जिज्ञासा —-
नीले आसमाँ में उस दिन,
काले बादल कुछ छाये थे,
दोगले शत्रु ने अपने
काले पर फैलाये थे ।
आतंकियों के बहकावे में,
हिन्द पे हमला बोला था,
मालूम नहीं उन्हें यहां
हर हिंदुस्तानी शोला था ।
जी-जाँ लगाकर सीमा की,
जो योद्धा हिफाज़त करते हैं,
उनसे टकराने से पहले,
खुद यमराज भी डरते हैं ।
कुत्सित इच्छा नाकाम हुई,
पाकी जहाज़ फिर भाग चले,
दो चार जगहों पर अपने,
असलहे कुछ दाग चले ।।
वायु योद्धाओं ने उनको,
सीमा के पार भगा दिया,
पर पाकियों की जुर्रत ने,
कोप, योद्धाओं का जगा दिया ।
एफ16 पे उन्हें बड़ा नाज़ था,
उनका सर्वोत्तम जहाज़ था,
अभिनंदन ने चमत्कार किया,
मिग21 से सत्कार किया ।
एफ 16 को कर दिया भस्म,
निभा गया वीरता की रस्म,
जाँ पे खेल गया अपनी,
आग़ाज़ कर गया विजय जश्न ।
पर खुद भी झेल गया वो वार,
गिर पड़ा सीमा के उस पार,
जाँबाज़ शेर नहीं डरा,
नहीं मानी रिपुओं से हार ।
पूजा होती अथर्व से,
जय हिन्द कहा वहां सर्व से,
रक्तरंजित हो कर भी,
चलता रहा वो गर्व से ।।
दुश्मन के बंदीगृह में भी,
तनिक न वो विचलित हुआ,
शौर्य का ऐसा रूप देख,
शत्रुओं में भी चर्चित हुआ ।
चाय नाश्ता कर के वो,
दो दिन में वापस आ गया,
बहादुरी की एक नई,
मिसाल बनकर छा गया ।
सुन लो आतंकी कौम अब,
तुम्हारा दमन और क्रंदन है,
क्योंकि हिन्द में एक नहीं ,
करोड़ों अभिनंदन हैं ।।।