बढ़ी बैज्ञानिकों की चिंता: बदल रहा है कोरोना वायरस, कोविड टीके के असर पर कन्फ्यूजन!

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ज्ञानप्रकाश/भारत चौहान नई दिल्ली, दुनियाभर में कोरोना वायरस के संक्रमण से पैदा हुई कोविड-19 महामारी से निबटने के लिए भारत समेत दुनियाभर के वैज्ञानिक कोविड के खिलाफ वैक्सीन विकसित करने के काम में दिन-रात जुटे हुए हैं। इधर, कोरोना भी अपना रूप बदल रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वैज्ञानिक किसी खास तरह के कोरोना वायरस को बेअसर करने का टिका विकसित कर रहे हैं। अगर, ऐसा है तो कोरोना वायरस म्यूटेशन से अपना नया वर्जन बनाता रहा तो क्या वह टीका नए वर्जन वाले कोरोना पर प्रभावी हो पाएगा। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञानि संस्थान (एम्स) के वैज्ञानिकों के मन में चल रही उधेड बुन मसलन, कोरोना के म्युटेशन, वर्जन और वैक्सीन की स्थिति असर क्या होगा।
देश की राजधानी दिल्ली में कोरोना ने म्युटेशन कैसे किया:
एम्स में स्वदेशी कोवाक्सीन के चल रहे मानव परीक्षण के प्रिंसिपल साइंटिस्टस डा. संजय राय के अनुसार भारत में सबसे पहले एल स्ट्रेन का कोरोना वायरस पाया गया था जो वुहान का स्ट्रेन था। बाद में वायरस ने म्यूटेशन करके एस स्ट्रेन और फिर जी स्ट्रेन हासिल किया। पूरे देश में यही स्ट्रेन फैला हुआ है। पुणो स्थित नैशनल सेंटर फॉर सेल साइंसेज के अध्ययन में पाया गया कि देश के अलग-अलग हिस्सों में जिला दर जिला आधार पर कोरोना वायरस के अलग-अलग वर्जन हो सकते हैं। अध्ययन में कहा गया है कि लॉकडाउन के कारण किसी एक इलाके में कोरोना वायरस का खास म्यूटेशन होना और उसका वहीं तक सीमित रह जाना कोई हैरत की बात नहीं।
कोविड-19 वायरस:
डा. राय ने कहा कि दूसरे वायरसों की तरह ही सार्स-कोव-2 के पास भी अलग-अलग वर्जन में बदलने की क्षमता है। वायरस ऐसा म्यूटेशन के कारण कर पाते हैं। मलेशिया में कोरोना वायरस के म्यूटेशन से पैदा हुआ एक खास तरह का स्ट्रेन चिंता का नया कारण बन गया है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर कोरोना वायरस के ये स्ट्रेन कैसे पैदा हो रहे हैं और क्या नए-नए स्ट्रेन से कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए विकसित किए जा रहे टीके पर कोई असर होगा। इस एंगिल पर हम अध्ययन कर रहे हैं।
वैक्सीन के असर पर कन्फ्यूजन:
एनसीडीसी के वैज्ञानिक डा. शिव लाल के अनुसार नोवेल कोरोना वायरस में म्यूटेशन होता तो है, लेकिन इन्फ्लुएंजा जैसे वायरसों के मुकाबले बहुत कम।‘वैक्सीन विकसित करने में जुटे वैज्ञानिकों के लिए यह अच्छी खबर है कि वायरस की संरचना को बदलने की क्षमता वाले म्युटेशन उसके प्रभाव को भी घटा रहे हैं।दरअसल, बन रही ज्यादातर वैक्सीन कोरोनावायरस स्पाइक प्रोटीन के अलग-अलग क्षेत्रों को टार्गेट करता है। ऐसे में वे सभी एक ही म्युटेशन वाले वायरस पर एक समान प्रभावी नहीं होंगे। डी614जी कोविड-19 से लड़ने वाली एंटीबॉडीज से प्रभावित है। यानी कि जो कोरोना वायरस से संक्रमित होकर जिंदा बच गया या जिसे टीका लगाया जाएगा, वह वायरस से हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाएगा। यह भी कहा जा रहा है कि चूंकि कोरोना वायरस का एक ही वर्जन 97 फीसद संक्रमण फैला रहा है, इसलिए इस पर असर करने वाला एक टीका पूरी दुनिया को राहत दिलाने के लिए काफी होगा।
कोरोना का डी से जी तक का सफर:
वैज्ञानिकों का यह भी मत है कि डी614जी के नाम से जाना जाने वाला यह स्ट्रेन ही अब दुनियाभर में व्यापक रूप से पाया जा रहा है। आसान शब्दों में कहा जाए तो यह स्ट्रेन डी और जी नाम के अमिनो एसिड्स के बीच अदला-बदली करता है। वायरस के स्पाइक प्रोटीन के कोड में इसका पोजिशन 614 है। चूंकि यह डी से जी के बीच अदला-बदली करता है, इसलिए इसका नाम डी614जी पड़ा है। प्रोटीन के बिल्डिंग ब्लॉक्स अमीनो एसिड्स होते हैं। वुहान में शुरु आती दिनों में कोरोना वायरस के जो नमूने इकट्ठा किए गए वो डी वरायटी के थे। रिपोटरे के मुताबिक, मार्च महीने तक 90 फीसद से ज्यादा मरीजों को इसी वरायइटी के कोरोना वायरस ने संक्रमित किया था लेकिन उसके बाद जी वरायटी के वायरस का दबदबा बढ़ने लगा। अब जी वरायटी का कोरोना वायरस दुनियाभर के 97 फीसद संक्रमितों में पाया जा रहा है।
सार्स-कोव-2 के म्यूटेशन:
एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया के अनुसार म्यूटेशन का मतलब है कि वायरस अपनी कॉपी पैदा करता है। लेकिन, नई कॉपी ऑरिजनल वायरस जैसा ही हो, इसकी गारंटी नहीं होती है। कई बार नई पैदा हुई कॉपी पहले के वायरस के मुकाबले कम प्रभावी होती है। ऐसे में स्ट्रेन तुरंत मर जाता है, लेकिन कुछ म्यूटेशन या वायरस की कॉपी संक्रमण की रफ्तार और तेज कर देती है। सार्स-कोव-2 के स्पाइक प्रोटीन में डी614जी म्यूटेशन की मौजूदगी के कारण वायरस तेजी से संक्रमण फैलाने में सक्षम हो गया है। इस स्ट्रेन के डॉमिनेंट होने की कई वजहें हो सकती हैं।

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