स्वास्थ्य मंत्रालय सख्त: 60 हजार से अधिक जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता की होगी जांच -अवयवों में कमी, तो होगी कानूनी कार्रवाई, जब्त की जाएंगी दवाएं -देशभर में 60 हजार से अधिक फामरुले और 20 हजार छोटी बड़ी पंजीकृत इकाइयां

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली, जेनेरिक दवा लिखने को अनिवार्य बनाए जाने के बाद केंद्र सरकार अब इन दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने में भी जुट गई है। सरकार ने ड्रग एवं कास्मेटिक्स एक्ट में एक महत्वपूर्ण संशोधन करने का निर्णय लिया है जिसमें जेनेरिक दवाओं के लिए बायो इक्वालेंस टेस्ट (बीईटी) करना अनिवार्य होगा। जांच के दौरान अवयवों की गुणवत्ता में बिफल होने वाली दवाओं को बाजार में बिकने की अनुमति नहीं होगी। साथ ही फार्मास्यूटिकल कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जाएगा।
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सुदान के अनुसार, लोगों को बेहतरीन गुणवत्ता की जेनेरिक दवा उपलब्ध कराने के लिए यह कदम उठाया गया है। इसके तहत जेनेरिक दवा बनाने वाली कंपनी को साबित करना होगा कि उसकी दवा ब्रांडेड जेनेरिक दवा के समान ही प्रभावी है। मंत्रालय ने जेनेरिक दवाओं के बायोइक्वालेंस टेस्ट के लिए ड्रग एवं कास्मेटिक्स एक्ट में संशोधन का मसौदा तैयार कर लोगों की प्रतिक्रिया के लिए उपलब्ध कराया है। इसके बाद इसे केबिनेट में रजामंदी के लिए भेजा जाएगा।
यह भी:
रसायन एवं उर्बरक मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार देशभर में करीब दस हजार से अधिक कंपनियां जेनेरिक दवाएं बनाती हैं। पर ऐसे टेस्ट की कोई व्यवस्था नहीं है कि जिससे यह पता चले कि किसी ब्रांडेड और जेनेरिक दवा के प्रभाव और दुष्प्रभाव समान हैं या नहीं। देश में जेनेरिक दवाओं के 60 हजार से अधिक फॉर्मूले हैं और करीब 20 हजार छोटी-बड़ी पंजीकृत इकाइयां हैं।
60 हजार दवाओं की गुणवत्ता पर संदिग्ध:
केंद्र सरकार ने जेनेरिक दवाओं की बिक्री को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी गुणवत्ता को लेकर नए कदमों का ऐलान किया है। इसके लिए सरकार बाजार में मौजूद 60 हजार से अधिक जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता की जांच कराएगी।
दरअसल, नई बनने वाली जेनेरिक दवाओं के लिए बायो इक्वालेंस परीक्षण अनिवार्य कर दिया है, लेकिन सरकार की मंशा पहले से बिक रही जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता परखना है।
भारतीय औषध नियंतण्रके महानिदेशक (डीजीसीआई) डा. ईरा रेड्डी के अनुसार बाजार में मौजूद सभी जेनेरिक दवाओं को गुणवत्ता की कसौटी पर खरा उतरकर दिखाना होगा। जितनी भी जेनेरिक दवाएं बन रही हैं, उन्हें यह साबित करना होगा कि वे ब्रांडेड दवाओं से गुणवत्ता में कम नहीं हैं। इसके लिए उन्हें बायो इक्वालेंस परीक्षण (बीईटी) से गुजरना होगा। डा. रेड्डी के अनुसार, दवा कंपनियों को चार साल का समय दिया जाएगा। उन्हें प्रत्येक जेनेरिक दवा का अधिकृत प्रयोगशाला में बीईटी कराना होगा। जांच में फेल होने पर उस कंपनी को दवा बनाने की अनुमति नहीं मिलेगी। निर्मिंत दवाएं जब्त कर ली जाएगी।
परीक्षण ऐसे:
परीक्षण के दौरान 10 लोगों को क्रोसीन और 10 लोगों को उसी क्षमता की पैरासिटामॉल टेबलेट दी जाएगी। आधे घंटे के भीतर दोनों समूहों के व्यक्तियों के रक्त की जांच होगी। इसमें देखा जाएगा कि दोनों दवाओं का प्रभाव समान है कि नहीं।
दरकार क्यों:
जेनेरिक दवा बाजार में कई छोटी-बड़ी कंपनियां हैं। जो बड़ी कंपनियों की जेनेरिक दवाएं हैं वे तो गुणवत्ता में ठीक हैं, लेकिन कई छोटी कंपनियां भी इस कारोबार में उतर आई हैं जो गुणवत्ता के मानकों का पालन नहीं कर रही हैं।

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