एंटी बायोटिक के प्रयोग और गलत प्रयोग पर परिचर्चा

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एंटीबायोटिक दवाएं आधुनिक चिकित्सा जगत के लिए महत्वपूर्ण हैं, और एंटीबायोटिक दवाओं का प्रतिरोधक हो जाना मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्या है। नई एंटी बायोटिक दवाओं का न बनना और मौजूदा दवाओं के प्रति एएमआर (एंटी माइक्रोबॉयल रेसिस्टेंस) की समस्या तेजी से बढ़ रही है, बिना साइड इंफेक्ट के एंटीबायोटिक दवाओं का मनुष्यों पर असर होना एक वैश्विक चुनौती है, पहले से इस्तेमाल की गई एंटीबायोटिक दवाओं की वजह से मरीज की मृत्यु हो सकती है।
जैसा की सबको पता है कि एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधकता इसलिए ही बढ़ रही है क्योंकि चिकित्सक जरूरत से अधिक एंटीबायोटिक दवाएं मरीजों को लिख देते हैं और कई बार मरीज भी चिकित्सक की बिना सलाह के इन दवाओं का सेवन कर रहे होते हैं। आम लोगों के बीच एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है। इन दवाओं के अधिक प्रयोग को रोकने के लिए जागरूकता अभियान और जनसूचना मध्यमों अपना कर इस बावत लोगों की आदत सुधारने की कोशिश की जाती है। इसी उद्देश्य से वल्लभ भाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट में जनजागरुता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल और गलत इस्तेमाल विषय पर 30 जनवरी को आयोजित जन जागरुकता कार्यक्रम में एंटीबायोटिक दवाओं के सही इस्तेमाल के बारे में लोगों को बताया गया।
वल्लभ भाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के कार्यकारी निदेशक डॉ. राजकुमार ने बताया कि एएमआर (एंटी माइक्रोबॉयल रेसिस्टेंस) के असर को रोकने के लिए जरूरी है कि एंटीबायोटिक के गैर जरूरी इस्तेमाल को रोका जाए, डॉ. राजकुमार ने स्वास्थ्यकर्मी और चिकित्सकों से अधिक दवाएं लिखने से मना किया और कहा कि सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य स्तर तक स्वास्थ्यकर्मियों को इस बात की जानकारी होनी चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के ग्लोबल एक्शन प्लान और भारत सरकार के राष्ट्रीय एक्शन प्लान के तहत एएमआर की दर को कम करने का लक्ष्य रखा गया है।
वल्लभ भाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट की फार्माकोलॉजी विभाग की प्रो. अनिता कोटवानी ने दिल्ली में अधिक एंटीबायोटिक इस्तेमाल किए जाने और अधिक एंटीबायोटिक लिखे जाने पर किए गए अपने काम का हवाला देते हुए कहा कि दवाओं के सेवन के प्रति लोगों का व्यवहार बदलने के साथ ही इनके नकारात्मक असर को बताते लिए जागरुकता की आवश्यता है, इसलिए आगे की जनरेशन या पीढी को एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता से बचाने के लिए सामुदायिक स्तर पर जागरुकता कार्यक्रम चलाए जाने की जरूरत है।
नेशनल सेंटर फॉर डिसीस कंट्रोल के निदेशक डॉ. एसी धारीवाल ने बताया कि केन्द्र सरकार ने 2017 में एंटीबायोटिक दवाओं के बढ़ते असर और दुष्प्रभाव को देखते हुए राष्ट्रीय स्तर पर एक्शन प्लान तैयार किया, जिसमें कृषि मंत्रालय, फार्मा, ड्रग्स कंट्रोलर, पर्यावरण सहित कई विभागों को शामिल किया गया है। इन सबके बावजूद सामुदायिक स्तर पर अध्यापको, लीडर और चिकित्सकों द्वारा चलाए गए अभियान के जरिए एंटीबायोटिक प्रतिरोधकता की चुनौती को समझा जा सकता है और इससे बचने के लिए लोगों को जागरुक किया जा सकता है।
एनसीडीसी के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख और अतिरिक्त निदेशक डॉ. सुनील
गुप्ता ने देश में एएमआर के बढ़ने चलन और इससे संबंधी आंकड़ों को प्रस्तुत किया, और देश में एएमआर की गंभीर समस्या की तरफ लोगों का ध्यान आर्कषित किया।
कार्यक्रम में लगभग 300 लोगों ने भाग लिया। मंच पर मौजूद विशेषयों ने एंटीबायोटिक के इस्तेमाल से संबंधित लोगों के प्रश्नों का जवाब दिया। उपस्थिति सभी लोगों ने विषय से संबंधित सभी प्रश्नों का आसान शब्दों में जवाब दिए जाने के लिए विशेषज्ञों का धन्यवाद दिया।
निशि भाट के साथ भारत चौहान दिल्ली

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