भारत चौहान, नई दिल्ली डेंगू पिछले 15 वर्षों में 30 गुणा तक अपना साम्राज्य फैला चूका है शहरीकरण के रथ पर सवार यह वायरस आज करीब सौ से भी ज्यादा देशों में अपना पैर पसार चुका है। आम तौर पर लोग इसे बुखार, सिरदर्द, रक्तस्राव, त्वचा पर लाल चकते और लो ब्लड प्रेशर से पहचानते हैं, लेकिन डेंगू दिवस पर एम्स में आयोजित एक कार्यक्रम में डॉक्टरों का कहना है कि डेंगू के 75 प्रतिशत मामलों में बुखार या तो होता नहीं है या बहुत कम होता है।
नेशनल वेक्टर बॉर्न डीजीज कंट्रोल प्रोग्राम के साथ हुए साझा कार्यक्रम में बुधवार दोपहर एम्स के मेडिसीन विभाग के प्रो. डॉ. आशुतोष विश्वास ने बताया कि डेंगू भी दो तरह का होता है, एक हल्का और दूसरा तीव्र। हल्के डेंगू में 75 प्रतिशत मरीजों को बुखार होता ही नहीं या बहुत कम होता है। इसलिए ऐसे में रक्तस्राव व त्वचा पर लाल चकते ही इसकी मुख्य पहचान होते हैं। इसमें मरीजों की मृत्यू दर भी .2 प्रतिशत ही है। जबकि तीव्र डेंगू की मारक क्षमता 10-15 प्रतिशत तक की है।
सभी को प्लेटीलेट चढ़ाने की जरूरत नहीं
डॉ. विश्वास बताते हैं कि डेंगू के वायरस की वजह से रक्त नलीकाओं से पानी निकल जाता है। जिससे रक्त गाढ़ा हो जाता है और रक्तचाप कम हो जाता है। आम तौर पर लोग इसे प्लेटीलेट से जोडकर प्लेटीलेट चढ़ाने की सलाह देते हैं। जबकि एम्स में ही हुए शोध के अनुसार प्लेटीलेट की संख्या 10 हजार से कम होने रक्तस्राव होने पर ही प्लेटीलेट चढ़ाना चाहिए। क्योंकि इससे पहले इसका कोई फायदा नहीं होता। उनका कहना है कि डेंगू में सबसे जरूरी होता है कि रक्त नलिकाओं से जो पानी निकल रहा है उसे पूरा किया जाए, क्योंकि रक्त नलीकाओं से पानी निकलने को रोकने का इलाज अभी तक नहीं ढूंढा जा सका है।
बच्चों में ज्यादा खतरनाक
एम्स के पिडीयाट्रक्स विभाग के प्रो. डॉ. सुशील काबरा बताते हैं कि डेंगू बच्चों और बड़ों में अलग होता है। बड़ों में जहां अधिकांश मामलों में बुखार कम या नहीं होता, वहीं बच्चों में अचानक ही तेज बुखार हो जाता है। बच्चों मे यह वायरस दिमाग पर भी असर डालता है। इसके अलावा बच्चों में बड़ों की तुलना में रक्त की मात्रा कम होने की वजह से रकत नलीकाओं द्वारा कम पानी छोड़ने पर भी परिणाम गंभीर हो सकते हैं। इससे किडनी और लिवर समेत कई अंग काम करना बंद कर सकते हैं और इससे मौत भी हो सकती।
डेंगू का अंड़ा दो साल बाद भी सक्रीय
नेशनल वेक्टर बॉर्न डीजीज कंट्रोल प्रोग्राम की सह निदेशक डॉ. कल्पना बरूआ की मानें तो पानी से दूर रहने के बाद भी डेंगू का अंडा दो साल तक जीवित रहता है। दो साल बाद भी पानी के संपर्क मे आने के बाद यह अंड़ा सक्रीय हो जाता है। इसलिए खुले में पड़े खाली बर्तनों से केवल पानी निकलना ही काफी नहीं है, बल्कि इन्हें अच्छी तरह से धूप में सुखाना और हो सके तो पेंट भी करना चाहिए।