ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली , देश में इस साल स्वाइन फ्लू (एच1एन1) के मामलों में खतरनाक वृद्धि दर्ज की गई है, जिसके अनुसार 3 फरवरी तक 6,701 मामलों और 226 मौतों की पुष्टि हो चुकी है, जबकि 2018 में इसी अवधि के दौरान, 798 मामले और 68 मौतों की सूचना थी। सबसे तेज वृद्धि 3 फरवरी को सामने आयी, जो कुल आंकड़ों के एक तिहाई (2101) के करीब थी। अकेले राजस्थान में एक सप्ताह में 507 मामलों और 49 मौतों की पुष्टि हुई। इसके बाद 456 मामलों के साथ दिल्ली का नंबर आया। हालांकि, दिल्ली में अब तक सिर्फ एक व्यक्ति की मौत हुई है।
क्या कहता है ट्रेंड:
एच1एन1 सहित मौसमी इन्फ्लूएंजा, दुनिया भर में 3 से 5 मिलियन लोगों को संक्रमित करता है और प्रत्येक वर्ष 2 लाख 90 हजार और 6 लाख 50 हजार के बीच मौतें होती हैं, ऐसा वि स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है। ज्यादातर मामलों में, यह सिरदर्द, बुखार, बहती नाक, खांसी और मांसपेशियों में दर्द जैसे लक्षणों के साथ सामने आता है। बुखार और दर्द के लिए अपने आप से दवा लेकर ठीक होने वाले लोगों का पता नहीं चल पाता है।
वि स्वास्थ्य संगठन की क्षेत्रीय निदेशक डा. पुनम खैतरपाल के अनुसार ‘स्वाइन फ्लू के मामलों में वृद्धि की खबर के बावजूद, यह जरूरी है कि लोग घबराएं नहीं। यदि सही समय पर पर्याप्त निवारक उपाय किए जाते हैं, तो मृत्यु दर की संभावना कम हो जाती है। जिन मरीजों को कोरिजा से बुखार होता है, यानी जिनकी श्लेष्म झिल्ली में सूजन आ जाती है, ऐसे मामलों को सांस फूलने के मामलों से अलग रखा जाना चाहिए और इन्फ्लूएंजा की जांच की जानी चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि हर कोई साधारण इन्फ्लूएंजा के लिए वैक्सीन ले। यह स्वाइन फ्लू को नहीं रोकेगा, लेकिन इसकी गंभीरता कम हो जाएगी। फ्लू आमतौर पर इन्फ्लूएंजा वायरस ए और बी के कारण होता है। उपभेद हर साल बदलते हैं। अक्सर सर्दी और फ्लू में फर्क नहीं हो पाता है, क्योंकि दोनों के लक्षण बहुत समान हैं। विशेषरूप से बच्चों, गर्भवती महिलाओं और वृद्ध नागरिकों में किसी भी घटना को रोकने के लिए हर साल फ्लू वैक्सीन का एक सेट प्राप्त करना अनिवार्य है।’
बदलती है प्रक्रिया:
जैसे वायरस अनुकूलन करते हैं और बदलते रहते हैं, वैसे ही टीके के भीतर भी बदलाव होते हैं। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय निगरानी और वैज्ञानिकों की गणना के आधार पर ही तय किया जाता है कि किस प्रकार का वायरस किसी वर्ष असरकारक होगा।
एक्सपर्ट्स की नजर में:
एचसीएफआई के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. के के अग्रवाल के अनुसार ‘फ्लू का इलाज मुख्य रूप से आराम और तरल पदार्थ के सेवन से किया जाता है, ताकि शरीर अपने आप संक्रमण से लड़ सके। पेरासिटामोल लक्षणों को ठीक करने में मदद कर सकता है, लेकिन एनएसएआईडी से बचा जाना चाहिए। एक वाषिर्क टीका फ्लू को रोकने और इसकी जटिलताओं को सीमित करने में मदद कर सकता है।’
सुझाव:
-जो लोग बीमार नहीं हैं उन्हें बीमार लोगों के साथ निकट संपर्क में आने से बचना चाहिए।
-खांसी या छींक आने पर फ्लू से पीड़ित लोगों को मुंह और नाक को टिश्यू से ढंकना चाहिए। यह आपके आसपास के लोगों को बीमार होने से बचा सकता है।
-अक्सर हाथ धोने से आपको कीटाणुओं से बचने में मदद मिलेगी। यदि साबुन और पानी उपलब्ध नहीं है, तो हैंड सेनिटाइजर प्रयोग करें।
-कीटाणु अक्सर तब फैलते हैं जब कोई व्यक्ति किसी ऐसी चीज को छूता है जो कीटाणुओं से दूषित होती है और फिर उन्हीें हाथें से आंखों, नाक या मुंह को छूता है।
-घर, काम या स्कूल में अक्सर साफ-सुथरी सतहों को साफ किया जाना चाहिए, खासकर जब कोई बीमार हो। भरपूर नींद लें, शारीरिक रूप से सक्रिय रहें, अपने तनाव का प्रबंधन करें, पर्याप्त मात्रा में तरल पदाथोर्ं का सेवन करें, और पौष्टिक आहार लें।