कैसे होगा मरीजों का दर्द कम, जब दिल्ली सरकार के अस्पतालों में सैकड़ों पड़े हैं डाक्टरों के रिक्त पद 34 अस्पताल में 765 रेजिडेंट्स, 98 फैकल्टी एक्सपर्ट्स की है दरकार डीएसएसएसबी-यूपीएससी को नहीं मिल रहे हैं काबिल डाक्टर

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ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली, राजधानी की बढ़ती आबादी के मद्देनजर सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं नाकाफी है। इस पर दिल्ली सरकार के अस्पतालों की बात करें तो इस समय 34 सुपरस्पेशिलिटी अस्पतालों में करीब 765 रेजिडेंट्स, 98 फैकल्टी सदस्यों के पद रिक्त है। जिन्हें भरने के लिए सरकार ने प्रयास जरूर किए लेकिन दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (डीएसएसएसबी) और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को जिम्मेदारी दी गई थी। बीते तीन साल के दौरान करीब छह बार लिखित परीक्षा ली जा चुकी है लेकिन संबंधित एजेंसियों को काबिल डाक्टर नहीं मिल सके हैं। इसका असर स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ रहा है।
बिस्तर बढ़ेंगे पर मरीजों की कैसे होगी जांच:
दिल्ली सरकार ने अस्पतालों की सेहत सुधारने के लिए बुधवार को कैबिनेट ने बड़ा फैसला लिया।। इसके तहत राजधानी के चार सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों की क्षमता बढ़ाने संबंधी योजना के तहत 1716 नए बिस्तरों को जोड़ा जाना है। स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का तर्क है कि बिस्तर बढ़ने के साथ ही मरीजों की दिक्कतें कम होगी। उन्होंने कहा कि स्थायी डाक्टरों के चयन की जिम्मेदारी दो जिन एजेंसियों को दी गई है उन्हें अब तक उम्मीदवार नहीं मिल सके हैं। डाक्टरों की कमी को दूर करने के लिए विकल्प के तौर पर चिकित्सा अधीक्षक को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वे अपने यहां रिक्त पदों को भरने के लिए अस्थायी डाक्टरों का चयन करें। ऐसे में विशेषज्ञों को कहना है कि अनुभवी डाक्टरों की कमी की वजह से मरीजों की दिक्कतें बढ़ रही है। एम्स, सफदरजंग, आरएमएल जैसे केंद्र सरकार के अस्पतालों में मरीजों का दबाव बढ़ रहा है।
आबादी बढ़ी, छोटे अस्पतालों में दबाव ज्यादा:
छोटे अस्पताल होने की वजह से कई बार मरीजों को पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं। जिसके कारण उसे दूसरे अस्पताल में रैफर करना पड़ता है। साथ ही पिछले 20 वर्षो में दिल्ली की आबादी भी बढ़ी है। ऐसे में सरकार अस्पतालों की क्षमता को बढ़ाने पर पूरा जोर दे रही है। इसी के तहत 1716 बिस्तर चार अस्पतालों में बढ़ाने का फैसला लिया है।
नियम से कोसों दूर है स्वास्थ्य सेवाएं:
वि स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों के अनुसार प्रति एक हजार की आबादी पर 5 बिस्तर की सुविधा अस्पताल में होनी चाहिए। जबकि दिल्ली की बात करें तो यह आंकड़ा 2.5 है। दिल्ली सरकार के 34 अस्पतालों में इस वक्त बिस्तरों की कुल संख्या 10 हजार है। लेकिन आगामी कुछ वर्षो में इसे बढ़ाकर 20 हजार हो जाने की योजना है। दूसरे चरण में 25 हजार तक बिस्तर उपलब्ध कराए जाएंगे।
बजट बढ़ा काम है सुस्त:
रोहिणी स्थित बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर अस्पताल में मातृ-शिशु ब्लॉक का निर्माण कराया जाएगा। करीब 195 करोड़ की लागत से इस ब्लॉक के निर्माण के बाद अस्पताल में बिस्तरों की क्षमता 500 से बढ़कर 963 तक पहुंच जाएगी। रघुवीर नगर स्थित गुरु गोबिंद सिंह अस्पताल में इस समय 100 बिस्तरों की क्षमता है। यहां 176 करोड़ की लागत से एक ब्लॉक का निर्माण करेगी। जिसके बाद अस्पताल में बिस्तरों की क्षमता 572 बिस्तरों की सुविधा मिल सकेगी। ठीक इसी तरह 118 करोड़ की लागत से मंगोलपुरी स्थित संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल में ट्रामा सेंटर बनने के बाद बिस्तरों 300 से बढ़कर 662 तक पहुंच जाएगी। रोहिणी स्थित भगवान महावीर अस्पताल की री मॉडलिंग की जाएगी। इसके लिए सरकार ने करीब 173 करोड़ का बजट रखा है। मरीजों को 325 से बढ़कर 744 बिस्तरों की सुविधा मिल सकेगी। फेडरेशन ऑफ डाक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डा. विवेक चौकसे ने कहा कि जब तक रिक्त डाक्टरों की कमी दूर नहीं होगी तब तक मरीजों की दिक्कतें कम नहीं होगी। सरकार को इस ओर गंभीरता कार्य करना चाहिए। सरकारी एजेंसियों को काबिल डाक्टर नहीं मिल रहे हैं।

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