मैक्स हास्पिटल लापरवाही से बच्चे की मौत के मामले में दिल्ली सरकार आखिरकार कारपोरेट लाबी के समक्ष झुकी! -डीएमसी ने दिया आरोपी डाक्टरों को क्लीन चिट -डीएमसी की कार्यप्रणाली पर लगे सवालिया निशान -खिन्न: बच्चे के पिता न्यायालय की शरण में, कहा मिलेगा न्याय, न्यापालिका पर है पूरा विश्वास

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली मैक्स हास्पिटल शालीमार बाग द्वारा जुडवा बच्चें की मौत के मामले में लंबी जद्दोजहद और कारपोरेट हास्पिटल लॉबी के कड़े तेवर के आगे आखिरकार आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार ने घूटने टेक दिए हैं। दिल्ली सरकार के आदेश के करीब छह महीने की खींचतान और राजनीतिक उठक पटक के बाद दिल्ली मेडिकल काउंसिल (डीएमसी) ने अपनी जांच के बाद आरोपी डाक्टरों को राहत (क्लीन चिट) दे दी है। ताज्जुब यह है कि डीएमसी दिल्ली सरकार की स्वायत्त संस्था है। जो चिकित्सीय गड़बड़ियों पर पैनी नजर रखती है। जिंदा बच्चे को इस अस्पाल ने मृत घोषित किया था जिसके बाद अस्पताल का लाइसेंस रद्द भी दिल्ली सरकार ने ही किया था। पहले चरण की जांच में डीएमसी ने ही दोषी करार दिया था तो दूसरे चरण की जांच में क्लीन चिट देना कई सवालों को जन्म दे रहा है। बच्चों के पिता ने कहा है कि इस मामले में डीएमसी शुरू से ही डॉक्टरों और मैक्स को बचाने की कोशिश कर रहा था।
डीएमसी का जबाव:
डीएमसी के सचिव एवं रजिस्ट्रार डा. गिरीश त्यागी ने कहा कि डीएमसी ने मामले की पूरी जांच की। जांच में डाक्टर्स को दोषी नहीं पाया गया। इसलिए जांच के बाद डाक्टर्स को क्लीन चिट दे दी है। डा. त्यागी ने जारी  रिपोर्ट में कहा कि इस बावत जो साक्ष्य मिले थे, उनकी जांच की गई थी। जिसके बाद अस्पताल को क्लीनिचट दी गई है। त्यागी ने बताया कि दरअसल, बच्चों के माता-पिता की डिलीवरी से पहले डॉक्टरों ने बाकायदा काउंसिलिंग की थी। इस दौरान सर्जरी के दौरान क्या दिक्कत हो सकती हैं, यह सब बताया था। इस मामले में प्रेग्नेंसी बचाने की कोशिश की जा रही थी और बच्चों को भी बचाने की कोशिश की गई थी। वहीं बच्चों की सर्जरी से पहले होने वाले खतरे, वेंटीलेटर की जानकारी दी गई थी।
न्यायालय की शरण में है माता पिता:
जुड़वां बच्चों के पिता आशीष ने बताया कि इस मामले में अब उन्हें कोर्ट से उम्मीद है, दिल्ली मेडिकल काउंसिल तो शुरू से ही डॉक्टरों के साथ खड़ी थी।
यह था मामला:
पिछले साल नवंबर में एक नवजात शिशु को मैक्स अस्पताल के डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया था। जबकि शिशु जीवित था। परिजन घर लेकर जा रहे थे, तब इसका पता चला। हालांकि इसके कुछ रोज बाद उसकी मौत हो गई। बाद में दिल्ली सरकार ने ईडब्ल्यूएस श्रेणी के तहत जांच कराई, इसमें अस्पताल की कई खामियां मिलने पर उसका लाइसेंस रद्द कर दिया। सरकार के इस फैसले को प्रबंधन ने अपीलीय प्राधिकरण में चुनौती दी। जहां पहली सुनवाई में अस्पताल को शुरू करने की इजाजत मिल गई थी।

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