गरीबों के लिए मुफ्त किडनी प्रत्यारोपण सुविधा पर लगा ग्रहण सफदरजंग अस्पताल में सालभर पहले प्रारंभ की गई सुविधा बंद

ट्रांसप्लांट यूनिट कक्ष में लगा ताला, 5 माह से बंद है सुविधा, वेटिंग बढ़ी -प्रत्यारोपण कराने की बाट जोह रहे मरीजों को दर्द बढ़ता ही जा रहा

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली , देशभर में बिस्तरों के मामले में सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सफदरजंग में करोड़ों रुपये की लागत से गंभीर रूप से गुर्दा रोगियों को नया जीवन देने के मद्देनजर प्रारंभ की किडनी प्रत्यारोपण सुविधा पर ग्रहण लग गया है। यूनिट बीते पांच माह से अधिक समय से बंद पड़ी है। जिसकी वजह किडनी प्रत्यारोपण के दौरान मरीज के साथ ही अंगदान करने वाले डोनर की मृत्यु होना बताया गया। इस वजह से मरीजों का दर्द और बढ़ता ही जा रहा है।
खास यह है कि 50 से अधिक किडनी प्रत्यारोपण कराने वाले मरीजों के रिस्तेदारों ने सामूहिक हस्ताक्षरयुक्त एक पत्र केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हषर्वर्धन को भेजा है। जिसमें अभिलंब किडनी प्रत्यारोपण प्रक्रिया प्रारंभ करने का अनुरोध किया गया है। अस्पताल के रिकार्ड के अनुसार इस दौरान यहां पर गुर्दा प्रत्यारोपण कराने की बाट जोहने वाले मरीजों की संख्या 700 से अधिक पार हो चुकी है।
जल्द शुरू होगा:
अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डा. सुनील कुमार के अनुसार यहां पर हालांकि अति गंभीर रोगियों को डायलेसिस सेवाएं निर्बाध रूप से जारी है। गुर्दा प्रत्यारोपण से पहले सारी औपचारिकताएं मरीजों से पूरा कराया जा रहा है। जब नैदानिक जांच कराने के बाद मरीज अधिकृत केंद्र नेशनल आर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट आर्गनाइजेशन (नोटो) और यूनिट में कैडेवर डोनर के लिए पंजीकरण कराता है तब उसे बताया जाता है कि यहां पर फिलहाल किडनी प्रत्यारोपण तकनीकी कारणों से नहीं हो रहा है। जब प्रारंभ होगी तब सूचित किया जाएगा। एम्स और आरएमएल में भी पंजीकरण करने की सलाह दी जाती है।
मरीजों का दर्द :
किडनी प्रत्यारोपण की सुविधा शुरू करने का उद्देश्य यहां पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने गरीब मरीजों का मुफ्त में देने के लिहाज से प्रारंभ किया था। जब शुरू हुई तब यहां पर हर दिन कम से दो किडनी प्रत्यारोपण का प्रावधान किया गया था। लेकिन 10 जून 2019 से यूनिट पर ताला लगा दिया गया है। जिन मरीजों का पहले मुफ्त में किडनी प्रत्यारोपण हो गया है उनकी तो स्क्रीनिंग की जा रही है, नये रोगियों को जांच कराने के बाद बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। अमन चोपड़ा के पिता की दो किडनी खराब हो गई है, वह यहां पर चार माह से इस उम्मीद पर सारी जांच कराते रहे कि उनका यहां मुफ्त में किडनी प्रत्यारोपण हो जाएगा। अन्य दवाएं भी जिंदगी भर खाने वाली मिलेगी। लेकिन अब उन्हें बताया गया है कि यहां प्रत्यारोपण प्रक्रिया को कुछ समय के लए बंद कर दिया गया है। उनकी तरह ही यहां पर अन्य कई मरीजों की दिक्कतें देखा जा रही है। इनमें आर्थिक रूप से कमजोर व गरीब परिवार के मरीजों को बड़ी तादाद है। यदि गरीब परिवार के किसी सदस्य की किडनी खराब हो जाए तो उसके लिए प्रत्यारोपण कराना आसान नहीं।
अन्य दिक्कतें:
निजी अस्पतालों में किडनी प्रत्यारोपण के लिए 5 से 7 लाख तक का खर्च आता है। इंजेक्शन की कीमत डेढ़ लाख रुपये है। किडनी प्रत्यारोपण के लिए मरीज और डोनर का एचएलए (ह्यूमेन ल्यूकोसाइट एंटिजन) की जाती है। यह मैच करने पर ही किडनी प्रत्यारोपित की जाती है। एचएलए डोनर से मैच न करने पर उसे एक खास तरह का इंजेक्शन दिया जाता है, जिसकी कीमत करीब डेढ़ लाख रु पए है। इसके अलावा प्रत्यारोपण के बाद मरीजों को महंगी दवाएं खानी पड़ती हैं। इस तरह किडनी प्रत्यारोपण का खर्च उठाना अब भी आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के मरीजों के लिए मुश्किल होता है।
सुविधाएं है तो बंद क्यों:
यूरोलॉजी विभाग और किडनी प्रत्यारोपण यूनिट नवनिर्मिंत सुपर स्पेशिएलिटी ब्लॉक में स्थानांतरित किया गया है। जहां किडनी प्रत्यारोपण के लिए 10 बेड आरक्षित हैं, इसमें से छह आईसीयू बेड हैं।

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