उपवास का संबंध सिर्फ भोजन से ही नहीं, जीवन के अन्य पहलुओं पर भी इसका असर -चैत्र नवरात्र के दौरान उपवास करना सेहत के लिए अच्छा हो सकता है

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ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली , गर्मियों के लिए शरीर को तैयार करने हेतु ग्रीष्म ऋतु से पहले यह त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार के एक अभिन्न पहलू में उपवास, नवरात्र को शरीर, मन और आत्मा को डिटॉक्सिफाई करने की एक प्रक्रिया है। कुछ लोग धार्मिक कारणों से उपवास करते हैं, और अन्य लोग इसे अवांछित कैलोरी को खत्म करने तथा वजन कम करने के लिए करते हैं। अध्ययनों से संकेत मिलता है कि रुक-रुक कर उपवास करके व्यक्ति अपने रक्तचाप, कोलेस्ट्रल के स्तर और इंसुलिन संवेदनशीलता को बेहतर कर सकता है। यह भी पाया गया है कि लंबे समय तक उपवास (2 से 4 दिन) करने से प्रतिरक्षा पण्राली को रिबूट करने, पुरानी प्रतिरक्षा कोशिकाओं को साफ करने और नयी कोषिकाओं के निर्माण में मदद मिलती है।
पद्म श्री अवार्डी, एचसीएफआई के अध्यक्ष डा. केके अग्रवाल ने कहा, नवरात्र शरीर, मन और आत्मा को डिटॉक्सिफाई करता है। बॉडी डिटक्सिफिकेशन का मतलब है कम खाना, अनाज से परहेज (आप व्हीट ग्रास का जूस ले सकते हैं), यदि संभव हो तो एक बार खाना, और सात्विक जीवन शैली का पालन करना। नवरात्र आहार में गेहूं के आटे की जगह कुट्टू या सिंघाड़े के आटे का प्रयोग किया जाता है, दालों की जगह अमरंथ या राजगिरी लिया जाता है और चावल की जगह पर समाक चावल लिये जाते हैं। इस अवधि के दौरान, योग साधना का अभ्यास करके मन और आत्मा को डिटॉक्सिफाई किया जाता है, जैसा कि दुर्गा के नौ रूपों में वर्णित है। नवरात्र का समापन भगवान राम के जन्म राम नवमी पर होता है। इसलिए, चेतना का जन्म उसके जन्म के साथ संपर्क में होने के बराबर है। इसलिए, इस त्योहार को आंतरिक खुशी प्राप्त करने के एक अनुशासित तरीके के रूप में मनाया जाना चाहिए, न कि उपवास के एक साधन के रूप में।
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महाराजा अग्रसेन हास्पिटल में स्नायु तंत्रिका विभाग के अध्यक्ष डा. केके जिंदल के अनुसार फास्ट का मतलब ’खाना नहीं’ है, बल्कि इच्छाओं को नियंत्रित करना और साथ ही सकारात्मक मानसिक ष्टिकोण अपनाना है। इच्छाएं कई प्रकार की हो सकती हैं, स्वादिष्ट भोजन खाना, अच्छी महक, किसी विशेष संगीत को सुनना, सुंदर चीजें देखना, आदि। इसी तरह उपवास भी विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं: भोजन वत (खाद्य पदार्थ), नेत्र उपवास (चीजों को देखना) कान उपवास (उत्तेजक संगीत सुनने से बचना), क्रिया उपवास (विभिन्न गतिविधियों में लिप्त नहीं होना) और भाषण उपवास (बुरा नहीं बोलना)।

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