ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली , देश में सामान्य रूप से बच्चों और यातायात प्रदूषित शहर देश की राजधानी दिल्ली में अस्थमा की बढ़ती संख्या के मद्देनजर, विशेषज्ञां ने बृहस्पतिवार को खास तौर पर बातचीत से अधिक जागरूकता फैलाने का आवहन किया। अस्थमा पर जागरुकता फैलाने के लिए आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में पल्मनरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डा. अनंत मोडन और गुड हैंड्स क्लीनिक के बाल रोग विशेषज्ञ डा. गौरव सेठी ने अस्थमा से मुक्ति पाने संबंधी कई बहुमूल्य सुझाव दिए।
उन्होंने कहा कि अस्थमा एक गंभीर बीमारी है जो दुनिया भर में बड़ी आबादी को प्रभावित करती है और हर साल इसकी संख्या बढ़ रही है। वि स्वास्थ्य संगठन फैक्ट शीट के अनुसार दुनिया भर में 100 से 150 मिलियन लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। भारत में इसकी संख्या बढ़ते हुए 15-20 मिलियन तक पहुंच गई है और अस्थमा को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में मदद करने वाली सही दवा की पहचान के महत्व पर पर्याप्त जोर दिए जाने तक सख्या बढ़ती रहेगी। उन्होंने कहा कि अस्थमा की बढ़ती गंभीरता के कारणों के कई घटन हैं। उनमें हवा में पर्टिकुलेट कणों में वृद्धि के साथ वायु प्रदूषण का बढ़ना, धूम्रपान, बच्चों का गलत उपचार, बचपन में वायरल संक्रमण और हेल्थकेयर पेशेवरों के बीच जागरुकता बढ़ाना शामिल है। सही उपचार और जागरुकता पर जोर देते हुए डा. अनंत मोहन ने कहा कि अस्थमा और इनहेलेशन थेरेपी के प्रति धारणाको बदलना बहुत महत्वपूर्ण है। हालांकि इनहेलेशन थेरेपी लोगों के जीवन पर अस्थमा के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, पर इनहेलेशन थेरेपी से दवाओं को सीधे फेफड़ों तक पहुंचाने में मदद मिलती है, जहां उनकी आवश्यकता होती है, इसलिए वे तेज, बेहतर ढंग से और किसी साइड इफेक्ट के बिना काम करती है।
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डा. गौरव सेठी ने लैंसेट की हालिया रिपोर्ट के हवाले से बताया कि वर्ष 2015 में भारत में यातायात से संबंधित प्रदूषण की वजह से 3 लाख 50 हजार बच्चों को अस्थमा हुआ जो चीन के बाद दूसरे नंबर पर है। लैंसेंट के अध्ययन ने दुनिया भर में 194 दशों और 125 प्रमुख शहरों का विश्लेषण किया। हालांकि इस मामलें में चीन की तुलना में आधे से कम होने के बावजूद, भारत में बच्चों की बड़ी आबादी के कारण इन मामलां की अगली सबसे बड़ी संख्या 3 लाख 50 हजार थी। शहरों में पेरिस 21वें (33 फीसद), न्यूयार्क 29वें (32 फीसद), और नई दिल्ली 38वें (28 फीसद) स्थान पर रहे।