. रजनी चटर्जी ने कहा कि घर या बाहर होने वाले यौन दुव्यवहार एवं यौन हिंसा महिलाओं में डिप्रेशन एवं एंग्जाइटी जैसी मानिसक बीमारियों का मुख्य जोखिम कारक है और इस समस्या की रोकथाम के लिए महिलाओं की सुरक्षा में सुधार, शिक्षा एवं जागरूकता, त्वरित न्याय प्रक्रियां एवं महिला अनुकूल सामाजिक वातावरण जरूरी है।
हिंसा की शिकार महिलाओं की काउंसिलिंग जरूरी:
संगोष्ठी में आयोजन कमेटी की अध्यक्ष डा. नीना बोहरा ने बताया कि महिलाओं के मानिसक स्वास्थ्य के मुद्दे पर विचार करते समय हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध का गहरा मानिसक प्रभाव पड़ता है। यौन हिंसा एवं अपराध की शिकार महिलाओं का मनोचिकित्सकीय मदद अवश्य मिलनी चाहिए अन्यथा इसके कारण उनमें ताउम्र के लिए मानिसक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। कास्मोस इंस्टीच्यूट आफ मेंटल हेल्थ एंड बिहैवियरल साइसेंस आयोजन सचिव डा. शोभना मित्तल ने कहा कि आज के समय में महिलाएं घर और दफ्तर दोनों जगह हिंसा, यौन हिंसा एवं यौन र्दुव्‍यवहार की षिकार हो रही है। दुर्भाग्य से अनेक महिलाएं डर और समाजिक मर्यादाओं के कारण चुप रहती है लेकिन वह अंदर ही अंदर घुटती रहती हैं और धीरे-धीरे उनमें मानिसक समस्याएं पैदा होने लगती है। उन्होंने कहा कि अध्ययनों से पता चलता है कि जो लडकियां और महिलाएं शारीरिक एवं यौन हिंसा का सामना करती हैं उनमें से करीब 50 प्रतिशत लड़िकयां या महिलाएं आत्महत्या कर लेती हैं अथवा उनकी हत्या उनके परिवार के लोगों द्वारा कर दी जाती है। बाकी महिलाएं मानिसक वेदना झेलती रहती हैं जिनका गंभीर दीर्घकालिक मानिसक एवं शारीरिक असर होता है।

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