मानव और वन्य जीव संघर्ष को रोकने में सरकार के प्रयास नाकाफी : संसदीय समिति

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ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली देश के वन क्षेत्र में बढोतरी के मद्देनजर ग्रामीण एवं शहरी आबादी क्षेत्रों में वन्यजीवों के प्रवेश की बढती घटनाओं को रोकने के लिये सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों को नाकाफी बताते हुये पर्यावरण संबंधी संसदीय समिति ने वन्य जीवों के वनक्षेत्रों में स्थानांतरण की समुचित कार्ययोजना बना कर इसके कार्यान्वयन की सिफारिश की है। विज्ञान प्रौद्योगिकी, वन एवं पर्यावरण संबंधी संसद की स्थायी समिति की पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की चालू वित्त वर्ष के लिये अनुदान मांगों से संबंधित रिपोर्ट में यह सिफारिश की गयी है। राज्यसभा सदस्य आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली समिति ने देश के वनक्षेत्र में हुये इजाफे पर खुशी जताते हुये कहा है कि कुछ वनक्षेत्रों में इजाफा और कुछ वनक्षेत्रों में कमी दर्ज की गयी है। समिति ने आबादी क्षेत्रों में बाघ, तेंदुआ, हाथी और बंदरों के घुस कर स्थानीय निवासियों पर हमले करने और फसलों को नुकसान पहुंचाने की बढती घटनाओं परंिचता व्यक्त करते हुये मंत्रालय को इस दिशा में अतिरिक्त उपाय करने की सिफारिश की है। समिति ने कहा कि जिन वनक्षेत्रों में कमी आयी है उनसे वन्यजीवों का वैकल्पिक पुनर्वास करते हुये ऐसे वनक्षेत्रों में भेजा जाये जिनका क्षेत्रफल बढा है। समिति ने कहा कि वन्य जीव अपने प्राकृतिक पर्यावास की तरफ स्वयं रुख करते हैं, लेकिन एक जंगल से दूसरे जंगल तक पलायन करने के दौरान वन्य जीवों के आबादी क्षेत्रों में पहुंचना स्वाभाविक है। मानव एवं वन्यजीवों के बीच संघर्ष का यही मूल कारण है। समिति ने इसे रोकने के लिये मंत्रालय से वन्यजीवों के वैकल्पिक पुनर्वास का वैज्ञानिक अध्ययन कर इसकी समुचित कार्ययोजना बनाकर इसे लागू करने को कहा है। जिससे इस संघर्ष को रोका जा सके। समिति ने नीलगाय, जंगली हाथी और सुअरों से फसलों को होने वाले रोकने के लिये कटीले तार लगाने के पारंपरिक उपायों से आगे जाकर सौर ऊर्जा चालित बिजली की बाड़ लगाने, कैक्टस जैसे कटीले पौधों के प्रयोग से जैव बाड़ों का इस्तेताल करने और वनक्षेत्रों में पशुओं के लिये भोजन पानी की उपलब्धता बढाने के अतिरिक्त उपाय करने की सिफारिश की है। जिससे पशु पानी और भोजन की तलाश में आबादी क्षेत्र में आने से बचें। समिति ने बाघ संरक्षण उपायों के कारण देश में बाघों की संख्या में बढोतरी पर खुशी जताते हुये इनकी आबादी के असंतुलन को दूर करने का मंत्रालय को सुझाव दिया है। समिति ने कहा कि कुछ वन क्षेत्रों में बाघों की संख्या जरूरत से अधिक तो कहीं कम है। समिति ने कान्हा या काब्रेट राष्ट्रीय उद्यान में क्षमता से अधिक बाघों की संख्या को सीमित करने के लिये बाघो की कमी वाले उड़ीसा के सिम्पलिपाल या सतकोसिया राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में भेजने की सिफारिश की है। इसमें कहा गया है कि सिम्पलिपाल उद्यान में 100 से अधिक बाघ रखने की क्षमता है जबकि वहां अभी सिर्फ 20 बाघ मौजूद हैं। ऐसे में कान्हा या काब्रेट उद्यान से इन उद्यानों में बाघों को भेजा जा सकता है। रिपोर्ट में दुनिया भर में 100 बाघ संरक्षण क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन सुनिश्चित करने पर मंत्रालय का ध्यान आकृष्ट किया गया है। समिति ने सभी बाघ संरक्षण क्षेत्रों की सव्रेक्षण रिपोर्ट के आधार पर पाया कि सिर्फ 13 प्रतिशत बाघ संरक्षण क्षेत्र ही वैिक मानकों को पूरा करते हैं। दक्षिण पूर्वी एशिया के इन्हीं क्षेत्रों में बाघों की 70 प्रतिशत आबादी रहती है। समिति ने सव्रेक्षण रिपोर्ट के हवाले से मंत्रालय को भारत के बाघ संरक्षण क्षेत्रों में वैिक मानकों का पालन सुनिश्चित करने के सभी जरूरी कदम उठाने की सिफारिश की है।

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