भारत ने ही शान्ति और अहिंसा की संस्कृति को विव्यापी बनाया: ओम बिरला -शांति एवं अहिंसक उपक्रम पर 10वां चार दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन शुरू

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भारत चौहान नई दिल्ली , शांति और अहिंसा की संस्कृति को विव्यापी बनाने की शुरूआत भारत द्वारा ही की गई थी। अहिंसा एवं करुणा के संदेशवाहक भगवान महावीर और भगवान बुद्ध के संदेशों को आज के परिप्रेक्ष्य में अत्यन्त उपयोगी और महत्वपूर्ण माना जा रहा है। जापान ने युद्ध और संघर्ष का मार्ग छोड़कर जब से भगवान बुद्ध के अनुशासन का पालन किया है, तब से वह निरन्तर प्रगति कर रहा है। ये विचार मंगलवार को यहां लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने 10वीं चार दिवसीय शांति एवं अहिंसक उपक्रम पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में प्रकट किए। महरौली स्थित आध्यात्मिक साधना केंद्र स्थित तेरापंथ भवन आयोजित शांति सम्मेलन की थीम है ‘एक वहनीय एवं अहिंसक भविष्य के लिए बच्चों और युवकों के अहिंसक प्रषिक्षण की अनिवार्यता।’
बिरला ने अणुव्रत वि भारती की सराहना करते हुए कहा कि ‘अणुविभा’ द्वारा बालकों एवं युवाओं को अहिंसा की संस्कृति के प्रशिक्षण की दिशाएं सुनिश्चित करने के लिए इस सम्मेलन का आयोजन करना एक अत्यन्त समीचीन उपक्रम है। इसी क्रम में उन्होंने सम्मेलन में भाग लेने के लिए देश-विदेश से समागत विद्वानों का आवहन किया कि वे जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचने के साथ-साथ सांस्कृतिक असंतुलन के निराकरण के उपायों पर भी चर्चा करें। श्री बिड़ला ने सम्मेलन के चेयरमेन डा. गुलाब कोठारी के वेद-विज्ञान विषयक लेखन, श्रेष्ठ पत्रकारिता एवं सांस्कृतिक उत्थान के उत्कृष्ट सोच को शान्ति एवं अहिंसा के क्षेत्र की बहुत बड़ी उपलब्धि बताया। इससे पूर्व सम्मेलन के मुख्य संयोजक एवं अणुविभा के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष डा. सोहनलाल गांधी ने सम्मेलन की थीम पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि भारत एवं विभिन्न देशों से समागत विद्वानों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि चार दिनों में दस मुख्य सत्रों के अलावा 9 कार्यशालाएं आयोजित होंगी जिनमें विभिन्न विषयों पर लगभग 100 से अधिक प्रतिभागी विद्वान अपने पत्र एवं विचार प्रस्तुत करेंगे। चर्चा-परिचर्चा प्रत्येक सत्र का मुख्य आकषर्ण होगा। वेद विज्ञान मर्मज्ञ डॉ. गुलाब कोठारी, सेन्टर फॉर ग्लोबल नॉनकिलिंग होनोलूलू के अध्यक्ष प्रो. अनूप स्वरूप, ग्लोबल ग्रीन यूनिवर्सिटी – फ्रांस के रेक्टर डॉ. थामर्स सी. डाफर्न, समणी चैतन्य प्रज्ञा ने भी अपने विचार प्रकट किए।

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